राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमेन रहे मरहूम जे एम खान आई ए एस के नागोर से लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद से ही मुस्लिम अधिकारी भी सेवानिवृत्ति के बाद सियासी अखाड़े मे कूदकर अपनी पसंद के दल से टिकट पाकर जनप्रतिनिधि बनने की कोशिशें करते रहे है। जिनमें सवाईमाधोपुर के अलाहद्दीन आजाद आर ए एस का पहले मदरसा बोर्ड चेयरमैन बनना एवं फिर विधायक बनना एक सफल उदाहरण है। आजाद के अलावा मरहूम जे एम खान आई ए एस ने नागोर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन वो जीत नही पाये थे।

हालांकि पुलिस सेवा के आईजी पद से रिटायर सीनियर अधिकारी लियाकत अली खां व मुराद अली अब्रा के टिकट का जूगाड़ बैठने के भरषक कोशिश के बावजूद उन्हें अभी तक किसी दल का टिकट तो नही मिला लेकिन अशोक गहलोत सरकार में लियाकत अली राजस्थान वक्फ बोर्ड चेयरमैन बनने मे कामयाब रहे हैं। इनके अलावा एम एस खान आई ए एस व ऐ आर खान आई ए एस के सेवानिवृत्त होने के बाद से वो सियासत मे दखल तो खासा रखते हैं लेकिन उनको टिकट पाने के लिए दौड़ लगाते नही देखा जा रहा है।


राजस्थान मे चार महीने बाद होने वाले आम विधानसभा सभा चुनाव में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे मोहम्मद तारिक आलम आई पी एस व हबीब खा गोरान आई पी एस के चुनाव लड़ने की सम्भावना जताई जा रही है। मोहम्मद तारिक आलम के पिता मरहुम मंजूर आलम प्रदेश के नामी ऐडवोकेट व मुस्लिम लीग के प्रदेश अध्यक्ष रहे है। जबकि हबीब खान स्वयं राजस्थान लोकसेवा आयोग के चेयरमैन रहने के साथ साथ उनके पिता मरहुम भवंरु खा का खिदमत ऐ खल्क करने में बडा नामो की फेहरिस्त मे शुमार होता रहा है। उक्त अधिकारियों के अलावा जल्द सेवा निवृत्त होने वाले अशफाक हुसैन आई ए एस का नाम भी चुनाव लड़ने वालो की सूची में अक्सर चर्चा में रहता आया है।

कुल मिलाकर यह है कि लियाकत अली, मुराद अली अब्रा, अलाऊद्दीन आजाद, तारिक आलम, हबीब खां गोरान व अशफाक हुसैन जैसे रिटायर्ड मुस्लिम आई ए एस व आई पी एस अधिकारियों के अगले चुनाव में टिकट पाकर चुनाव लड़ने वालो की लिस्ट मे शुमार होना माना जा रहा है। जबकि नीसार अहमद आई जी पी , सरवर खान आई जी पी , ऐ आर खान आई ए एस, व एम एस खान आई ए एस जस्टिस मोहम्मद असगर अली चौधरी के अलावा जस्टिस भवंरु खा के मिल्ली खिदमात में लगे रहने के बावजूद उनके चुनाव लड़ने की चर्चा होना अभी तक सूनाई नही दिया है। जबकि इन अधिकारियों की ऊपरी सियासी हल्को मे अच्छा खासा असर देखा जाता रहा है। समुदाय के दानिशवर लोगों के एक तबके का मानना है कि सरकारी पेचिदगियों से भलीभांति परिचित व अच्छे खासे पढे लिखे लोग सियासत मे अगर जाते है तो समुदाय के हित मे बडा बदलाव नजर आ सकता है।