भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली गुजरात की राज्य सरकार धार्मिक आधार पर भेदभाव बरतने के मसले पर सवालों के घेरे में है. एक सामाजिक कार्यकर्ता ने एक खास धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों को ही करदाताओं के पैसे से लाभान्वित किये जाने के खिलाफ एक जनहित याचिका गुजरात उच्च न्यायालय में दायर की है. याचिकाकर्ता की मांग है कि सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों को एक समान दृष्टि से देखा जाये और कोई भेदभाव नहीं रखा जाये.

उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की दलीलों को सुनने के बाद गुजरात के मुख्य सचिव और गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को नोटिस जारी करते हुए 12 दिसंबर तक जवाब देने को कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी.

गुजरात माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी के संयोजक मुजाहिद नफ़ीस ने राज्य सरकार द्वारा गठित गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड द्वारा एक ही धर्म के धार्मिक स्थलों को लाभ पहुंचाये जाने के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका (संख्या 201/2018) दायर की है. याचिका में कहा गया है कि सरकार द्वारा आवंटित धनराशि को एक खास धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों पर ही खर्च किया जा रहा है और अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों को नजरअंदाज किया जा रहा है.

याचिका में आगे कहा गया है कि संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य किसी धर्म को प्रोत्साहित नहीं करेगा और सभी धर्मों को समान नजर से देखेगा. लेकिन गुजरात यात्राधाम विकास बोर्ड इसकी स्पष्ट अनदेखी करते हुए एक खास धर्म को ही मदद कर रहा है, जबकि इसके लिए धनराशि जनता द्वारा दिये जाने वाले टैक्स से प्राप्त राजस्व से जुटायी जा रही है.

गौरतलब है कि 10 जुलाई 1995 को गुजरात की राज्य सरकार ने एक प्रस्ताव पारित कर “गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड” का गठन किया था. इस बोर्ड के गठन का एक मुख्य उद्देश्य अलग – अलग एवं दूर – दराज के इलाकों से राज्य के धार्मिक स्थलों में आये तीर्थयात्रियों को रहने एवं ठहरने की सुविधा मुहैया कराना था. शुरू में, गुजरात के मुख्यमंत्री इस बोर्ड के अध्यक्ष होते थे और इसके अन्य सदस्यों में वित्त, उद्योग एवं खनन विभाग थे.

करीब दो साल बाद, 12 अगस्त 1997 को एक अन्य प्रस्ताव पारित करके राज्य सरकार ने अम्बाजी, डाकोर, गिरनार, पलिथाना, सोमनाथ एवं द्वारका को “पवित्र यात्रधाम” घोषित किया और इन यात्राधामों के विकास एवं उनमें बुनियादी सुविधा मुहैया कराने के लिए कुल 24 लाख रूपए की धनराशि निर्धारित की गयी. इसमें से कुल 4 लाख रूपए की धनराशि प्रत्येक यात्राधाम को आसपास एवं वहां पहुंचने वाले रास्ते पर पेयजल की सुविधा प्रदान करने, तीर्थयात्रियों को शौचालय एवं स्नानघर की सुविधा देने, तीर्थयात्रियों के विश्राम के लिए शेड, तम्बू आदि लगाने, साफ़ – सफाई की व्यवस्था रखने, कचरे के निपटन एवं जल – निकासी की व्यवस्था करने, बुनियादी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने, पहुंचने के रास्ते की मरम्मत एवं पार्किंग की व्यवस्था करने आदि के लिए है.

इस प्रस्ताव में इस बात का स्पष्ट प्रावधान था कि ट्रस्ट के कोष का इस्तेमाल किसी अन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता. किसी अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की नौबत आने पर इसके लिए पर्यटन विभाग के निदेशक की पूर्वानुमति जरुरी माना गया.

उक्त प्रस्ताव के बाद, 20 अक्टूबर 2000 को पारित एक अन्य प्रस्ताव (संख्या पीवाईबी – 10200 – 857) के माध्यम से राज्य सरकार ने गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड के गठन एवं इसके सदस्यों की पात्रता एवं योग्यता की शर्तों से संबंधित नियम बनाये.

शुरुआत में राज्य सरकार द्वारा अम्बाजी, डाकोर, गिरनार, पलिथाना, सोमनाथ एवं द्वारका को “पवित्र यात्रधाम” घोषित किये जाने के बाद से यह सिलसिला आगे ही बढ़ता गया और सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त एक जानकारी के मुताबिक “पवित्र यात्रधाम” की सूची में शामिल होने वाले मंदिरों की संख्या फिलहाल 358 है.

हालांकि मुजाहिद नफीस के अनुसार, इस सूची में मुस्लिम, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध, पारसी या अन्य किसी धर्म के एक भी धार्मिक स्थल को जगह नहीं दी गयी है.

श्री नफीस ने बताया कि इस संबंध में 8 जून 2018 को गुजरात सरकार को एक ज्ञापन सौंपा गया था. लेकिन अभी तक उस बारे में कोई जवाब नहीं मिला है.

अपनी याचिका में श्री नफीस ने मांग की है कि सरकार सभी धर्मो से जुड़े धार्मिक स्थलों का विस्तृत सर्वेक्षण कराये और गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड के माध्यम से अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों को भी वही लाभ प्रदान करे जोकि एक धर्म विशेष से जुड़े धार्मिक स्थलों को दिए जा रहे है.