इंडिया स्पेंड नामक संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 8 वर्षों (2010 से 2017) के दौरान गायों के नाम पर भीड़ द्वारा कुल हमलों में से 51 प्रतिशत मुस्लिम थे जिन्हें निशाना बनाया गया और इसमें मरने वाले कुल २५ व्यक्तियों में से 84 प्रतिशत मुस्लिम थे. पिछले 8 वर्षों के दौरान इस तरह की जितनी भी घटनाएँ हुईं उनमें से 97 प्रतिशत घटनाएँ मई 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद हुईं. ये सभी तथ्य इतना तो उजागर करते हैं कि गाय या दूसरे मामलों में अतिवादी हिन्दू संगठनों के सदस्य भीड़ की शक्ल में मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों को मार रहे हैं और इन्हें सरकारी समर्थन प्राप्त है.

हाल में सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के कई दिनों बाद केंद्रीय गृह मंत्री ने आनन-फानन में इस मामले में दो समितियों का गठन किया है. इस विषय पर लोक सभा में बहस के दौरान स्पीकर सुमित्रा महाजन ने विपक्षी दलों द्वारा शोर मचाने पर कहा, यहाँ कुछ तो हो रहा है. अब जब लोक सभा की स्पीकर इससे खुश हैं कि यहाँ ‘कुछ’ तो हो रहा है तब पूरी बहस ही बेमानी हो जाती है. वैसे भी लगातार हो रही भीड़ द्वारा हत्याओं के बीच भी केंद्र सरकार अपनी तरफ से अभी तक समितियों की ही घोषणा कर पाई है, इसमें भी पहली समिति एक महीने बाद दूसरी समिति को रिपोर्ट सौपेगी. फिर दूसरी समिति इसका अध्ययन करेगी, फिर रिपोर्ट प्रधानमंत्री को दी जायेगी. यकीन मानिए, इन समितियों का गठन केवल सर्वोच्च न्यायालय को बताने के लिए किया गया हैं कि केंद्र सरकार इस मामले में सजग है. पहली समिति की रिपोर्ट आने के बाद कुछ नहीं होना है, क्यों कि पूरी सरकार तो चुनावी मोड में चली गयी है और बीजेपी तो ऐसे ही भीड़तंत्र के समर्थन से जीत सकती है.

वाशिंगटन पोस्ट ने भीड़ द्वारा हत्याओं की हरेक घटना को प्रकाशित किया है. इसके हरेक समाचार में एक वाक्य जरूर मिलता है, भारत में कुल जनसँख्या में से 80 प्रतिशत हिन्दू हैं और मात्र 14 प्रतिशत मुस्लिम हैं. 23 जुलाई को प्रकाशित समाचार के अनुसार पिछले कुछ महीनों के दौरान भीड़ ने 25 व्यक्तियों की हत्या बच्चा चुराने के बहाने से की और 20 लोगों की हत्या गाय के नाम पर कर दी. इस समाचार में राहुल गांधी के ट्वीट, “मोदी के क्रूर भारत” का भी जिक्र है. हिन्दू अतिवादी संगठन अपने आप को गौ-रक्षक बताते हैं और इनका सम्बन्ध प्रधानमंत्री मोदी के बीजेपी से है.

द गार्डियन के नाइजीरिया संस्करण में २२ जुलाई को मध्य प्रदेश के सिंगरौली में बच्चा चोरी के शक में एक महिला को भीड़ द्वारा मारे जाने की खबर है. बताया गया है कि यह सब व्हात्ट्सऐप के मेसेज के माध्यम से किया गया, जबकि व्हात्ट्सऐप लगातार बता रहा है कि उसने ऐसी खबरों को रोकने के पर्याप्त उपाय किये हैं. खबर के अनुसार भीड़ द्वारा हिंसा भारत के लिए नयी बात नहीं है, पर स्मार्टफ़ोन के विस्तार ने अफवाहों को ज्यादा लोगों तक पहुंचाना शुरू कर दिया है.

21 जुलाई के द गार्डियन के अनुसार अलवर की घटना के बाद फिर से स्पष्ट है कि हिन्दू-अतिवादी संगठनों का वर्चस्व बढता जा रहा है. ज्यादातर राज्यों में मांस के लिए गाय को मारने पर प्रतिबन्ध है फिर भी 2014 में नरेन्द्र मोदी की हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार आने के साथ ही गौ-रक्षा के नाम पर हिंसाएँ तेजी से बढीं हैं. मानवाधिकार संगठन और मुस्लिमों का कहना है कि मोदी समेत सरकार के अन्य मंत्री इसकी निंदा करने से बचाते हैं और पुलिस लचर रवैया अपनाती है. खबर में असदुद्दीन ओवैसी के ट्वीट को भी शामिल किया गया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत में गाय को जीने का मौलिक अधिकार तो है, पर मुस्लिमों को नहीं. मोदी सरकार के 4 साल भीड़ की हिंसा के हैं.

इसी खबर में आगे कहा गया है, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए इसके लिए अलग से सख्त कानून बनाने पर विचार करने को कहा, पर राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया बताते हैं कि गाय के नाम पर भीड़ द्वारा लोगों के मारे जाने को रोकने के लिए किसी अलग क़ानून की जरूरत नहीं है. इस घटना के बाद स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार के दौरान हिन्दू अतिवादी संगठन एक प्राइवेट मिलिट्री जैसा काम कर रहे हैं और क़ानून का उन्हें कई डर नहीं है.

द गार्डियन में 23 जुलाई को प्रकाशित खबर का शीर्षक है, “इंडियन पुलिस टुक टी-ब्रेक बिफोर अटेन्डिंग टू लिंचिंग विक्टिम”. इसमें कहा गया है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में हिन्दू-राष्ट्रवादी पर आरोप लगते रहे हैं कि गाय के नाम पर बढ़ती मुस्लिमों के प्रति हिंसा की सरकार लगातार अनदेखी कर रही है. मावाधिकार संगठन आक्षेप लगा रहे हैं कि हिन्दुओं की हत्यारी भीड़ उसी पार्टी से ताल्लुक रखती है जो 2014 में सत्ता में आयी.

स्पष्ट है कि ऐसी खबरों पर देश का मीडिया कितने भी लीपापोती करे, पूरी दुनिया में भारत के भीड़ की हिंसा और सरकार की नाकामी के चर्चे हैं.