21 जुलाई को द गार्डियन ने एक खबर प्रकाशित की, “नाइन एक्टिविस्ट्स देफेन्डिंग द अर्थ फ्रॉम वायलेंट असाल्ट”. इसमें दुनिया के चुनिन्दा 9 लोगों की जानकारी है जो लगातार जान जोखिम में डालकर भी पर्यावरण की रक्षा में संलग्न हैं. इसमें भारत से केवल एक नाम है, फातिमा बाबू. 65 वर्षीया फातिमा बाबू अंगरेजी की प्रोफेसर रह चुकी हैं और पिछले 24 वर्षों से तूतीकोरिन में स्टरलाइट कॉपर के विरुद्ध आन्दोलन की अगुवाई कर रही हैं.

तमिल नाडु के तूतीकोरिन में स्टरलाइट कॉपर के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे लोगों पर 22 मई को पुलिस ने गोलियां चलाई और खबरों के मुताबिक़ कुल 13 लोग मौके पर ही मारे गए. फातिमा बाबू के अनुसार आन्दोलन कहीं से भी उग्र नहीं था. आन्दोलनकारियों को अच्छी तरह पता था कि उनके साथ महिलायें और बच्चे भी हैं. इतना जरूर था कि भारी पुलिस बल को देखते हुए लाठी चार्ज या आंसू गैस के गोले छोड़े जाने का अनुमान था, इसीलिए महिलाओं को हिदायत दी गयी थी कि वे ऐसे कपडे पहन कर आयें जिससे जरूरत पड़े तो आसानी से भागा जा सके. पर, पुलिस की योजना कुछ और थी, वे लोगों को डराना या घायल करना नहीं चाहते थे, वे तो लोगों को मारना चाहते थे. पुलिस ने पूरी भीड़ में गोलियां दागीं, वे आन्दोलन को कुचलना चाहते थे और लोगों को सबक सिखाना चाहते थे कि यदि आवाज उठाओगे तो हम तुम्हे मार देंगे.

फातिमा बाबू के अनुसार पूरे विश्व में पर्यावरण प्रहरियों को आतंकवादी का तमगा दिया जा रहा है, पर हम अपने देश के विरुद्ध नहीं हैं. हम तो देशभक्त हैं और केवल इतना चाहते हैं कि केवल लाभ के लिए देश न बेचा जाए. जब फातिमा बाबू से पूछा गया कि तमिलनाडु सरकार के स्टरलाइट कॉपर को बंद करने के आदेश के बाद वो खुश होंगी, तब उन्होंने कहा – वो खुश नहीं हैं क्योकि लोगों के जान की कीमत बहुत भारी है और पुराने अनुभव यही बताते हैं कि उद्योग की बंदी एक नाटक हो सकता है.

यहाँ यह ध्यान रखना जरूरी है कि वर्ष 2013 में भी तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आदेश के बाद स्टरलाइट कॉपर में ताला लग गया था, जिसे जब उद्योग ने पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाए गए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में बोर्ड के आदेश के विरुद्ध याचिका दायर किया तब ट्रिब्यूनल ने उद्योग के पक्ष में फैसला सुना दिया और तालाबंदी ख़त्म हो गयी. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है, फिर से स्टरलाइट कॉपर ने तालाबंदी के विरुद्ध ट्रिब्यूनल में याचिका दायर किया है. कुछ दिनों पहले तक सुनवाई में उद्योग को कोई राहत नहीं दी गयी, पर तमिलनाडु सरकार ने अपना पक्ष भी नहीं रखा.

स्टरलाइट कॉपर तरह तरह से अपना प्रभाव मजबूत करने का प्रयास कर रहा है. सोशल साइट्स पर हजारों लोगों के बेरोजगार होने का प्रचार किया जा रहा है. मेनस्ट्रीम मीडिया भी इस प्रचार में उद्योग का साथ दे रहा है. दरअसल इस तरह के हिचकोले सबके लिए फायदे का सौदा होता है. मीडिया अपना फायदा देखता है, तो दूसरी तरफ राजनैतिक पार्टियों का चंदा बढ़ जाता है.

बड़े बड़े लोग भी खुले आम स्टरलाइट कॉपर के समर्थन में सामने आ रहे हैं, पर इन लोगों ने आन्दोलन में मरे लोगों पर एक शब्द भी नहीं कहा. नए पर भारे भरकम उद्योगपति रामदेव इसे अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र बताते हैं. रामदेव ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत भोले भाले स्थानीय लोगों को उद्योग के विरुद्ध खड़ा किया गया, उद्योग तो देश के विकास का मंदिर हैं और इन्हें बंद नहीं किया जाना चाहिए. रामदेव का कथन आश्चर्यजनक नहीं था, वे खुद भी पर्यावरण और प्रदूषण के कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हैं. पर, जग्गी वासुदेव, स्वयंभू सद्गुरु, तो पर्यावरण पर लम्बे लम्बे भाषण देते है, नदियों की सफाई पर रैली आयोजित करते हैं, उन्होंने उद्योग बंद करने को लिंचिंग करार दिया. उनके अनुसार पर्यावरण या प्रदूषण के मामले न्यायालयों में निपटाए जा सकते हैं, पर बड़े उद्योग की हत्या (लिंचिंग) देश के लिए आत्मघाती है.

स्टरलाइट कॉपर का हमेशा यही कथन रहा है कि वह पर्यावरण और प्रदूषण के सारे नियन-कानूनों का पालन करता रहा है. पर, जब उद्योग बंद है तब भी उससे सल्फुरिक एसिड का रिसाव होने की खबरें आती रहीं. यह अपने आप में एक औद्योगिक समूह है, जहाँ वर्तमान में प्रतिवर्ष 400000 टन कॉपर, 1.2 मेट्रिक टन सल्फुरिक एसिड और 2.2 मेट्रिक टन फास्फोरिक एसिड का उत्पादन किया जाता है, साथ में एक ताप बिजली घर भी है. पड़ोस में बसे गाँव, पन्दारामपट्टी में वर्ष 1996 से अबतक कैंसर के 200 से अधिक मामले आ चुके हैं. और अधिकतर आबादी सांस के रोगों से पीड़ित है.

हाल में ही जल संसाधन के राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने राज्य संभा में बताया, स्टरलाइट कॉपर के आसपास के क्षेत्र में तमिलनाडु राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लिए गए भूजल के नमूनों में आयरन, लेड, फ्लोरीन, कैडमियम और निकल की सांद्रता मान्य सीमा से बहुत अधिक थी. सेंट्रल ग्राउंडवाटर बोर्ड द्वारा कराये गए भूजल के परीक्षण में भी लेड, कैडमियम, क्रोमियम, मैंगनीज, आयरन, आर्सेनिक और टोटल डीजोल्वड सोलिड्स की सांद्रता तय सीमा से अधिक मिली.

हमारे देश में उद्योगों को हरेक चीज खरीदने की आदत पड़ गयी है क्यों कि हर कोई बिकने को तैयार बैठा है, ऐसे में फातिमा बाबू का यह कथन बिलकुल सत्य प्रतीत होता है, पुराने अनुभव यही बताते हैं कि उद्योग की बंदी एक नाटक हो सकता है.