पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर के महज कुछ सौ की आबादी वाला ईसाई समुदाय पिछले एक पखवाड़े से लगातार दक्षिणपंथी कट्टरवादी समूहों के हमलों का शिकार हो रहा है. कट्टरवादी समूहों द्वारा ऐसा कथित रूप स्थानीय पुलिस की शह पर किये जाने की ख़बर है.

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के भूतपूर्व सदस्य ए. सी. माइकल के अनुसार, पादरियों को कथित रूप से गिरफ्तार किया गया और उन्हें आधी रात को उनके घरों से उठाया गया. और तो और, चर्च जाने वाली सड़क को अवरुद्ध किया गया और चर्च जाने वाले लोगों को पुलिस द्वारा जबरन वापस घर भेजा गया. यही नहीं, अन्य पादरियों को धमकाया, पीटा और चर्च की गतिविधियों में भाग लेने से रोका गया.

गिरफ्तार किये गये लोगों पर “फर्जी धर्मांतरण” कराने का आरोप लगाया गया है. श्री माइकल ने बताया कि हिरासत में लिए गये कई लोगों पर तो कोई आरोप भी नहीं लगाया गया. पुलिस का कहना है कि वो मीडिया में चर्च अधिकारियों द्वारा स्थानीय लोगों को चमत्कार और प्रलोभन के नाम पर लुभाये जाने की खबरों के आधार पर कार्रवाई कर रही है.

जौनपुर शहर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सड़क – मार्ग के जरिए डेढ़ घंटे की दूरी पर है.

जौनपुर जिले के अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर कथित रूप से इस महीने अबतक निम्नलिखित घटनाएं हुई हैं :

5 सितम्बर : पादरी दुर्गा प्रसाद एवं कई अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया.

11 सितम्बर : कथित रूप से दक्षिणपंथी समूहों के दबाव में पादरी राजेंद्र चौहान को छह अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया और तीन दिन बाद जमानत पर रिहा किया गया.

13 सितम्बर : पादरी गुलाबचंद को चर्च के तीन अन्य अधिकारियों के साथ गिरफ्तार किया गया और बिना कोई आरोप लगाये अगले दिन छोड़ दिया गया.

13 सितम्बर : पादरी रवीन्द्र के नेतृत्व में होने वाली शुक्रवार की एक प्रार्थना सभा पर धार्मिक कट्टरपंथियों की एक भीड़ द्वारा हमला.

13 सितम्बर : गांव के सरपंच के भाई द्वारा चर्च के अधिकारी राम मिलन की पिटाई और उनपर जबरन प्रार्थना सभा बंद करने का दबाव.

13 सितम्बर : प्रार्थना सभा में व्यवधान, पुलिस ने पादरी राम रतन और पादरी थॉमस ओसूफ (मुंबई वाले) को हिरासत में लिया.

16 सितम्बर : पुलिस ने भूलनडीह स्थित चर्च जाने वाली सभी सडकों को अवरुद्ध किया और रविवार को चर्च जाने वाले सभी लोगों को घर लौटने को कहा. भूलनडीह चर्च के दीपक, राहुल, चंद्रभूषण, राजेन्द्र और वीरेन्द्र को गिरफ्तार किया गया और तीन दिन बाद जमानत पर रिहा किया गया.

16 सितम्बर : एक चर्च सेवा के दौरान पादरी अनिल कुमार, प्रदुमन, दीपक कुमार, मोनू और रविंदर को गिरफ्तार किया गया और दो दिन बाद जमानत पर रिहा किया गया.

23 सितम्बर : स्थानीय पुलिस के साथ धार्मिक कट्टरपंथियों की एक भीड़ ने गांव में घूम – घूमकर नारे लगाये और फिर चर्च में घुसकर रविवार की गतिविधियों में व्यवधान डाला. पादरी अशोक राजभर, उनके पिता और चर्च के तीन अन्य सदस्यों को हिरासत में लिया गया. बाद में पादरी राजभर को रिहा कार दिया गया.

23 सितम्बर : रविवार की गतिविधियों का संचालन करते एक अन्य पादरी को गिरफ्तार किया गया.

23 सितम्बर : रविवार की गतिविधियों का संचालन करते पादरी छबिलाल को गिरफ्तार किया गया.

24 सितम्बर : पुलिस ने पादरी नन्हे लाल को चर्च को बंद करने को कहा.

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के भूतपूर्व सदस्य ए. सी. माइकल, जिनका मानना है कि इन हमलों का एक राजनीतिक मकसद है, ने द सिटिज़न से कहा, “यह अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर ईसाईयों, को डराने की रणनीति का एक हिस्सा है. वे उत्तर प्रदेश में तथाकथित धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक लाने की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं. यह विधेयक और कुछ नहीं बल्कि धर्मांतरण विरोधी एक कानून है.”

संविधान द्वारा प्रदत्त "विवेक की स्वतंत्रता और बिना किसी बाधा के धार्मिक विश्वास, पालन और प्रचार की स्वतंत्रता" के बावजूद उड़ीसा और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों ने अतीत में इस किस्म का कानून पारित किया है, जिसका इस्तेमाल कथित रूप से खासकर ईसाई मिशनरियों को निशाना बनाने के लिए किया गया है.

श्री माइकल ने बताया, “लेकिन धर्मातरण के लिहाज से, उत्तर प्रदेश में तो ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था. उन्हें इस किस्म के कानून की जरुरत नहीं है.”

उन्होंने आगे जोड़ा, “हमने पुलिस से पूछा कि वे ऐसा किस आधार पर कर रहे हैं, तो उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने ज़ी न्यूज़ (Zee News) पर देखा कि जबरन धर्मान्तरण कराया जा रहा है. लेकिन मीडिया रिपोर्ट अगर किसी गिरफ्तारी का आधार हो सकता है, तो वरिष्ठ मंत्रियों को जेल में होना चाहिए.”

श्री माइकल ने यह भी कहा कि गलत खबरें छापकर बड़े मीडिया संस्थानों ने इन हमलों में सांठ – गांठ की है. “दैनिक जागरण ने तो एक कदम आगे जाकर यह ख़बर छापी कि एक पादरी ने तो एक लड़की का अपहरण किया और उसके परिवारवालों से संपत्ति की मांग की. समुदाय में शांति से रह रहा कोई पादरी किसी का अपहरण कैसे कर सकता है? हमने इसकी तहकीकात की और पाया कि जिस लड़की का नाम लिया गया है वह अब भी वहीँ है और पादरी भी वहीँ है. इस किस्म की खबर संपादक की सहमति के बगैर नहीं छप सकती. आखिर वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?”