रेल विभाग हिन्दू धार्मिक और जातीय संगठनों के विज्ञापनों से परहेज नहीं कर रहा है। रेल के डिब्बे के अंदर खाना परोसने के वक्त पानी के ग्लास पर यात्रियों का ध्यान का ध्यान सबसे पहले धार्मिक व जातीय विज्ञापनों की तरफ चला जाता है।

भारतीय रेल में यात्रा के दौरान शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में यात्रियों को खाना, नाश्ता के साथ पानी की बोतल दी जाती है जिसकी कीमत यात्रियों से यात्रा टिकट लेने के साथ ले ली जाती है। इन ट्रेनों में भारतीय रेल मंत्रालय की कंपनी आईआरसीटीसी की ओर से निजी कंपनियां खाना पानी मुहैया कराती है। निजीकरण का यह एक नया तरीका निकला है जिसमें कंपनियों को सरकारी विभाग ठेके पर अपनी मुहर दे देता है। जैसे शराब की दूकानों पर ये लिखा होता है कि यह सरकारी शराब की दूकान हैं।


निजी कंपनियां न केवल खाना पानी परोसती है बल्कि खाने और पानी के साथ यात्रियों के बीच तरह तरह के विज्ञापन भी परोसती है। लेकिन जिस तरह से रेल के खानों के जायके को लेकर शिकायतें बढ़ी है उसी तरह से विज्ञापनों की भी सीमाएं टूट गई हैं। कंपनियां जिस बर्तन में खाना और पानी दिया जाता है उन पर तरह तरह के विज्ञापन देती है।लेकिन इन दिनों जातीय और धार्मिक संगठनों के भी विज्ञापन देखने को मिल रहे हैं।

शताब्दी में एक यात्रा के दौरान पेपर ग्लास पर एक हिन्दूवादी संगठन का विज्ञापन देखने को मिला। इस विज्ञापन में राष्ट्र रक्षा महायज्ञ का विज्ञापन है । केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस यक्ष के लिए रथयात्रा को हरी झंडी दिखाई थी और इस यक्ष को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रुप में प्रचारित किया था। इसे योगनी पीठम ने आयोजित किया था और इसे सांस्कृतिक महोत्सव होने का दावा किया गया। इस कार्यक्रम में ब्राहम्ण धर्म के एक सप्ताह तक कर्मकांड कराए गए थे और उसमें भाजपा के दिग्गज नेताओं के साथ दलित नेता और आम आदमी पार्टी के मनीष सिसोदिया ने भी यक्ष कुंड की अग्नि में धी डाला था।


यह आयोजन मार्च 18 से लेकर 25 फरवरी तक किया गया था। यह हिन्दूत्ववादी राजनीति समंर्थक संगठनों व समूहों के लिए एक अति महत्वकांक्षी कार्यक्रम था जिसके लिए लाल किला के प्रांगण को चुना गया था और इसके लिए प्राचीन इमारतों से संबंधी नियमों व शर्तों में छूट दी गई थी। यह विज्ञापन भारतीय रेल कंपनी आईआरसीटीसी के सौजन्य से परोसे जाने वाले खाने और पीने की चीजों के साथ परोसा गया। रेलवे मंत्रालय से .मीडिया ऑन ट्रैक नामक कंपनी ने रेल के डिब्बॆं के अंदर

विज्ञापनों के लिए जगह बेचने का ठेका लिया है। यह विज्ञापन पीने के ग्लास पर दिया था। मींडिया ऑऩ ट्रेक के एक अधिकारी के अनुसार 44 ट्रेनों के लिए उनकी कंपनी को रेल मंत्रालय ने ठेका दिया है। लेकिन रेल मंत्रालय का कौन सा विभाग विज्ञापनों की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार है यह इस लेखक को लगातार तीन महीने के प्रयास के बाद भी रेल मंत्रालय से जानकारी मिल सकी। रेल मंत्रालय की तरफ से मीडिया से बातचीत करने के लिए अधिकृत अधिकारी लिखित मांगे जाने पर भी संबंधित जानकारी नहीं दे सकें। वे इन महीनों में ये बता पाने में भी अपनी असमर्थता का प्रमाण दिया कि रेल मंत्रालय ने निजी कंपनियों को रेल में विज्ञापन की सामग्री के लिए कोई आचार संहिता भी जारी की है तो वह क्या है ?


रेल के डिब्बों में यात्रियों के बीच विज्ञापन कराना महंगा सौदा माना जाता है। मीडिया ऑन ट्रैक के अधिकारी के अनुसार शताब्दी में 75 हजार ग्लास पर एक महीने के लिए विज्ञापन की कीमत जीएसटी के अलावा दो लाख पचास हजार रुपये हैं। जबकि एक लाख पच्चीस हजार रुपये राजधानी एक्सप्रेस में ग्लास पर विज्ञापन के लिए तय हैं।

यह कोई अकेला विज्ञापन नहीं है। इससे पहले भी शताब्दी एक्सप्रेस में इंटरनेशनल वैश्य फेडरेशन का संकल्प फाउंडेशन के साथ साझा एक विज्ञापन देखने को मिला था। वैश्य सम्मेलन के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा नेता रामदास अग्रवाल है और संकल्प फाउंडेशन का दिल्ली में ओखला के जिस बल्डिंग में दफ्तर चलता है उसी बिल्डिंग में मीडिया ऑन ट्रैक का भी दफ्तर हैं। दोनों के कर्ताधर्ता एक ही हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इस तरह के विज्ञापनों की रोकथाम के लिए रेल मंत्रालय में आचार संहिता का अभाव है और इतने बड़े महकमें में इस तरह के विज्ञापनों पर निगरानी रखने वाला कोई अधिकारी भी मौजूद नहीं है।