गंभीर अपराध अनुसंधान कार्यालय ( सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन कार्यालय, एस एफ आई ओ) जिसे आई. एल. एंड ऍफ़. एस. ( इन्फ्रास्त्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंनशियल सर्विसेस )के मामलों की छानबीन का कार्य सौंपा गया था , उसने अपनी रिपोर्ट में कंपनी के संचालन और वित्तीय मापदंडों में घोर अनियमित्ताताओं का पर्दाफ़ाश किया हैं. मनी लाइफ की सुचिता दलाल के अनुसार, एस ऍफ़ आई ओ ने समुचित प्रमाण जुटा लिए हैं जिससे यह साफ है कंपनी के संचालन में असफलता , कई हितों के टकराव और प्रमुख लोगों द्वारा अपने आपको सम्रद्ध करना शामिल है . साथ ही निधि को अन्य स्थानों पर लगा देने की बात भी कही गई हैं.

स्मरण रहे की इन्ही सब कारणों से कंपनी की यह स्थिति हो गई कि वह समय पर अपना ब्याज भुगतान करने में असफल रही . इससे सरकार को इस कंपनी के निर्देशक मंडल को बर्खास्त करना पड़ा और उसके स्थान पर दूसरा निर्देशक मंडल स्थापित करना पड़ा ताकि इससे बाकी बाज़ार और कंपनियों को हानि न हो .

कंपनी के प्रबंधन में शामिल ४०-५० लोग से एस ऍफ़ आई ओ ने सघन पूछ ताछ की है यह कहां जा रहा है कि इस जाँच रिपोर्ट के अनुसार आवश्यक और निर्णायक कार्यवाही अपराधियों के खिलाफ की जायगी . इनका ओहदा क्या है इससे कोई अंतर नहीं पडेगा. पूर्व के शीर्षस्थ स्तर के अधिकारीयों जैसे रवि पर्थासार्थी, रमेश बावा, हरी शंकरण , के रामचंद के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है ताकि वे देश छोडकर बाहर न चले जाय.

एक अन्य अजीबोगरीब बात यह है की इसके दो बड़े हिस्सेदार , जापान की ओरिक्स कोर्पोरैशन जो २३.४५% हिस्सों का मालिक है और अबुधाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी जिसके पास १२.५६% हिस्से हैं , ने ऐसा प्रतीत होता है की प्रबंधन से कंपनी के बारे में , उसके संचालंन और ऊंचे ऊंचे वेतन के बारे में कोई सवाल नहीं पूछे हैं. ऐसा क्यों? यह अभी तक साफ नहीं हुआ लेकिन जिस तरह से एक के बाद एक कंपनी के बारे में तथ्य उजागर हो रहे हैं उससे यह विश्वास बढ़ता है की यह भी जल्दी ही साफ हो जायगा.

आई एल ऍफ़ एस कोई मामूली कंपनी नहीं है .इसकी स्थापना लगभग बीस वर्ष पूर्व बुनियादी ढांचा निर्माण के वित्त पोषण के लिए बनाई गयी थी . इसके जैसी कोई दूसरी कम्पनी भी भारत में नहीं है .इस पर कुल कर्जा ९४,२०० करोड़ रुपये है.धारक कम्पनी आई एल ऍफ़ एस के के अधीन इस समूह में ३४६ इकाइयां हैं , इसमें सहायक कम्पनियां , सहयोगी कम्पनियां, संयुक्त उपक्रम , संयुक्त संचालित इकाइयाँ शामिल है. शुरू से अभी तक इसके अध्यक्ष रवि पार्थासार्थी रहे हैं. एक के बाद एक इसमें कई दर्जन आई ए एस अधिकारी और बैंकों के ऊंचे अधिकारी इसमें शामिल रहे हैं.आई ए एस के इसमें अवकाश प्राप्त और वर्तमान में सेवारत अधिकारी भी हैं और इसके विभिन्न कार्यों को देखते हैं. इन सभी के नाम अभी तक उद्घोषित नहीं किये गए हैं .लेकिन यह समाचार अब आने शुरू हो गए हैं कि किस प्रकार से इस कम्पनी के प्रबंधन ने ऐसे लोगों द्वारा अपने अधिकारियों को धमका कर शांत कराया है और एक उदाहरण तो यह भी की एक अपने साझीदार को ६ माह तक जेल में रखवाने में सफलता पाई है . आर्थात न्यायपालिका तक में आई एल एफ एस का प्रबंधन अपनी बात मनवाने की क्षमता हासिल कर ली थी .स्पष्ट ही है की यह यह तभी संभव हुआ क्योंकि वे शासनतंत्र में घुसपैठ कर पाये थे.इसी का यह नतीजा हुआ की विभिन्न क्षेत्रों के नियामक भी इस कम्पनी के विरोध में कुछ नहीं किया , वह भी जब उसकी कारगुजारियां उनके सामने आ चुकी थी.

जब कंपनी अपनी देनदारी देने में असफल हो रही थी, उसी समय बैपरवाह होकर, समूचे शीर्ष के प्रबंधन ने अपने स्वयमं के वेतन और भत्तों में बड़ी वृद्धि की .

इस कंपनी के अंदरूनी हालात उस समय सामने आने शुरू हुए जब इसकी सहायक कंपनी आई एल ऍफ़ एस फाइनेंसियल सर्विसेज़, बैंक से लिए ऋण पर ब्याज का भुगतान नहीं कर सकी .इसमें बैंक के ऋण पर ब्याज, अल्पकालिक वित्त पोषित और निश्चित अवधि (टर्म) लोन दोनों ही शामिल हैं . कुल इसे २८४.५ करोड़ रुपये चुकाने हैं इसमें टर्म जमा के मद में १०३.५३ करोड़, अल्पकालिक पर ५२.४३ करोड़ हैं . यह कम्पनी गैर बैंकिंग वित्त कंपनी की श्रेणी में आती है . इसे बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज को सूचित करना पड़ा , क्योंकी यह शेयर बाजारों में सूचीबदधता का नियम है . इसी के साथ ही श्रेणी की कम्पनियों को निवेशक संदिग्ध नज़रों से देखने लगे बाज़ार पर इसका असर साफ दिखाए दिया और आई एल ऍफ़ एस समूह खुद सवालिया निशानों से घिर गया. उसके बाद से इस कंपनी के समाचार रहे हैं यह साफ करते हैं की इस कंपनी ने समूची व्यवस्था को अपने नियंत्रण में ले रखा था.

यह बात अब साफ हो चुकी है कि रिज़र्व बैंक को यह मालुम था की यह समूह की दशा चिंता जनक है उसने तीन साल पहली ही सचेत कर दिया था .रिज़र्वे बैंक की निरीक्षण रिपोर्ट में यह साफ आ गया था की कंपनी के अपने स्वामित्व की निधि समाप्त हो चुकी है और इस पर कर्जा बहुत अधिक है.लेकिन कम्पनी ने इसे सुधरने के लिए कोई कदम उठाने से इनकार कर दिया .इसका नियामक रिज़र्व बैंक है. वैसे देखने में कम्पनी ने अपनी वर्ष २०१५ की सालाना रिपोर्ट में उसने कह है की एक ११७ करोड़ रूपये की आकस्मिक निधि बनाए गयी है; यानी रिज़र्व बैंक द्वारा उठाये गये सवालों पर कंपनी ने कुछ गतिविधि दिखाई थी.

यह भी अखबारों में छपे रिपोर्टों से यह साफ है कि कंपनी ने वित्त मंत्रालय और रिज़र्व बैंक के साथ इस विषय पर चर्चा कई वर्षों से कर रहे थे. लेकिन दोनों ने इस विषय पर किसी को कुछ भी नहीं मालुम होने दिया. बल्कि इनके द्वारा ही इस कंपनी में मुचुअल फण्ड इत्यादि ने निवेश भी किया.अर्थात सरकार के प्रमुख आर्थिक संस्थान इस् पूरे प्रकरण में तथ्यों को छुपाने के दोषी हैं .

मनी लाइफ में सुचिता दलाल ने यह सवाल पुछा है की इस दौर में रिज़र्वे बैंक क्या कर रहा था “ आई ऍफ़ आई एन( एक अन्य सहायक कंपनी) ने तीन वर्षों २०१४,१५ और १६ तीनों में ही ५०% लाभांश दिया है , जबकि रिज़र्व बैंक खुद की रिपोर्ट यह कहती है की कंपनी के के स्वामित्व की निधि समाप्त हो चुकी थी .क्या आर बी आई इस पर ऐतराज़ नहीं कर सकती थी ? रघुराम राजन क्या कर रहे थे ?

आई ऍफ़ आई एन की लेखा समिति में सुब्बलक्ष्मी पांसे और सुरिंदर सिंह कोहली दोनों थे . ये दोनों बैंकिंग क्षेत्र के बड़े नाम है और्प्रबंधन के नज़दीक थे . एक बार सब बात खुलकर सामने आयी तो इन दोनों और कंपनी के प्रबंध निर्देशक रमेश बावा दोनों ने ही त्याग पत्र दे दिया. अभी तक रिज़र्वे बैंक ने निर्देशक मंडल के इन सदस्यों से कोई पूछ ताछ नहीं की है . इसके अलावा यह भी उजागर करने की कोशिश नहीं की है की है की यह निजी कम्पनी जो अपने को सरकारी कंपनी के तौर पर पैश करती है ,उसकी असलियत भी सबसे के सामने लाये.

इसे हल करने के लिए नये निर्देशक मंडल ने नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल , (रास्ट्रीय कंपनी क़ानून पीठ) , के समक्ष जो योजना प्रस्तुत की है उसमें नए निवेशकों अथवा वर्तमान हिस्सेदारों के द्वारा प्रचुर पूंजी निवेश,अस्तियों की बिक्री,कुछ समूह की कम्पनियाँ को समाप्त करना और ऋण को दोनों, समूह और इकाई के, स्तर पर , पुन: संयोजित करना शामिल है.

कुछ खर्चे घटाने और सादगी लाने के लिए भी कदम उठाये गए हैं . ५० लाख से अधिक कमाने वालो के वेतन में १०% कटौती की गई है ,६९ परामर्षदाताओं को हटा दिया गया है .प्रस्ताव में पैसे को योजना से अन्यत्र ले जाने को स्वीकार किया गया है .

प्रस्ताव कहता है की विश्वसनीय और वित्तीय तौर पर मज़बूत नये निवेशको की ज़रुरत है जो इस शर्त को निभा सके की वे नये निर्देशक और देनदारों से बात कर के समूचे समूह की समस्या का हल ढूँढेंगे.एक दूसरा तरीका यह है की अलग अलग क्षेत्रों में कार्यरत सम्बंधित इकाइयों को उनके क्षेत्रों में कार्यरत बाहरी कंपनियों को बेचा जाय. प्रस्ताव में दूसरी की अधिक सम्भावना जताई गयी है, क्योंकि भारत मे हर क्षेत्र में कार्यरत ऐसी कम्पनियां की उपस्थिती है जो आई एल ऍफ़ एस की इकाइयों में दिल्चस्पी ले सकती हैं. जैसे सड़क निर्माण ,नवीनीकरण ( रिन्युएबल) में , अचल सम्पति और ताप बिजली घर में.

आई एल एफ एस (इन्फ्रास्ट्रक्टचर लीजिंग एंड फिनान्सिअल सर्विसेज़ लिमिटेड ) की परियोजनाओं और उसके द्वारा किये गए निवेश की बिक्री और उसके द्वारा किये गए निवेश की बिक्री शरू हो गई है. गुजरात के मुख्य मंत्री ने यह घोषणा की है कि आई एल एंड ऍफ़ एस की भागीदारी से बन रहे गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी(संक्षिप्ति: जिसे उसके पहले अंग्रेजी के शब्दों को जोड़ कर गिफ्ट सिटी कहां गया है ), में इसके हिस्से को गुजरात खरीदेगा .

इसी कंपनी की दो अन्य सहायक कमपनियों को खरीदने के लिए कई निवेशकों ने दिलचस्पी दिखाई है .ये सहायक कम्पनियां हैं आई एल एंड ऍफ़ एस सिक्युरिटी सरविसेज़ लिमिटेड (आई एस एस एल) और आई एस एस एल रीजनल सर्विसेज़ लिमिटेड ( आई एस टी एस एल ). इस प्रकार कंपनी को बचाने के नाम पर उसकी अस्तियों का मुद्रीकरण, यानी बिक्री, की जा रही है ताकि वह अपने ऋण को वापस कर सके.

यह प्रक्रिया उसी दिन से शुरू कर दी गई थी जिस दिन नया निर्देशक मंडल स्थापित किया गया था. इसका अध्यक्ष उदय कोटक को नियुक्त किया गया . कोटक , कोटक महेंद्र बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निर्देशक हैं. इसको यह कार्य सौंपा गया था कि इस कंपनी को पुनर्जीवित करना है. लेकिन यह कही नहीं कहां गया है की इसमें लिप्त लोगों और जिम्मेवार अधिकारियों के विरोध में कोई कानूनी कार्यवाही होनी है , या इनसे पैसे निकलवाने हैं और कंपनी को पैसा वापस देने हैं. इसके बीस साल से चले आ रहे अध्यक्ष , रवि पार्थासारथी जब एक बार कम्पनी निर्धारित समय पर ब्याज भुगतान नहीं कर सकी तो भाग कर लन्दन चले गए थे लेकिन बाद में इन्हें वापस बुला लिया गया था .

एस ऍफ़ आई ओ की ऊपर उद्धृत रिपोर्ट के बाद क्या यह आभास् होता है की जिन लोगों ने यह स्थिति लाई है उन पर कार्रवाई होगी और जो पैसा उन्हेने इन कंपनी के खाते से चोरी किया हुआ था वह कंपनी को वापस दिया जायगा ?

आज तक देश में ऐसा कभी नहीं हुआ है. बैंक, शेयर बाज़ार तंत्र , राजनेता इत्यादि सभी चोरी करते हुए पकडे गये हैं लेकिन आज तक किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई और यदि हुई है तो अति नरम. पैसा तो किसी से भी वापस नहीं लिया गया है. आई एल ऍफ़ एस इन सभी धोखाधडयों से बड़ी धोखा धडी है.इसका समूचा असर आज बाज़ार पर देखा जा सकता है. इसको क़र्ज़ देने वालों में बैंक, मुचुअल फण्ड और कई प्रकार की गैर बैंकिंग वित्त कम्पनियां हैं.इन में से कई शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध हैं यदि इन में किसी भी पर भी आंच आ गई या डूब गया तो इसका सीधा असर निवेशकों की जेब पर आयगा और शेयर बाज़ार पर भी . आज इसी द्वन्द शेयर बाज़ार झूल रहे हैं.एक एक अनिश्चितता बन रही है और शेयर बाज़ार बार बार नीचे –ऊपर हो रहा है नीचे ज्यादा, ऊपर कम.किसी को नहीं मालूम है की अब दाम क्या होंगे और अर्थव्यवस्था क्या मोड़ लेगी .

यदि सरकार ने पुराना इतिहास दोहरा दिया और इन सबको पैसे समेत निकल जाने दिया तो अर्थव्यस्था को भारी हानि उठाने पडेगी . और यदि इसके विपरीत किया गया तो इस समय की निराशा छंट सकती है और नयी सुबह देखने को मिल सकती है.