अभी दो दिन पहले ही टीवी चैनलों पर केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना चार धाम आल वेदर रोड का काम पूरा करने की बात कर रहे थे.लेकिन इसके अगले दिन ही इस परियोजना में काम कर रहे 7 मजदूर मारे जाने और लगभग 17 मजदूरों के मलबे के नीचे दबे होने की खबर आयी. यह हादसा रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड खंड में एक चट्टान के ऊंचाई से गिरने के कारण हुआ. इसके बाद भी नितिन गडकरी, पर्यावरण मंत्रालय और सरकार यह समझ पाने में असफल है कि हिमालय पर जितनी सड़क है उसे ही रहने दिया जाये और इसे अधिक चौड़ा करने का प्रयास नहीं किया जाये. सरकार के रवैये से तो यही लगता है कि हिमालय रहे या न रहे पर हाईवे जरूर होना चाहिए ताकि हिमालय के ऊपरी क्षेत्र भी सैलानियों से भरे रहें और हिमालय की बर्बादी में कोई कसर बाकी नहीं रहे. गडकरी जी ने दो दिन पहले गंगा को साफ़ करने का जिक्र भी किया था. पर गंगा में कितना काम हो रहा है, सभी जानते हैं.

गंगा और गंदी होती जा रही है.पर समस्या यहीं तक नहीं थमती. अब गंगा की आवाज उठाने वाले भी खतरे में नजर आ रहे हैं. गंगा की सफाई की आस लिए हुए स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद 112 दिनों के उपवास के बाद अस्पताल में मर गए या मार दिए गए, यह तो शायद ही कभी पता चल पाए. उत्तराखंड शासन में सब कुछ रहस्यमय ही होता है और स्वामी सानंद की मौत भी एक ऐसा ही रहस्य है. पर गंगा की आवाज उठाने वालों के साथ होने वाला रहस्य अभी थमा नहीं है, अब संत गोपाल दास 5 दिसम्बर से लापता हैं, और उत्तराखंड प्रशासन गहरी चुप्पी साधे बैठा है.

गंगा आह्वान, आईआईटीयंस फॉर होली गंगा, खुदाई खिदमतगार, नेशनल अलायन्स ऑफ़ पीपल्स मूवमेंट और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) द्वारा संयुक्त रूप से इस विषय पर एक विरोध प्रदर्शन 22 दिसम्बर को जंतर मंतर रोड, नई दिल्ली पर आयोजित किया गया. इस दौरान जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार “संत गोपाल दास 24 जून 2018 से गंगा को बचाने के लिए उत्तराखंड में अनशन पर बैठे थे. उन्हें पहले एम्स ऋषिकेश, फिर पीजीआई चंडीगढ़ और अंततः एम्स नई दिल्ली में भर्ती कराया गया. 4 दिसम्बर 2018 को एम्स नई दिल्ली से उन्हें छोड़ा गया और पुलिस-प्रशासन उन्हें देहरादून लेकर गया. ऐसा बताया जा रहा है कि 6 दिसम्बर 2018 को उन्हें वहाँ अस्पताल में भर्ती कराया गया. किन्तु वहाँ से वे गायब हो गए और आज तक उनके बारे में पता नहीं चल रहा है”. प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “5 दिसम्बर को दिल्ली उच्च न्यायालय में उनका पता लगाने हेतु बंदी प्रत्यक्षीकरण का मुक़दमा किया गया तो न्यायालय ने दिल्ली पुलिस और एम्स नई दिल्ली को उनका पता लगाने के लिए दो हफ्ते का समय दिया”. इसके बाद भी अब तक संत गोपालदास के बारे में किसी को कई जानकारी नहीं है.यह सब रहस्यमय और एक बड़ी साजिश का हिस्सा इसलिए भी लगता है क्योकि उत्तराखंड पुलिस लगातार उनके साथ साए की तरह लगी रहती थी और एम्स नई दिल्ली से देहरादून तक वे उत्तराखंड पुलिस के साथ ही आये थे.

लगभग दो महीने पहले संत गोपालदास ने एक साक्षात्कार में कहा था, वे गंगा के लिए अनशन नहीं बल्कि तपस्या कर रहे हैं और प्रशासन उन्हें फुटबाल न बनाए. दरअसल वे फ़ुटबाल की चर्चा इसलिए कर रहे थे क्योकि उत्तराखंड प्रशासन ने उनपर एक अघोषित सी घेराबंदी कर थी और अपनी मर्जी से उन्हें अनशन करते हुए उठा लेती थी और किसी भी अस्पताल में दाखिल करा देती थी. अस्पताल भी उन्हें बिना ठीक किये कभी भी बाहर का रास्ता दिखा देता था. सबसे बड़ी बात तो यही है कि संत गोपालदास को ऐसी क्या स्वास्थ्य समस्या थी जिसका इलाज एम्स ऋषिकेश में नहीं हो सकता था. एम्स ऋषिकेश ने उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ भेज दिया. यहाँ फिर वही नाटक दोहराया गया और अंत में एम्स नई दिल्ली रेफर किया गया. सवाल फिर भी यही है कि क्या एम्स नई दिल्ली से उन्हें पूरी तरह से ठीक कर के भेजा गया, और यदि वे पूरी तरह से ठीक थे तो फिर एम्स ऋषिकेश में वापस क्यों भर्ती किया गया. लगातार पुलिस की निगरानी में हॉस्पिटल में भर्ती रहने के बावजूद संत गोपालदास गायब हो जाते हैं और पूरे प्रशासन को पता ही नहीं चलता, इसे साजिश नहीं तो और क्या कहा जाये?

जिस गंगा पर किये गये अपने काम पर सरकार इतना इतराती है, उसकी कलई एक आरटीआई के जवाब में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खोल कर रख दिया है. इसमें बताया गया है कि वर्ष 2013 से 2017 के बीच किसी भी स्थान पर गंगा का पानी पहले से साफ़ नहीं हुआ है. अलबत्ता अनेक महत्वपूर्ण स्थानों, जिसमें वाराणसी और इलाहाबाद (प्रयाग) भी शामिल है, में प्रदूषण का स्तर पहले से बढ़ गया है. गंगा में प्रदूषण बढ़ गया है, यह जानने के लिए किसी भी आंकड़े की जरूरत नहीं है, सब इसे महसूस कर रहे हैं.

सरकार का रवैया पर्यावरण के क्षेत्र में बिलकुल स्पष्ट है – आवाज उठाने वाले हर व्यक्ति को मार दिया जाएगा. स्टरलाईट कौपर के मामले को सभी जानते हैं, स्वामी सानंद का हाल भी देख चुके. संत गोपालदास भी लापता कर दिए जाते हैं. उनके बाद कोई और होगा. संतगोपालदास ने अपने एक प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट बताया था कि किस तरह का व्यवहार उनके साथ ऋषिकेश के एम्स में किया जाता था, जिसमें बड़े अधिकारी से लेकर निचले स्तर तक के कर्मचारी सम्मिलित रहते है. पुलिस का रवैया भी दमनकारी से अधिक कुछ नहीं होता. संत गोपालदास के अनुसार एम्स में उनके साथ जिस तरह व्यवहार किया जाता है, उसे देखकर पक्का यकीन है कि स्वामी सानंद को मारा गया है.

गंगा के साथ समस्या यह है, स्वामी या संत एक-एक कर गंगा के लिए अपनी जान देने पर तुले हैं, इन मामलों के विशेषज्ञ जो हैं वे वातानुकूलित कमरों में सेमीनार और कांफ्रेंस में उलझे हैं और आम जनता पूरे विषय पर उदासीन है. स्वामी सानंद के समय प्रेस और मीडिया को एक-दो दिनों के लिए गंगा की याद आई, फिर सब कुछ शांत हो गया. अब संत गोपालदास की कई खबर भी नहीं आती. इन सबके बीच सरकार का रवैय्या भी बिलकुल स्पष्ट है, प्रदूषण से मरिये नहीं तो आवाज उठाने पर मार डाले जायेंगे या फिर गायब करा दिए जायेंगे.