भारतीय जनता पार्टी का जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ( पीडीपी ) के साथ अपनी ही गठबंधन की सरकार को गिरा देना और फिर दूसरी पार्टियों में तोड़ -फोड़ से खुद की नई सरकार बनाने में लग जाना इसी को रेखांकित करता है कि उसके मौजूदा कामकाज पर लोकसभा के अगले चुनाव की जरूरतें हावी हो गई हैं।बीजेपी को अपनी सरकार बनाने के लिए और जितने विधयकों के समर्थन की जरूरत है वह उन्हें सज्जाद लोन गुट के दो और एक निर्दलीय के अलावा पीडीपी में विभाजन या दल-बदल से जुटाने में जुटी हुई बतायी जाती है। बीजेपी महासचिव और जम्मू-कश्मीर पार्टी प्रभारी राम माधव ने नई सरकार बनाने के लिए तोड़फोड़ की संभावनाओं से इंकार किया है। पर वह राज्य में नया चुनाव कराने की संभावना पर चुप्पी धारे हुए हैं।

जम्मू -कश्मीर , बीजेपी की गठबंधन सरकारों का देश भर में सबसे कमजोर चुनावी मोर्चा साबित हो चुका है। राज्य विधान सभा के नवम्बर-दिसंबर 2014 में हुए पिछले चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। तब भाजपा ने कुछ अप्रत्याशित रूप से पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी। पीडीपी नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। उनके निधन के बाद उनकी पुत्री , महबूबा मुफ़्ती ने दोनों के गठबंधन की नई सरकार बनाने के लिए कोई हड़बड़ी नहीं की। वह काफी सोच -समझ कर ही चार अप्रैल 2016 को पीडीपी - बीजेपी गठबंधन की दूसरी सरकार की मुख्यमंत्री बनीं। दोनों दलों के बीच कभी कोई चुनावी गठबंधन नहीं रहा। दोनों ने सिर्फ राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए चुनाव-पश्चात का गठबंधन किया। यह गैर -चुनावी गठबंधन अगले चुनाव के पहले ही टूट गया जो साफ कहता है कि बीजेपी इस गठबंधन की सरकार रहते हुए अगले आम चुनाव में उतरने का जोखिम नहीं लेना चाहती थी। प्रेक्षकों का कहना है कि यह सरकार 19 वीं लोकसभा के 2019 के मध्य से पहले निर्धारित चुनाव के लिए देश भर में मतदाताओं के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने के उसके मंसूबों की कामयाबी में रोड़ा बन गई थी।

जम्मू -कश्मीर में राष्ट्रपति की उदघोषणा से 19 जून से ' गवर्नर रूल ' लागू है। पीडीपी , मौजूदा विधान सभा में 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। विधान सभा की कुल 89 सीटें हैं। सदन में खुद बीजेपी के 25 , दिवंगत कद्दावर नेता शेख अब्दुल्ला की बनायी हुई नेशनल कॉन्फ्रेंस के 15, कॉंग्रेस के 12 और जम्मू -कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस दो विधायकों के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और जम्मू -कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के एक-एक और तीन अन्य अथवा निर्दलीय सदस्य भी हैं। दो सीटें महिलाओं के मनोनयन के लिए भी हैं। मौजूदा विधानसभा अभी भंग नहीं की गई है. विधान सभा के मौजूदा अध्यक्ष बीजेपी के ही निर्मल सिंह हैं।

अब्दुल्ला परिवार

नेशनल कॉन्फ्रेंस के मौजूदा नेता एवं शेख अब्दुला के पौत्र , ओमार अब्दुल्ला स्पष्ट कह चुके हैं कि उनकी पार्टी नई सरकार बनाने के लिए उत्सुक नहीं है। वह खुद 2008 के विधान सभा चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार में जनवरी 2009 से 1914 के पिछले विधान सभा चुनाव तक मुख्यमंत्री रहे थे। वह पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला के पुत्र हैं और 2002 में उनकी जगह पार्टी अध्यक्ष बने थे।किसी भी राज्य में पुत्र , पिता और पितामह के मुख्यमंत्री बनने का गौरव अब्दुल्ला परिवार को ही है।

भारत के संविधान से अलग 1957 में बने राज्य के संविधान संविधान के ख़ास प्रावधानों के तहत कायम विधान सभा के चुनाव छह बरस पर कराये जाते हैं। 1934 में पूर्ववर्ती जम्मू -कश्मीर रियासत के राजा हरि सिंह के शासन में तब के विधायी निकाय , प्रजा सभा के लिए प्रथम चुनाव हुए थे। इसमें मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित 21 सीटों में से 14 ' मुस्लिम कॉन्फ्रेंस ' ने जीती थी। इस रियासत का 1947 में विलय हो जाने के बाद भारत के संविधान से अलग बने राज्य के संविधान के तहत 1957 में चुनाव के बाद शेख अब्दुल्ला प्रथम मुख्यमंत्री बने। जम्मू -कश्मीर के 20 वें संविधान संशोधन , 1988 के जरिये विधान सभा की सीटों की संख्या 111 कर दी गयीं। इनमें से 24 पाकिस्तान अधिकृत हिस्से में हैं जहां राज्य के संविधान की धारा 48 के तहत चुनाव कराने की अनिवार्यता नहीं है। इसलिए सदन की प्रभावी सीटें 89 ही हैं जिनमें दो मनोनीत सीटें शामिल हैं। सदन की 46 सीटें कश्मीर घाटी में 37 जम्मू में और चार लद्दाख क्षेत्र में हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में छह में से तीन , जम्मू , उधमपुर और लद्दाख बीजेपी ने जीती थी। तीन अन्य , अनंतनाग बारामुला और श्रीनगर पीडीपी ने जीती थी। श्रीनगर लोकसभा सीट से निर्वाचित पीडीपी के तारीक अहमद कारा ने जब अक्टूबर 20 16 में इस्तीफा दे दिया तो वहाँ अप्रैल 2017 के उपचुनाव में फारूख अब्दुला जीते।

नया चुनाव या नई सरकार

स्पष्ट संकेत हैं कि केंद्र की सत्ता पर काबिज नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस का नेतृत्व कर रही बीजेपी नई विधान सभा के लिए चुनाव कम से कम अगले लोक सभा चुनाव तक नहीं कराना चाहती है। राज्य में लोकसभा की 1916 से ही रिक्त अनंतनाग सीट पर उपचुनाव ' सुरक्षा कारणों ' से अभी तक नहीं कराये गए हैं। अनंतनाग सीट 2016 में महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से उनके दिए इस्तीफा के कारण रिक्त है। अनंतनाग , जम्मू कश्मीर की छह लोकसभा सीटों में शामिल है।

बीजेपी ने जम्मू -कश्मीर में जो अपनी ही गठबंधन सरकार गिरायी उसके गहरे चुनावी निहितार्थ लगते हैं। भाजपा प्रवक्ता राम माधव ने ऐसा करने के दो बड़े कारण बताए जो उनके शब्दों में 'आतंकवाद को नियंत्रित करने में महबूबा मुफ़्ती सरकार की विफलता ' तथा गैर -मुस्लिम बहुल जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों की ' उपेक्षा ' है। राज्य में बीजेपी का जनाधार इन्हीं दोनों क्षेत्रों में है। स्पष्ट है कि भाजपा , कश्मीर को चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है. कश्मीर का नया मुद्दा , अगला आम चुनाव जीतने के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ाने वास्ते उसके काम आ सकता है। उसके लिए यह मुद्दा ,अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पुराने मुद्दा की तरह धार्मिक भावनाओं को भुना कर चुनावी वैतरणी पार करने के प्रयास में मदद कर सकता है। वह जम्मू और लद्दाख की उपेक्षा को मुद्दा बनाकर इस राज्य में भी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तेज कर सकती है।

खबरें हैं कि बीजेपी द्वारा जम्मू-कश्मीर में सज्जाद लोन गट और पीडीपी के ' बाग़ी ' विधायकों बाग़ियों के साथ मिलकर सरकार बनाने के प्रयास बहुत आगे बढ़ चुके हैं। लेकिन मुख्यमंत्री कौन बने इस पर खुरपेंच है। बीजेपी , केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री जितेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। यह इस राज्य में पहली बार किसी हिन्दू को मुख्य मंत्री बनाने की उसकी और उसके मातृ संगठन , राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पुराना सपना है। लेकिन सज्जाद लोन नही मान रहे हैं। बताया जाता है कि उन्होंने बीजेपी से कहा है कि अभी हिदू मुख्यमंत्री नही बनाया जाय और वह खुद वो ख़ुद मुख्यमंत्री बनने के लिए उत्सुक हैं।खबरों के मुताबिक़ महबूबा मुफ्ती का कहना है अगर बीजेपी , सज्जाद गनी लोन को मुख्यमंत्री बनाती है तो कश्मीर के साथ ' धोखा ' होगा। जानकार राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार पीडीपी के अंदरूनी हल्के में यह चर्चा है कि अगर बीजेपी , राज्य विधान सभा के पूर्व निर्धारित अगले चुनाव तक करीब डेढ़ साल नई सरकार चलाने की ' गारंटी ' देती है तो पीडीपी के 28 विधायकों में से 21 उसमें शामिल होने के लिए उत्सुक हैं।

सीपी नाम से मीडिया हल्कों में ज्ञात लेखक इस अंक से देश के आर्थिक , राजनीतिक , सामाजिक हालात पर साप्ताहिक चर्चा शुरू कर रहे हैं।