एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने पिछले 7 अगस्त को विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव आयोग को दिये गये वित्तीय वर्ष 2016 – 17 में प्राप्त चंदे के विवरण से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी की.

रिपोर्ट में शामिल कुल 48 पार्टियों में से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी एवं आल इंडिया मजलिस – ए – इत्तेहाद – उल – मुस्लिमीन समेत 16 दलों को चुनाव आयोग को चंदे से संबंधित अपना ब्यौरा देना अभी बाकी है. इनमें से छह पार्टियों ने तो यह दावा किया है कि पिछले वित्तीय वर्ष में उन्हें कोई चंदा प्राप्त नहीं हुआ है. चंदा नहीं प्राप्त करने वाले दलों में नेशनल कांफ्रेंस और आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) शामिल हैं.

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत आयकर से पूरी छूट पाने के लिए राजनीतिक दलों को 20 हजार रूपए से ऊपर के सभी चंदे को सार्वजानिक करना जरुरी होता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, बाकी बचे दलों ने कुल 91 करोड़ रूपए के चंदे की घोषणा की. चंदा पाने की दृष्टि से सबसे खुशकिस्मत शिवसेना रही जिसे 26 करोड़ रूपए मिले. आम आदमी पार्टी को 25 करोड़ रूपए और शिरोमणी अकाली दल को 15 करोड़ रूपए मिले. इस तीन दलों को कुल चंदे का तीन – चौथाई हिस्सा प्राप्त हुआ.

चंदे का ब्यौरा घोषित करने वाले अधिकांश राजनीतिक दलों की आमदनी में इससे पहले के वित्तीय वर्ष के मुकाबले गिरावट दर्ज की गयी. शिवसेना के चंदे में 70% गिरावट देखी गयी. द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) के चंदे में 99% की कमी हुई. लालू यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल को 88% कम चंदा मिला, जबकि नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाईटेड) के चंदे में 28% की कमी आयी.

आम आदमी पार्टी एकमात्र ऐसी पार्टी रही जिसने देश के बाहर से आये चंदे का खुलासा किया. उसके पास कनाडा, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात समेत 27 देशों से कुल 8.80 करोड़ रूपए के चंदे आये, जोकि उसे प्राप्त कुल चंदे का एक – तिहाई था. उसे 17 भारतीय राज्यों से नकद चंदे भी मिले.

आम आदमी पार्टी को मिले बड़े चंदे में टीडीआई इन्फ्राटेक द्वारा दिया गया 25 लाख रूपए शामिल है. एल्लेग्रो कॉरपोरेट फाइनेंस एडवाइजर्स से चंदे के तौर पर उसे 16 लाख रूपए मिले. एल्लेग्रो कैपिटल ने पार्टी को 9 लाख रूपए का चंदा दिया. सत्या एलेक्ट्रोरल ट्रस्ट ने तो पार्टी को एक करोड़ रूपए के चंदे से नवाजा. ये सभी दानदाता दिल्ली में पंजीकृत हैं. कुल मिलाकर, आम आदमी पार्टी को मिले चंदे में पिछले साल के मुकाबले चार गुणा वृद्धि हुई.

एडीआर से जुड़े वेबसाइट माईनेता डॉट इन्फो के अनुसार, सत्या एलेक्ट्रोरल ट्रस्ट ने अन्य राजनीतिक दलों को भी उदारतापूर्वक चंदा दिया. उसकी उदारता से लाभान्वित होने वाले दलों में शिरोमणी अकाली दल, समाजवादी पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी शामिल हैं. इन दलों को ट्रस्ट से चंदे में क्रमशः 9 करोड़ रूपए, 6.5 करोड़ रूपए और 13.9 करोड़ रूपए प्राप्त हुए.

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को तो सत्या एलेक्ट्रोरल ट्रस्ट ने दिल खोलकर चंदा दिया. ट्रस्ट ने भाजपा को चंदे में 241.20 करोड़ रूपए दिये.

निजी कंपनियों द्वारा वित्त पोषित इस किस्म के एलेक्ट्रोरल ट्रस्ट (चुनावी ट्रस्ट) दरअसल निजी कंपनियों को अर्ध – गुमनामी में रहते हुए राजनीतिक दलों को चंदा देने में सहूलियत प्रदान करते हैं. ऐसे उपायों की वजह से, पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष किए गए खुलासे के बावजूद यह निर्धारित करना मुश्किल होता है कि किसने किसको कितना चंदा दिया. और इस साल की शुरुआत में लोकसभा द्वारा बिना चर्चा के पारित वित्त विधेयक से इस किस्म का स्वतंत्र आकलन और भी कठिन हो जायेगा.

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा "सिस्टम को काफी हद तक साफ करने वाले” एक उपाय के रूप में वर्णित एलेक्ट्रोरल बांड (चुनावी बांड) की योजना से किसी पार्टी के मिलने वाले चंदे, जिसके बारे में आम तौर पर देने वाले को छोड़कर सरकार और शायद प्राप्तकर्ता समेत किसी को भी मालूम नहीं होता, का स्रोत जानने में मदद मिलेगी.

इस दृष्टिकोण से एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में राजनीतिक दलों से आग्रह किया है कि वे सूचना के अधिकार के तहत मांगी जाने वाली जानकारी के जवाब में अपनी आमदनी के बारे में खुलासा करें. एडीआर ने यह भी सुझाया कि किसी राजनीतिक दल द्वारा इस संबंध में चुनाव आयोग को देर से अथवा अधूरी जानकारी दिए जाने की स्थिति में उसकी सभी आमदनी को आयकर के दायरे में लाया जाये.

महंगे चुनावों के इस रहस्मय युग में, किसी भी एलेक्ट्रोरल ट्रस्ट (चुनावी ट्रस्ट) ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के प्रति उदारता नहीं दिखाई. माईनेता डॉट इन्फो के अनुसार, सीपीआई को सबसे अधिक चंदा अपनी राज्य समितियों और अपने सदस्यों से मिली. पार्टी की तमिलनाडु राज्य समिति ने 12.70 लाख रूपए का चंदा दिया. उसके सदस्यों में डी. राजा ने 16 लाख और सी. जयदेवन ने 12 लाख रूपए दिये. सीपीएम को तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज के केंद्रीय संगठन की ओर से 2.5 करोड़ रूपए मिले. सीताराम येचुरी एवं मोहम्मद सलीम ने क्रमशः 4.8 लाख और 4.5 लाख रूपए का योगदान दिया.

कुल मिलाकर, एडीआर की रिपोर्ट से यह पता चलता है कि भारत की राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा घोषित कुल आय का केवल 9% जनता को ज्ञात स्रोतों से आता है.

बहरहाल, पार्टी चालू है.