हम अपने विरोध, उत्साह,खुशी को कैसे प्रदर्शित करें, यह एक सामाजिक उत्पादन हैं। ऐसा कोई भी सामाजिक उत्पादन नहीं है जो कि किसी खास विषय तक सिमटकर रह जाता है। देर सबेर उसका विस्तार विभिन्न विषयों के साथ दिखाई देता है। मसलन मोटर सायकिल रैली केवल राजनीतिक कार्यक्रमों का ही हिस्सा नहीं है बल्कि वह धार्मिक कार्यक्रमों का भी हिस्सा हो गया है। यदि हम यह कहें कि पिछले बीसेक सालों में विरोध, उत्साह और उन्माद को व्यक्त करने के एक मिले जुले जिस तरीके का सबसे ज्यादा प्रसार हुआ है वह मोटर सायकिल रैली है।एक तरह से कहें कि राजनीतिक, धार्मिक संगठनों के बीच अपने कार्यक्रमों के लिए इस बात की होड़ होती है कि वह ज्यादा से ज्यादा मोटर सायकिलें जुटाए। इस होड़ का ही यह नतीजा था कि 15 फरवरी 2018 को हरियाणा के जिंद में भारतीय जनता पार्टी ने एक लाख मोटर सायकिल जुटाने का कार्यक्रम बनाया। इतनी बड़ी संख्या में मोटर सायकिल जुटाने के पीछे यह मकसद बताया गया कि राज्य की राजनीति में नई हुंकार पैदा करने के लिए इतनी बड़ी शक्ति का प्रदर्शन जरुरी है।

शक्ति प्रदर्शन करने और लोकतंत्र में विभिन्न तरह के राजनीतिक कार्यक्रमों को करने के बीच फर्क और उनके मकसद अगल अलग दिखने लगे हैं। लोकतंत्र में कार्यक्रमों का अर्थ यह माना जाता है कि किसी संगठन के कार्यकर्ता अपने कार्य़क्रमों के जरिये अपनी कतार को और लंबी करने के मकसद को पुरा करना चाहते हैं। अपने संगठनात्मक घेरे से बाहर के लोगों को प्रभावित कर अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पुरा करना चाहते हैं। लेकिन जब शक्ति प्रदर्शन का मकसद हो तो यह स्पष्ट है कि वह या तो लोगों के सामने या सत्ता के सामने अपनी ताकत भर को जाहिर करना चाहते हैं। उस ताकत में जोड़ने की भावना के बजाय दबाने की प्रतिक्रिया होती है। पिछले कुछेक वर्षों में जिस तरह से मोटर साय़किल रैलियों की तादाद बढ़ी है उनमें लोकतांत्रिक मुल्यों के विस्तार से उल्ट शक्ति प्रदर्शन करने का मकसद एक विचारधारा की तरह अपना विस्तार कर रहा है।

हम इस पहलू पर विचार करें कि किसी भी तरह के प्रदर्शन व जुलूस में जो कुछ किया जाता है उसकी गति लोगों के साथ जुड़ने के मकसद से किस हद तक जुड़ी रही है। लोगों के बीच से पैदल निकलना और उन्हें अपनी आवाज में शामिंल करने की एक निश्चित गति होती है। मोटर सायकिल की रफ्तार सड़कों के किनारे खड़े लोगों को छू भी नहीं सकती। मोटर सायकिल की रफ्तार और उसका शोर संवाद की भी कोई गुंजाईश नहीं बनाता है। आवाज और शोर में यही फर्क है। इस पहलू पर हम कभी नहीं विचार करते हैं कि राजनीतिक और समाज सुधार के लिए लोगों को संगठित करने का जो कार्यक्रम किया जा रहा है उसका पर्यावरणीय उत्पाद किस तरह का है। वह वातावरण में भरोसे, लोगों को जोड़ने वाले लय,ताल और धुन एवं उर्जा का निर्माण कर रहा है या फिर एक दूसरे के खिलाफ आक्रमकता का वातावरण तैयार कर रहा है। मोटर सायकिल यात्रा के दौरान उत्पादित होने वाला जहरीला धुंआ किस तरह से वायु और समस्त वातावरण में घुलकर आम जिंदगी को मुश्किल बनाने में मददगार होता है। यानी हर तरह के पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन करें तो यह समाज सुधार व राजनीतिक हालात में बदलाव के बजाय बुराईयों को बढ़ाने व राजनीतिक हालात में और कटुता पैदा करने वाली एक प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति लगती है।

उदाहरण के लिए उपर जिस रैली का हवाला दिया गया है उससे जुड़े अध्ययन को हम ध्यान में रखें तो एक मोटर सायकिल रैली प्रदुषण का एक पुरा ढांचा तैयार करते दिखाई देती है। पहला : एक किसान ने सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर रैली के लिए उसकी 3 एकड़ फसल कटवाने व तंग करने के आरोप लगाया ।दूसरा:उस रैली के एक आयोजक ने बताया कि मोटरसाइकिलों के जत्थे के साथ एक एंबुलेंस भी चलेगी ताकि आपात स्थिति में उसका लाभ उठाया जा सके। तीसरा : जत्थे के साथ साथ एक अन्य वाहन भी चलेगा जिसमें मोटरसाइकिल में पंचर लगाने का पूरी सुविधा होगी।

यह तो पर्यावरण को खतरे में डालने वाले ढांचे के विभिन्न स्तरों की एक तस्वीर हमारे सामने पेश करता है। लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात है कि मोटर सायकिल रैली विभिन्न स्तरों पर बंटे लोगों के बीच फर्क को और गहरा करने में मददगार होती है। मसलन उक्त रैली में लाख से ज्यादा मोटर सायकिल जुटाने के लिए यह योजना बनाई गई कि हर बूथ यानी मतदान केन्द्र से 10 से 15 मोटरसाइकिल का पंजीकरण किया जाएगा। मतदान केन्द्रों को अपना मकसद बनाकर प्रत्येक मतदान केन्द्रों पर ऐसे दस पन्द्रह मोटर सायकिल वालों को अपने पक्ष में एकजूट करने का अर्थ यह है कि उन्हें मतदान केन्द्रों के एक ताकत समूह के रुप में स्थापित किया जा सकता है। जिनके पास मोटर सायकिल नहीं है उन्हें रैली की योजना जोड़ती नहीं है बल्कि उन्हें एक झटके से मूकदर्शक के रुप में तब्दील कर देती है। मोटर सायकिल रैली जैसी राजनीतिक प्रक्रिया फिर उसी तरह का एक होड़ पैदा करती है और उस होड़ में लगातार समाज का वह हिस्सा नीचे दबता चला जाता है जो पहले से ही दबा कुचला है।

भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में नई आर्थिक नीतियों ने हमारी समस्त राजनीतिक प्रक्रिया को बदल डाला है। इस प्रक्रिया ने सशक्तिकरण का एक भ्रम खड़ा करने में कामयाबी हासिल की है।यानी वास्तविक स्तर पर सशक्तिकऱण का होना और एक सशक्तिकरण के भ्रम का शिकार होना दो तरह की स्थितियों का निर्माण करता है। मोटर सायकिल रैली के बहाने ही हम सशक्तिकरण के भ्रम का अध्ययन कर सकते हैं। मोटर सायकिल की सवारी, उसकी गति और उसका शोर एक सशक्तिकरण का भ्रम पैदा करता है। यह हम देख सकते हैं कि मोटर सायकिल रैली के विषय क्या होते हैं। मोटर सायकिल रैली राजनीतिक मकसदों से जुड़े धार्मिक कार्यक्रम और मतदाताओं के बीच एक आक्रमक समूह तैयार करने के लिए अनुकूल दिखती है। उनकी वेश भूषा पर गौर करें कि वह सामान्य से भिन्न होती है और उसमें एक आक्रमकता की अभिव्यक्ति होती है।

इस प्रश्न पर भी विचार करें कि मोटर सायकिल के राजनीतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनने का यह समय किस तरह का है। पहली बात कि मोटर सायकिल रैली भारत जैसे देशों में एक पुरुषवादी सांगठनिक पहल के रुप में सामने आती है। यदि यह अध्ययन किया जाए कि क्या विभिन्न स्तरों पर बंटे किसी समाज में जब वर्चस्व पर जब चोट लगती है तो वर्चस्व रखने वाले वर्ग और उसकी हितपोषक विचारधारा खुद को संगठित करने के नये नये रुप अख्तियार करती है और उसमें नई तकनीकी खोज से उनकी सबसे ज्यादा मदद हो जाती है। मोटर सायकिल रैली एक आक्रमकता की सॆंस्कृति में सहायक साबित हो रही है। इस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए।