हमारे देश में प्रभावशाली लोगों के विरोध में यदि कोई शिकायत है व्व्यव्स्था उसे नज़रन्दाज़ कर देती है. उसके बारे में कोई भी अधिकारी छान बीन तक नहीं करेगा जब तक की वह मजबूर न कर दे कि उसका समाधान किया जाय और तब भी उसपर पैबंद लगाने का काम किया जाता है न की उसे बुनियाद्फ़ी तरीके से हल.

आई एल एंड ऍफ़ एस के मामले में यह बहुत साफ तरीके से उभरकर सामने आ गयी है .पत्रकार सूचिता दलाल की मनी लाइफ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार , ऐसे अंदर के भेदियों ने विभिन्न स्तर के अधिकारियों को पत्र लिखे जिनमें उक्त कंपनी में हो रही गड़बड़ी के बारे में सूचित किया गया था ताकि कंपनी को और अधिक हानि न हो . पर कभी कार्यवाही नहीं की गई पत्रों में दिये तथ्यों पर कोई ना कोई बहाना बनाकर गौर करने से इनकार कर दिया गया. . समूचा मामला बाहर आने के बाद यह पाया गया है की इस भेदियें ने जो बातें लिखी थी वे सब सही हैं और यदि जब ये सूचनाएं हुई थी , तब ही यदि कार्यवाही की होती तो बहुत सी हानि को बचाया जा सकता था .लेकिन इन अधिकारीयों ने कुछ नहीं किया .

*२ मई ,२०१७ को महेश इनामदार के नाम से हस्ताक्षरित ३ पन्नों का पत्र कंपनी के निर्देशक मंडल को भेजा . निर्देशक मंडल में इस पत्र की इस आधार पर चर्चा नही की गयी कि लिखने वाले का नाम अज्ञात है. इस पत्र में उन कार्मिको और परियोजनाओं के नाम और इन विवादों में फसी कुल राशि जैसे तथ्य विस्तार से दिये गए हैं . लेकिन ठीक एक वर्ष बाद जब , संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष , रवि पार्थासार्थी ने स्वास्थ्य के आधार पर इस्तीफा दे दिया तब निर्देशक मंडल के एक सदस्य ने इस पत्र पर चर्चा की मांग की थी.

*२१ जुलाई २०१७ उसी व्यक्ति. महेश इनामदार, ने रिज़र्व बैंक के अध्यक्ष उर्जित पटेल और सभी बड़े हिस्सेदारों , जैसे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष, जीवन बीमा निगम के वी के शर्मा , एच डी ऍफ़ सी के दीपक पारिख, अबू धाबी इन्वेस्टमेंट ऑथरिटी और ओरिक्स को पत्र लिखा .इस पत्र का शीर्षक था :”आई एल ऍफ़ एस/आई ऍफ़ आई एन : सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक द्वारा एक लाख करोड़ का दिया ऋण गंभीर खतरे में है .” और यह कि यह उसका तीसरा पत्र है जिसमें वह रिज़र्व बैंक के अध्यक्ष से यह निवेदन कर रहा है कि वह “ चार वर्षों के कुप्रबंधन ,घातक वित्तीय तिकड़म ताकि लाभांश/विनिवेश की घोषणा कर सके और समस्त शीर्षस्थ प्रबंधन द्वारा गंभीर भ्रष्टाचार “ की जांच करे.

पत्र साफ तौर पर रवि पर्थासाएर्ति, हरिशंकरण,रमेश बावा, अरुण साहा और के रामचंद, का नाम लेता है. पत्र ने निर्देशकों से आग्रह किया है कि वे “आपातकालीन तरीके से इसमें सुधार करना शुरू करें”. पत्र ने निश्चित राशि , नाम और सौदों का विवरण दिया है जिसमें पैसे का संदिग्ध इकाइयों से लेन देन हुआ है अथवा उसे बट्टे खाते में डाल दिया गया है.” जिन इकाइयों और उद्योगपतियों के नामों की चर्चा है वे सब इस कंपनी के संचालन करने वाले गुट के नज़दीकी लोग हैं .पत्र ने निर्माण क्षेत्र में इस कंपनी ने बहुत आगे बढकर निवेश किया है लेकिन इसका सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण से कोई रिश्ता नहीं है.. लेकिन इन पत्रों का कोई असर नही हुआ. कुछ नही किया गया .

अपने उक्त लाख में , सुचिता दलाल पाठकों को याद कराती है की , रिज़र्वे बैंक ने यह दावा किया था उसने अपनी रिपोर्ट में दो वर्ष पूर्व ही इस कंपनी के सञ्चालन में निश्चित मुद्दों पर सवाल उठाये थे. लेकिन इन पत्रों में भ्रष्टाचार और उससे अधिक की कारगुजारियों का विस्तार दिया है.न वे यह सवाल पूछती है की क्या इन पत्रों को रिज़र्वे बैंक के मुखिया ने गंभीर अपराध अनुसंधान कार्यालय को अग्रेषित किया था ? अभी इन बातों का जवाब उपलब्ध नहीं है लेकिन जिस तरह से तथ्य खुल कर सामने आ रहे हैं हमें आषा है की इन महानुभावों की भूमिका भी उजागर हो जायगी.

२१ जुलाई २०१७ :इस भेदियें ने उक्त दिनांक को एक बार फिर एक पत्र आई ऍफ़ आई एन के स्वंतंत्र निर्देशकों

सुरिंदर एस कोहली ,( पी एन बी के पूर्व अध्यक्ष )सौभालक्ष्मी पांसे ( पूर्व अध्यक्ष , इलाहांबाद बैंक) और उदय वेद ( करविभागाध्यक्ष के पी एम् जी ) जिसका शीर्षक था “ गंभीर भ्रष्टाचार/ कोर्पारेट प्रबंधन मुद्दे” . इसका सारतत्व यह था की हालत यह है की आई एफ आई एन का अगले १२ महीनों के बाद् जीवित रहने पर सवालिया निशान है . यह स्तिथी गंभीर भ्रष्टाचार के कारण पैदा हुई है.

रिज़र्व बैंक की भूमिका अति महर्त्वपूर्ण है क्योंकि कुल दावेदारी बैंकों की है जिनमें जनता का पैसा लगा हुआ है. और यह पैसा इस समय आरक्षित है और इसे गंभीर खतरा है.लेकिन कुछ नहीं किया गया.

इस पत्र में ४००० करोड रुपये के ऋण निर्माण से सम्बंधित संदिग्ध अथवा राजनातिक रूप से समबन्धित कंपनियों को दिए गए थे , को रेखांकित किया गया था.इस पत्र को रिज़र्वे बैंक के मुखिया और कंपनी के प्रमुख संस्थागत निवेशकों को इसकी प्रति अग्रेषित की गयी थी.

* ३१ जुलाई को एक और भेदिया जिसने अपना नाम संजय गुरुकृपा बताया और पी एन बी के प्रबंध निर्देशक सुनील मेहता को पत्र लिखा , जिसे अति गोपनीय और त्वरित मार्क किया गया, में वदराज सीमेंट की चर्चा है . उक्त कमपनी की चर्चा सभी पत्रों में है. इसमें प्रोंनात्कर्ता द्वारा पी एन बी के नेतृत्व में बैंकों के संघ जिसमें देना बैंक, यूनियन बैंक,इन्डियन ओवरसीज बैंक,सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ़ इंडिया, कोर्पोराशन बैंक और ओरिएण्टल बैंक , शामिल हैं, के साथ गंभीर धोखा धडी करने का आरोप लगाया है. इसे मुख्य सतर्कता आयुक्त को भेजा गया है.

१२ मई 2018: उपरोक्त प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकलने के बावजूद आतंरिक भेदिये ने अपना प्रयास जारी रखा ताकि जिम्मेवार अधिकारियों तक वह अपनी बात पहुंचा सके . एक और पत्र रिज़र्वे बैंक के मुखिया उर्जित पटेल को संबोधित करते हुए लिखा की जिस् गति से आई एल अंड ऍफ़ एस में गिरावट आ रही है उससे यह अगले १२ से १८ महीनो में ही इसका पतन हो जायगा.इस पत्र में यह बताया गया है कि किसप्रकार से साख निर्धारण में हेरा फेरी की जाती है .; यह भी किस प्रकार पार्थासारथी और उनका गुट, जो सब अपनी ज़मीन्दारियाँ भी चला रहे हैं, ने अपने कार्यकाल में वृद्धि कर ली है जबके वे सब ६५ साल से ऊपर हैं . यह दूसरा पत्र भेदिये ने साख निर्धारण संगठनों जैसे कएर रेटिंग, इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च,देलोइश और ओरीक्स , को भी अंकित किया था.

इस पत्र से यह बात साफ हो गई की यह वृहद वित्त और बुनियादी ढांचा निर्माण की किंपनी को ५ आद्मियों का गुट ही चला रह है और उनके साथ ४-५ और लोग जुड़े हुए हैं. ये थे रवि पार्थासार्ति , उपाध्यक्ष हरीशंकरण, रमेश बावा, करमचंद, और अरुण साहा . ये इसे अपनी निजी ज़मींदारी की तरह इसे चला रहे थे . इससे यह भी उजागर हुआ की किस प्रकार साख निर्धारण संगठन चिन्हित ख़राब ऋणों और बहुत बड़े पैमाने पर निर्माण उद्योग में इसके शामिल होने को जानबूझ कर अनदेखा किया , इन्होनें पुराने देय ऋणों को दोबारा नए ऋण बनाकर जारी करने की प्रक्रिया को भी नज़र्दाज़ किया . ए बी जी शिपयार्ड/सिमेक के मामले में, स्किल इन्फ्रास्ट्रक्चर( दोनों में १००० करोड़ र्रुपयें ,) शिव्शंकरण समूह, यूनिटेक,पार्स्वनाथ ड़वेलपर्स ,एरा हाऊसिंग,एच डी आई एल लिमिटेड ( वाधवा ग्रुप), कोहिनूर ग्रुप ,इंड भारत एनरजी,वरुण शिपिंग, और के वी के इन्फ्रास्त्रक्चर, के मामलों में पुराने ऋण को नयादिखाने का काम किया है .

उपरोक्त अधिकांश कम्पनियां दीवालिया क़ानून की प्रक्रिया में हैं.

इसके अलावा यह किसी को भी मालुम नहीं है कि इस समूह की आकस्मिक देनदारियां क्या हैं ?इसने कितनी कंपनियों को आश्वासन पत्र अथवा ऋण सेवा आरक्षित खाता के रूप में समर्थन अपने समूह की कमपनियों को दिया है और यह शीघ्र ही ऋण देयता में परिवर्तित हो जायगा. इन पत्रों में यह भी आरोप लगाया गया है कि

कम्पनी ( समूह) के विदेश कार्यालय, गैर कानूनी पैसे को विदेश ले जाने के लिए स्थापित किये गए हैं .

अपने लेख में यह भी रहस्योद्घाटन किया की राही एवियेशनन के उमेश बवेजा ने तत्कालीन रिज़र्वे बैंक के अध्यक्ष रघुराम राजन को २ अक्टूबर २०१५ को विस्तार से इस कंपनी के विषय में पत्र लिखा था , लेकिन राजन ने भी कुछ् नहीं किया .अत: न केवल उर्जित पटेल बल्कि रघुराम राजन ने भी इसकी गितिविधियों पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया .

इस प्रकार हम देखते हैं की सभी नियामकों ने चाहे वह रिज़र्व बैंक हो, अथवा साख निर्धारण वाले एजेंसियाँ हो,अथवा निवेशक, हो या बैंकर हो.किसी ने भी सभी सबूत देने के बावजूद , इस विषय में कोई कार्यवाही नहीं की . किसी भी छान बीन में इन इकाइयों की सह्योगी भूमिका की भी छान बीन होनी चाहिए.क्योंकि यह सब काण्ड तभी होते हैं जब जिनहैं उन्हें रोकने की जिम्मेवारी होती है वे अपनी जिम्मेवारी को नहीं निभाते हैं.इसलिए वे भी बराबर के अपराधी हुए .