गुजरात के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के अवसर पर 18 दिसम्बर को अपने विकास एवं सुरक्षा की मूलभूत मांगों को लेकर पहली बार विधानसभा घेराव कार्यक्रम के तहत सडकों पर उतरे और गांधीनगर के सत्याग्रह छावनी में एक जनसभा की. सभा में वक्ताओं ने राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के विकास एवं सुरक्षा के लिए कोई ठोस तंत्र नहीं होने पर कड़ी नाराजगी जाहिर की.

सभा में एक स्वर से यह मांग की गयी कि राज्य में तत्काल अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की स्थापना की जाये. राज्य के बजट में अल्पसंख्यक समुदाय के विकास के लिए पर्याप्त धनराशि आवंटित की जाये. राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाये एवं उसे संवैधानिक अधिकार देने के लिए एक विधेयक विधानसभा में पारित किया जाये. राज्य के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में कक्षा 12 तक के सरकारी स्कूल खोले जायें. मदरसा डिग्री को गुजरात बोर्ड के समकक्ष मान्यता दी जाये. अल्पसंख्यक समुदाय के उत्थान के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाये. सांप्रदायिक हिंसा से विस्थापित हुए लोगों के पुनर्स्थापन के लिए नीति बनायी जाये. प्रधानमंत्री के नये 15 - सूत्री कार्यक्रम को पूर्ण रूप से अमल में लाया जाये.

गौरतलब है कि देश के बाकी राज्यों के उलट गुजरात में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय और राज्य अल्पसंख्यक आयोग नदारद है. अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का आरोप है कि राज्य के बजट में उनके लिए ठोस वित्तीय आवंटन भी नहीं है. लिहाज़ा, राज्य की 11.5 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी विकास के तथाकथित दावों से कोसों दूर है.

सभा को संबोधित करते हुए माइनॉरिटी को-ओर्डिनेशन कमिटी (एमसीसी) के संयोजक मुजाहिद नफीस ने कहा कि गुजरात में अल्पसंख्यक समाज डर के साये में जी रहा है. अब तो भैंस ले जाते हुए भी तथाकथित रक्षक जानलेवा हमले कर लूट रहे हैं. उन्होंने कहा, “सरकार बेटी पढाओ, बेटी बचाओ का नारा देती है. लेकिन जब गुजरात में मुस्लिम समाज की स्कूल जानेवाली कुल 10.58 प्रतिशत बच्चियां 1 - 5 कक्षा तक के बीच ही अपनी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रही हैं, तो वह इस पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर रही है. गुजरात में अल्पसंख्यक समाज की शिकायतें सुनने के लिए कोई भी आयोग नहीं हैं. जब देश के बाकी राज्यों में अल्पसंख्यक आयोग है तो गुजरात में क्यों नहीं? क्या यह भेदभाव का स्पष्ट उदाहरण नहीं है?”

सरकार को संविधान और संयुकतराष्ट्र संघ में दिए हुए वचन की याद दिलाते हुए श्री नफ़ीस ने आगे कहा, “गुजरात की परिस्थिति को देखते हुए हमें यह समझ में आया कि यहां के अल्पसंख्यक समुदाय को वो अधिकार भी प्राप्त नहीं हें, जो उन्हें बाकी दूसरे राज्यों में हासिल हैं. माइनॉरिटी को-ओर्डिनेशन कमिटी ने पूरी कोशिश की कि सरकार हमारी मांगों को सुने और उनको पूरा करे. लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस काम नहीं किया गया. इसलिए हमारे साथियों ने तय किया है कि आज से हम विधानसभा के आगामी सत्र के दौरान अन्दर और बाहर किस तरह से संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को लागू करवाया जाये इस बारे में रणनीति बनायेंगे.”

उन्होंने कहा कि आज इस सभा में आये हुए सभी लोग सही मायने में स्वतंत्रता के सिपाही है. उन्होंने इस राज्य में डर के माहौल को धता बता दिया है और अपनी मांगों के लिए बाहर सड़क पर निकल आये. उन्होंने कहा कि आगामी विधानसभा सत्र के दौरान अल्पसंख्यक समाज विधानसभा के सामने फिर प्रदर्शन करेगा.

सभा को संबोधित करते हुए हाजी असरार बेग मिर्ज़ा नें कहा कि आज समय की ज़रुरत है कि हमें अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए आगे आना होगा और राज्य में अल्पसंख्यक आयोग, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की स्थापना के लिए गाँव-गाँव में जागृति अभियान चलाकर समाज को अधिकारों के लिए आगे लाना होगा.