इतिहासकार डॉ. रामचंद्र गुहा उन लोगों में से थे जिन्होंने सबसे पहले आगे आकर देशभर के अलग – अलग हिस्सों से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अधिवक्ताओं की हाल में हुई गिरफ्तारी की सार्वजानिक रूप से कठोर आलोचना करते हुए उसे “अलोकतांत्रिक” करार दिया था.

इन घटनाओं और इसके खिलाफ विभिन्न लोगों व संगठनों द्वारा बयान जारी किये जाने के बाद, द सिटिज़न को डॉ. गुहा का साक्षात्कार करने और उनसे वर्तमान हालातों तथा असहमति और लोकतंत्र को लेकर देश में चल रही बहस के बारे में कुछ सवाल पूछने का मौका मिला.

पेश है साक्षात्कार के अंश :

द सिटिज़न : हाल में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद आपने एक बेहद सख्त बयान जारी किया था. आपकी नाराजगी की वजह?

डॉ. गुहा : जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत हिरासत में लिए गया है. गिरफ्तार किये गये लोगों में से कईयों की राजनीति से मैं सहमत नहीं हूं, लेकिन यह सर्वविदित है कि इनमें से कोई भी आतंकवादी नहीं है और न ही देश के खिलाफ जंग कर रहा था. यह खालिस सत्ता के दुरूपयोग का मामला है. बेकार की कहानियों के जरिए पुणे पुलिस द्वारा परोसे जा रहे बकवासों से यह बिल्कुल साफ़ जाहिर है. यह राज्य द्वारा कानून और पुलिस के दुरूपयोग का मामला है.

द सिटिज़न : क्या आपको लगता है कि हम बदतर हालातों की ओर बढ़ रहे हैं?

डॉ. गुहा : इस बारे में और क्या कहा जाये. फ़िलहाल यह जरुरी है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप करे और हालात का जायजा ले.

द सिटिज़न : आपने आदिवासियों की जमीन हड़पने के बारे में बात की थी. क्या आपको लगता है कि इन गिरफ्तारियों के पीछे सबसे बड़ा मुद्दा औद्योगिक घरानों द्वारा जमीन कब्ज़ा करना है?

डॉ. गुहा : निश्चित रूप से. सुधा भारद्वाज जैसे लोगों को औद्योगिक घरानों द्वारा आदिवासियों की जमीन और उनके संसाधनों पर कब्ज़ा करने के खिलाफ लड़ने की वजह से फंसाया गया है.

द सिटिज़न : क्या आप अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं? आपको भी निशाना बनाया जा चुका है?

डॉ. गुहा : मुझे अपनी सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं है. मुझे जो कुछ भी सामना करना पड़ रहा है, उससे मैं कतई चिंतित नहीं हूं. इस समय मेरी चिंताएं सुधा भारद्वाज जैसे लोगों की तुलना में बहुत ही छोटी हैं.

द सिटिज़न : यह लोकतंत्र पर एक हमला है.... क्या भारत इससे उबर पायेगा?

डॉ. गुहा : यह एक प्रकार से लोकतंत्र का क्षरण है. यह कानून और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है. और इसके खिलाफ लडना जरुरी है.

द सिटिज़न : क्या राजनीतिक विपक्ष देश को इन हालातों से बाहर निकाल लाने में सक्षम है?

डॉ. गुहा : राजनीतिक विपक्ष को अपनी गलतियों की पहचान करनी चाहिए और उन्हें दुरुस्त करने की दिशा में काम करना चाहिए. एनडीए भले ही आज कानूनों का दुरूपयोग कर रहा है, लेकिन इन कानूनों को लाने वाले यूपीए के लोग थे. चिदंबरम आज मानवाधिकारों के पैरोकार बने हुए हैं, लेकिन यूपीए के ज़माने में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिवक्ताओं की गिरफ्तारी में उनकी अहम भूमिका थी.