कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को केवल वोट बैंक बनाये रखने से अलग हटने को किसी भी सूरत मे तैयार नही लगती है। कांग्रेस मुस्लिम समुदाय के वोट किसी तरह अपने पक्ष मे डलवाना चाहती है लेकिन सत्ता व संगठन मे उन्हें उचित व सम्मानजनक प्रतिनिधित्व देने को कतई तैयार नही नजर आती है। राजस्थान कांग्रेस नेताओं की लम्बी खींचतान व उठापटक के बाद कांग्रेस हाईकमान ने दो महीने बाद होने वाले आम विधानसभा चुनाव में विजय पाकर सत्ता पर काबिज होने की उम्मीद के लेकर राजस्थान में कुल नौ कमेटियों का गठन किया है। जिसमे एक भी समिति का अध्यक्ष मुस्लिम को नही बनाया गया है। कहने को केरल राज्य की मूल निवासी व ईसाई समुदाय से ताल्लूक रखने वाली महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रेहाना रियाज को अल्पसंख्यक कोटे मे प्रोटोकॉल समिति का अध्यक्ष बनाकर काले पर सफेद करने की कोशिश जरुर की है लेकिन मुस्लिम समुदाय इसको सफेद मानने को कतई तैयार नही दिख रहा है।

राजस्थान के दिग्गज मानने वाले नेता प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलेट, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व राष्ट्रीय महामंत्री सीपी जोशी स्वयं एक एक समिति के अध्यक्ष बन गये है एवं बाकी बची छह समितियों पर अपने खास चाहत वाले नेताओं को अध्यक्ष बनाकर इतिश्री करली है। चुनाव समिति के अध्यक्ष सचिन पायलेट व समन्वय समिति के अध्यक्ष अशोक गहलोत स्वयं बने हैं एवं प्रचार एवं प्रकाशन समिति का अध्यक्ष पद सीपी जोशी के खाते मे डाल दिया।

उक्त तीनो कांग्रेस नेताओं के समिति अध्यक्ष बनने के बाद बची छह समितियों मे से घोषणा पत्र समिति का अध्यक्ष हरीश चौधरी (जाट), परिवहन व आवास समिति के अध्यक्ष परशादीलाल मीणा (एसटी), प्रचार समिति का अध्यक्ष रघु शर्मा (ब्राह्मण), मिडिया व सम्पर्क समिति अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा (जाट), प्रोटोकॉल समिति अध्यक्ष रेहाना (ईसाई), व अनुशासन समिति अध्यक्ष भंवरलाल मेघवाल (एसटी) को बनाया गया है। उक्त अध्यक्षों को जातिवार देखे तो एक गुर्जर, एक माली, दो जाट, दो ब्राह्मण, एक एसटी, एक एससी व एक ईसाई बिरादरी से आते है।

उक्त अध्यक्षों को नेताओं के नजदीकी के तौर पर आंकलन करे तो इसमे प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट की बल्ले बल्ले है। रघु शर्मा, भवरलाल मेघवाल, गोविंद डोटासरा व रेहाना सचिन पायलट के काफी करीबी माने जाते है। हरीश चौधरी को राहुल गांधी की पसंद व परशादीलाल मीणा को अशोक गहलोत का करीबी माना जाता है।

गुजरात चुनावों के समय से मुस्लिम समुदाय से एक दूरी बनाकर चलने के फार्मूले को राजस्थान में भी इस्तेमाल किया जा रहा है और कांग्रेस सोफ्ट हिन्दूत्व की पटरी पर चलकर सत्ता पाने की कोशिश करती नजर आयेगी। इसलिये कांग्रेस मुस्लिम मत को पाना चाहती है लेकिन आम मतदाताओं के सामने मुस्लिम मतदाताओं को संगठन मे सम्मानजनक प्रतिनिधित्व देने से दूर भागती दिखना चाहती है।

राजस्थान के 13-15 प्रतिशत वाले मुस्लिम समुदाय को सत्ता व संगठन में सम्मानजनक हिस्सा नही देने की राह पर चलते हुये कांग्रेस केवल भाजपा का चेहरा व डर दिखाकर सत्तर सालो की तरह अब भी मुस्लिम मत प्राप्त करना चाहती है। लेकिन कांग्रेस को इस तरफ भी देख लेना चाहिये कि पहले किसी ना किसी दल या निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ चुके मुस्लिम उम्मीदवार अब उनकी उपेक्षा के चलते बसपा से हाथ मिलाकर उम्मीदवार बनने की तैयारी कर चुके है। जिनमें पूर्व में कांग्रेस के उम्मीदवार अधिक बताये जाते है।