जब से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शहरों के नाम बदलने के अभियान की शुरुआत की है, गुजरात में दक्षिणपंथी ताकतों ने एक बार फिर से अहमदाबाद का नाम बदलकर कर्णावती रखने के लिए शोर मचाना शुरू कर दिया है. अगर ऐसा हुआ, तो यह न सिर्फ इस ऐतिहासिक शहर की बहुलता पर एक बहुत बड़ा हमला होगा, बल्कि इससे यूनेस्को द्वारा इस शहर को मिले ‘विश्व विरासत शहर’ के ख़िताब पर भी एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जायेगा.

बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार इस किस्म के बौखलाहट भरे कदमों के जरिए गंभीर मुद्दों से ध्यान भटकाने के अपने प्रयासों में कामयाब हो पायेगी?

इस बार, किसी और ने नहीं बल्कि खुद उपमुख्यमंत्री नितीन पटेल ने यह कहा है कि गुजरात सरकार अहमदाबाद का नाम कर्णावती रखने को उत्सुक है.

यह एक जाना हुआ तथ्य है कि संघ परिवार के विभिन्न संगठनों को मुसलमान नाम वाले अहमदाबाद से घृणा है और वे अपने सार्वजनिक भाषणों में इस शहर को कर्णावती या नाम बिगाड़कर ‘अमदावाद’ पुकारते हैं.

यहां इस बात को रेखांकित करना जरुरी है कि वर्ष 2010 के अंत और 2011 की शुरुआत में अहमदाबाद नगर निगम ने बहुत ही सयाने तरीके से अपने प्रतीक चिन्ह (लोगो) और लेखन – सामग्रियों में अहमदाबाद को बदलकर ‘अमदावाद’ कर दिया.

सूत्र बताते हैं कि इस पूरे कोलाहल की शुरुआत इसी बदलाव के साथ हुई, पहले लेटर – हेड बदला गया और फिर प्रतीक चिन्ह (लोगो). उनका कहना है कि ऐसा एक ‘वाइब्रेंट गुजरात’ व्यापार सम्मेलन के दौरान किया गया, जिसका इस्तेमाल गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकास के लिए समर्पित नेता के तौर पर अपनी और गुजरात की छवि निखारने के लिए किया. सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि श्री मोदी उस वक़्त राष्ट्रीय राजनीति में अहम पद पर अपनी नजरें गड़ाये हुए थे, लिहाज़ा नाम बदलने का यह दांव कट्टरपंथी तत्वों को खुश करने का एक तरीका था.

एकबार फिर से आज मचाये जा रहे शोर की ओर लौटते हैं, यह कदम भाजपा के “दोमुहांपन और दोहरे चरित्र” को दर्शाता है. लोगों को और कुछ नहीं सिर्फ इस शहर के लिए “विरासत शहर” का खिताब हासिल करने के क्रम में अधिकारियों द्वारा यूनेस्को के समक्ष पेश किये गये दस्तावेजों पर गौर करने की जरुरत है. उन दस्तावेजों में इस शहर को मुख्य रूप से अहमदाबाद के तौर पर संबोधित किया गया है.

इस शहर के सामाजिक – सांस्कृतिक पहलू पर काम करने वाले लोगों का कहना है कि इसकी बहुलता और समन्वित वास्तुकला की वजह से इसे “विश्व विरासत शहर” का दर्जा मिला है. उनका तर्क है कि इस शहर की विरासत वाले भवनों में एक खास किस्म की “गुजराती” वास्तुकला है, जोकि “भारतीय – इस्लामिक” वास्तुकला से आगे की बात है. जामा मस्जिद इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है. अहमदाबाद की संस्कृति एवं इतिहास के इन विद्वानों का मानना है कि इस अंतर की सबसे बड़ी वजह कलाकारों का विभिन्न समुदायों से जुड़ा होना था. वे मुख्य रूप से हिन्दू थे और उन्हें मुसलमान शासकों का संरक्षण मिला. उनका यह भी तर्क है कि किसी भी शहर का नाम बदलने के लिए बुनियादी रूप से सर्वानुमति का होना जरुरी है, जोकि यहां नदारद है.

विद्वान एवं संस्कृतिकर्मी भावना रामराख्यानी, जोकि अहमदाबाद कम्युनिटी फाउंडेशन की संस्थापक हैं और जिन्होंने इस शहर के बारे में व्यापक शोध किया है, का कहना है, “इतिहास में अहमदाबाद की एक खास पहचान है. यह एक ऐसा शहर है जिसकी स्थापना और विकास अहमदों ने किया - वो भी एक नहीं, बल्कि चार ने.”

इस शहर का नाम बदलकर कर्णावती और अशावल करने की मांग करने वालों का तर्क है कि कर्णावती की स्थापना करण वाघेला ने की थी और अशावल उसका एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था. वे शहर में कर्मुक्तेश्वर मंदिर की मौजूदगी का भी तर्क देते हैं.

रामराख्यानी का कहना है, “वाघेला की राजधानी पाटन में थी और अशावल एक व्यापारिक मार्ग पर स्थित एक प्रमुख केंद्र था. लेकिन ये दोनों जगह राज्य की राजधानी कभी नहीं रही. अहमदाबाद राजधानी रही है. ‘विश्व विरासत शहर’ का ख़िताब अहमदाबाद को दिया गया था, न कि कर्णावती या अशावल को.”

इस शहर के इतिहास और सल्तनत के शासनकाल में इसकी बहुलता को रेखांकित करते हुए वो बताती हैं कि मुसलमान शासकों के दरबार में अधिकांश अहम पदों पर हिन्दू नागर समुदाय के लोग काबिज थे. इसका ब्यौरा खुद नागर लोगों ने संकलित किया है. वो आगे बताती हैं कि इस दौरान फारसी एवं गुजरती भाषाओँ के बीच खूब सम्मिलन हुआ. उन्होंने बताया, “बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि गुजराती एक ऐसी क्षेत्रीय भाषा है जिसमें सबसे अधिक उर्दू शब्दों का समावेश है.”

उनका कहना है कि सरकार को यह बताना चाहिए कि इस शहर का नाम बदलकर वह क्या हासिल करना चाहती है. उन्होंने कहा, “क्या आप संस्कृति और मूल्यों को बदलना चाहते हैं? मैं कहना चाहती हूं कि सरकार को अन्य अधिक जरुरी मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए.”

इस बारे में कवि, रंगकर्मी और पटकथा लेखक परेश के पास एक और रोचक दृष्टिकोण है. उनका कहना है, “कविताओं, साहित्य, चित्रों एवं नाटकों में अहमदाबाद के एक हजार संदर्भ मिलते हैं, न कि कर्णावती और अशावल के. गुजराती लोकगीतों में भी अहमदाबाद का अहम स्थान है.”

अपने राजनीतिक आख्यानों के लिए भाजपा जहां इस मुद्दे को बार – बार उठाती है, वही कांग्रेस का कसूर यह है कि वह इस कदम की परोक्ष समर्थक है और इसका कभी विरोध नहीं करती.

खबरों के मुताबिक, इस शहर का नाम बदलने को लेकर राज्य विधानसभा ने पिछले दशक की शुरुआत में इस आशय का एक प्रस्ताव पारित किया था. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए का शासन था. लेकिन श्री वाजपेयी इस कदम को आगे बढ़ाने से बचे क्योंकि अन्नाद्रमुक और तृणमूल कांग्रेस जैसे सहयोगी दल इस विचार से सहमत नहीं थे.

खबरों की मानें तो इस साल के शुरुआत में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने राज्य विधानसभा को सूचित किया था कि अहमदाबाद का नाम बदलकर कर्णावती रखने का विचार त्याग दिया गया है, और गुजरात सरकार ने पिछले दो सालों में इस आशय का कोई प्रस्ताव केंद्र को नहीं भेजा है.

इस बीच, हिन्दू दक्षिणपंथी खेमे को केंद्र में रखकर एक और रोचक घटना हुई है. सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2017 में अहमदाबाद को भारत का पहला “विश्व विरासत शहर” का ख़िताब मिलने के बाद, दक्षिणपंथी समूह अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर शहर के हिन्दू मंदिरों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए हमला कर रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि इसका मकसद ध्रुवीकरण करना और एक खास एजेंडा को आगे बढ़ाना है.