स्वच्छ पर्यावरण का मौलिक अधिकार हमें संविधान देता है और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण भी लगातार इसकी वकालत करता रहा है. हमारे प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और पर्यावरण मंत्री पर्यावरण सुरक्षा को ५००० साल पुराणी परंपरा बताते नहीं थकते. इन सबके बीच हकीकत यह है कि साफ़ पानी और साफ़ हवा की मांग करने वाली भीड़ पर पुलिस गोली चलाती है और ११ लोग मौके पर मारे जाते हैं और १०० के लगभग घायल होते हैं. कुछ घायल गंभीर अवस्था में हैं, उन्हें बचाना शायद संभव न हो. पुलिस को कभी अपनी क्रूरता और वहशीपना नहीं दिखाई देता पर भीड़ की उग्रता जरूर दिखती है.

मामला २२ मई का है, तमिल नाडु के तूतीकोरिन में स्टरलाइट कॉपर के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे लोगों पर पुलिस ने गोलियां चलाई और खबरों के मुताबिक़ ११ लोग मौके पर ही मारे गए. पिछले तीन महीनों से इस उद्योग के प्रदूषण के विरुद्ध लगातार आन्दोलन किये जा रहे हैं, पर न तो सरकार को और न ही विपक्षी दलों को इससे कोई मतलब था. लोगों की शिकायते हैं कि पूरे क्षेत्र की हवा सांस लेने लायक नहीं है, नदियाँ जहरीली हो चुकीं हैं और भू जल भी उपयोग लायक नहीं बचा है. फिर भी किसी को कोई मतलब नहीं था, क्यों कि उद्योग को सरकारी संरक्षण प्राप्त था और बाकी लोगों को खरीदने की ताकत थी. यह उद्योग वेदांता समूह का है. मीडिया के लिए तो प्रधानमत्री का प्रचार ही सारी खबरें हैं. पिछले तीन महीनों में शायद ही कहीं इस आन्दोलन की खबर आयी हो.

अपने देश में पर्यावरण संरक्षण की ५००० साल पुरानी परंपरा का जरा आकलन कीजिये. गार्डियन ने दुनिया भर में पर्यावरण प्रहरियों को सूचीबद्ध करने का बीड़ा उठाया है. इस वर्ष अबतक दुनियाभर में ३७ लोग पर्यावरण की रक्षा करते अपनी जान गवां चुके हैं, इसमें ५ भारतीय भी हैं. अब ११ से अधिक नाम और जोड़ कर देखिये – पूरी दुनिया में पर्यावरण प्रहरियों की हत्या के सन्दर्भ में हम सबसे आगे पहुँच जायेंगे. दरअसल, यही हमारी परंपरा है.

सभी उद्योग या दूसरी परियोजनाएं पर्यावरण और प्रदूषण से सम्बंधित स्वीकृतियों से लैस रहती हैं. दरअसल ये स्वीकृतियां खरीदी जाती हैं, हरेक सम्बंधित सरकारी संतान और अधिकारी इसे बेचने को बेताब रहता है. यह सब मोटी कमाई का सौदा है. तभी आज तक आपने कोई परियोजना देखी है जो प्रदूषण नियंत्रण या पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ भी कर रहा हो. यदि ऐसा होता तो आज वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण से सबसे अधिक मौतें हमारे देश में नहीं हो रही होतीं.

इस घटना के बाद से निंदा और मुवावजा का सिलसिला शुरू हो गया है, अब राज्यपाल भी दुखी है और मुख्यमंत्री भी. विपक्षी खेमा भी बड़े-बड़े बयान दे रहा है. पर, ११ लोगों के मरने के बाद ही यह समाचार बनना शुरू हुआ, उसके पहले तो आन्दोलन कोई खबर था ही नहीं. यकीन मानिए, पर्यावरण मंत्री और मन की बात वाले प्रधानमंत्री यो तो इस मसले पर कुछ नहीं कहेंगे, यदि कहेंगे तो कानून और व्यवस्था की बातें करेंगें. पर्यावरण या प्रदूषण जो मूल मुद्दा है, उसकी कोई बात नहीं करेगा.

अब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण का हाल देखिये. वायु और जल प्रदूषण से सबसे अधिक मौतों वाला देश, जहाँ पूरी जमीन ही एक कचराघर है, वह देश इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का वैश्विक मेजबान है. अब इस घटना के बाद यदि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण को पर्यावरण संरक्षण की जरा भी चिंता है तो उसे यह मेजबानी का दायित्व भारत से छीनकर किसी और देश को दे देना चाहिए.