माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी (एमसीसी), गुजारत ने राज्य सरकार द्वारा आयोजित किये जाने वाले “वाइब्रेंट गुजरात समिट” का विरोध करने का ऐलान किया है. यह संगठन समिट में भाग लेने वाले सभी देशों के दूतावासों को पत्र लिखकर यह अपील करेगा कि वे गुजरात सरकार पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय संधियों को पूरा करने का दवाब डालें और अगर राज्य सरकार फिर भी अल्पसंख्यकों को उनका वाजिब अधिकार नहीं दे, तो वे इस समिट का बहिष्कार करें.

विदेशी निवेशों को आकर्षित करने के उद्देश्य से द्विवार्षिक ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट’ 18 - 22 जनवरी तक गुजरात की राजधानी गांधीनगर में आयोजित की जा रही है.

देर से प्राप्त सूचना के अनुसार, 12 दिसम्बर को गुजरात की राजधानी गांधीनगर में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी (एमसीसी), गुजरात के संयोजक मुजाहिद नफ़ीस ने कहा, “आप सभी जानते हैं कि भारत ने मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणापत्र, अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा, संयुक्तराष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य जैसी अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किये हैं. इन संधियों के मुताबिक सरकार को लोगों के कल्याण के लिए काम करना होता है. लेकिन गुजरात सरकार इन सभी समझौतों का उल्लंघन कर रही है और अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार मुहैया कराने में कोई रूचि नहीं ले रही है. इसके बावजूद वह ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट’ के लिए अंतरराष्ट्रीय मेहमानों को अपने यहां बुलाने में कोई शर्म नहीं कर रही है.”

श्री नफ़ीस ने आगे कहा, “माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी (एमसीसी) गुजरात में अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के लिए पिछले दो वर्षों से राज्य सरकार से बात करने का प्रयत्न कर रही है, लेकिन मुख्यमंत्री को मिलने का भी समय नहीं है. जबकि ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट’ जैसी ‘भव्य नौटंकी’ के आयोजन के लिए उनके पास पर्याप्त समय है.”

उन्होंने गुजरात में अल्पसंख्यक समाज के विकास एवं सुरक्षा के लिए कई मांगें गिनायीं. श्री नफ़ीस ने कहा, “राज्य में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की स्थापना की जाये; राज्य के बजट में अल्पसंख्यक समुदाय के विकास के लिए ठोस आबंटन किया जाये; राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाये व इसको संवैधानिक मजबूती का विधेयक विधानसभा में पास किया जाये; राज्य के अल्पसंख्यक बहुल विस्तारों में कक्षा 12 तक के सरकारी स्कूल खोले जायें; मदरसा डिग्री को गुजरात बोर्ड के समकक्ष मान्यता दी जाये; अल्पसंख्यक समुदाय के उत्थान के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाये; सांप्रदायिक हिंसा से विस्थापित हुए लोगों के पुनर्स्थापन के लिए सरकार नीति बनाये; और प्रधानमंत्री के नये 15 सूत्रीय कार्यक्रम को पूर्ण रूप से लागू किया जाये.”

श्री नफ़ीस ने आगे कहा कि ये सभी मांगें संवैधानिक है और इन मांगों को पूरी करने के लिए सरकार अंतरराष्ट्रीय संधियों से भी बंधी हुई है. उन्होंने कहा, “भारत के संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में विधि के समक्ष समता की बात स्पष्ट रूप से उल्लेखित है और इस बात का भी साफ़ जिक्र है कि राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमंे से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा. राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के उन्नयन के लिए कोई विशेष प्रावधान करेगा और अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण करेगा. लेकिन गुजरात सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणापत्र के अनुछेद 2,6,7,8,26 का खुला उल्लंघन कर रही है.”

श्री नफीस का कहना था कि 18 दिसम्बर 1992 को “राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा” में यह स्पष्ट उल्लेखित है कि “राज्य अपने-अपने क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों की राष्ट्रीय या जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान के अस्तित्व की रक्षा करेंगे और उस पहचान को बढ़ावा देने के लिए शर्तों को प्रोत्साहित करेंगे”.

उन्होंने यह भी कहा कि 2015 में संयुक्तराष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य के लक्ष्य 10 व 16 में अल्पसंख्यकों पर विशेष ध्यान देने की बात कही गयी है. भारत इन सभी अंतरराष्ट्रीय समझौतों को स्वीकार कर चुका है.

श्री नफीस ने कहा, “भारत के प्रधानमंत्री महोदय गुजरात से हैं. फिर भी, गुजरात में अल्पसंख्यकों के विकास एवं उनकी सुरक्षा की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. राज्य सरकार एक ओर जहां भारत के संविधान एवं अंतरराष्ट्रीय समझौतों का खुला उल्लंघन कर रही है, वहीँ ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट’ जैसे आयोजन कर दुनिया को धोखा दे रही है. गुजरात सरकार ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट’ की वेबसाइट तो अरबी में बनाती है, लेकिन गुजरात में अरबी पढ़ने वाले बच्चों को गुजरात बोर्ड के समकक्ष मान्यता नहीं दे रही.”

उन्होंने ऐलान किया, “हम इस समिट में आने वाले सभी देशों के दूतावासों, भारत के प्रधानमंत्री महोदय, गुजरात के मुख्यमंत्री महोदय को पत्र लिखेगे और उन्हें बतायेंगे कि गुजरात में राज्य सरकार अंतरराष्ट्रीय समझौतों, सतत विकास लक्ष्य व भारत के संविधान के मूल तत्वों का स्पष्ट उल्लंघन कर रही है. हम उनसे अपील करेंगे कि आप गुजरात सरकार को ये सभी मांगें पूरी करने को कहें. और जब तक ये मांगें पूरी न की जायें, आप वाइब्रेंट गुजरात समिट में शामिल ना हों. अगर फिर भी ये भेदभावपूर्ण शोषण ख़त्म नहीं होता है और हमारी न्यायपूर्ण मांगे पूरी नहीं होती है तो हम 17 जनवरी को भारत के प्रधानमंत्री महोदय का और 18 जनवरी को वाइब्रेंट गुजरात समिट के उद्घाटन के समय विरोध प्रदर्शन करेंगे और पूरी दुनिया को गुजरात में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में बतायेंगे.”