उत्तर प्रदेश में हाल में हुए ताबड़तोड़ मुठभेड़ों की जांच की मांग को लेकर पीपुल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) एवं सिटीजन्स अगेंस्ट हेट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि “यह एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है और अदालत द्वारा इसे गंभीरता से लिया जायेगा”. मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी.

उत्तर प्रदेश में पुलिस ‘मुठभेड़ों’ की जांच अदालत की निगरानी में कराये जाने की मांग को लेकर पीयूसीएल द्वारा एक जनहित याचिका पिछले साल जुलाई में दायर की गयी थी. याचिका के मुताबिक, पिछले एक साल में 1100 से अधिक ऐसी मुठभेड़ें हुई हैं, जिनमें 49 लोग मारे गये और 370 लोग घायल हुए.

याचिका में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 17 जुलाई, 2017 को दिये गये उस कथित बयान का भी जिक्र किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि “अपराधी या तो जेल भेजे जायेंगे या फिर मारे जायेंगे”. याचिका में यह तर्क दिया गया है कि राज्य सरकार गैरकानूनी हत्याओं को बढ़ावा दे रही है.

इस साल 11 जनवरी को संयुक्त राष्ट्र के चार मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मार्च 2017 से लेकर अबतक उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा कम से कम 59 लोगों की गैरकानूनी हत्या के आरोपों पर चिंता जाहिर की थी.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि “वे घटनाओं की प्रकृति को लेकर बहुत चिंतित हैं - मारने से पहले लोगों को कथित तौर पर या तो अपहृत किया गया था या फिर गिरफ्तार किया गया था, और उनके शरीर पर चोटों के निशान यातना का संकेत दे रहे थे”.

उन्होंने बताया कि 15 मामलों के बारे में विस्तृत ब्यौरा भारत सरकार को भेज दिया गया है. इनमें अधिकांश मामले गरीबी में जी रहे मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों के थे. इन विशेषज्ञों को भारत सरकार की ओर से जवाब मिलने का इंतज़ार है.

इन विशेषज्ञों ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि “सबूत इन मौतों के पुलिस हिरासत में होने का संकेत करते हैं. सभी मामलों में, पुलिस का कहना था कि ये मौतें मुठभेड़ और आत्म – रक्षा के दौरान हुईं हैं”.

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने आगे जोड़ा, “मारने से पहले पुलिस द्वारा पीड़ित को छोड़ने के एवज में रिश्वत मांगे जाने समेत भ्रष्टाचार के कई आरोप भी हमें प्राप्त हुए हैं.”

उन्होंने इन खबरों पर गंभीर चिंता जतायी कि पुलिस द्वारा पीड़ितों के परिजनों एवं इन मामलों को उठाने वाले मानवाधिकार रक्षकों का उत्पीड़न किया जा रहा है, उन्हें मौत की धमकियां दी जा रही हैं और झूठे आपराधिक मामलों में फंसाया जा रहा है.

इन विशेषज्ञों ने कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें अन्य ऐसी मौतों, धमकियों एवं उत्पीड़न की ख़बरें मिलना जारी है. ये सभी गंभीर आरोप हैं, जिनपर तत्काल कार्रवाई की जरुरत है.”

उन्होंने इस बात पर चिंता जतायी कि जांच से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के दिशा – निर्देशों का राज्य द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है. इनमें पुलिस द्वारा मृतक के परिजनों को सूचित करने, घटनास्थल का परीक्षण करने, मृतक के परिजनों को पोस्टमार्टम के रिपोर्ट की प्रति देने एवं एक स्वतंत्र जांच एजेंसी को मामला हस्तांतरित करने में असफल रहना शामिल है.

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बल प्रयोग की तत्काल समीक्षा करने की जरुरत बतायी ताकि कानून लागू करने की सभी कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, शीघ्रता एवं स्वतंत्र रूप से हो जिससे संभावित गैरकानूनी हत्याओं के सभी आरोपों की गहन जांच और अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाना सुनिश्चित हो सके.

इस बीच, मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने संबंधित पक्षों को बताया कि वे संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों द्वारा जारी बयान से अवगत हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी इन आरोपों का प्रतिवाद करते हुए अदालत को बताया कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी सभी दिशा – निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया है और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इन मामलों की जांच कर रहा है.

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत को सूचित किया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग फिलहाल मुठभेड़ के 17 मामलों की जांच कर रहा है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक स्थिति रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय के सामने पेश करने का निर्देश दिया जाये. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस मुद्दे पर अगली सुनवाई के दौरान विचार किया जायेगा.