सीबीआई के अंतरिम निदेशक के तौर पर नागेश्वर राव की नियुक्ति के खिलाफ दायर एक याचिका की सुनवाई से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा खुद को अलग कर लेने के बाद, न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी ने भी अब खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया है.

याचिकाकर्ता और सूचना अधिकार कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि अब इस याचिका पर सुनवाई सीबीआई के नये निदेशक के चयन के लिए नियुक्त समिति की आज की निर्धारित बैठक से पहले नहीं हो पायेगी.

द सिटिज़न से बात करते हुए इस जनहित याचिका की सह – याचिकर्ता सुश्री भारद्वाज ने कहा, “हमें उम्मीद थी कि अदालत आज इस मसले को सुलझाने के लिए निर्देश देगी और सरकार को यह जानकारी देने का आदेश देगी कि सीबीआई के निदेशक पद के लिए किन नामों को चिन्हित किया गया है और क्यों.”

उन्होंने आगे जोड़ा, “अब जबकि अदालत आज इस मसले दुबारा सुनवाई नहीं कर सकी, दुर्भाग्य से परिस्थितियां ऐसी हो गयी हैं कि पारदर्शिता एवं जवाबदेही संबंधी अदालत के किसी निर्देश के बगैर चयन समिति की बैठक होगी. एक लोकतंत्र में यह बेहद खतरनाक है.”

दुष्यंत दवे ने अदालत को बताया कि इस मामले में न्यायमूर्ति सीकरी के हटने से एक “गलत संदेश” गया. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि आप इस मामले को सुनना नहीं चाहते ......आलोक वर्मा को हटाये जाने के मसले पर यह अदालत अपनी सीमा से भी बाहर गयी. लेकिन नयी नियुक्ति की जब बारी आयी, तो वह इसकी सुनवाई में अनिच्छा दिखा रही है.”

जवाब में न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा, “इसमें मेरी अपनी दिकक्तें हैं.”

न्यायमूर्ति सीकरी उस उच्चाधिकार प्राप्त समिति में भागीदार थे, जिसने आलोक वर्मा को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार सरकार द्वारा सीबीआई के निदेशक पद पर दुबारा बहाल किये जाने के दो दिनों के बाद ही उन्हें हटाने का निर्णय लिया.

निदेशक पर फिर से बहाल हुए श्री वर्मा को हटाये जाने के बाद सरकार ने नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक के तौर पर नियुक्त किया.

इससे पहले, मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोगोई ने यह कहते हुए खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग किया कि वे उस समिति के सदस्य हैं जो 24 जनवरी को अगले सीबीआई निदेशक का चयन करने वाली है. लिहाजा इस मामले को न्यायमूर्ति सीकरी की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ को स्थानांतरित किया गया.

कॉमन कॉज द्वारा दायर याचिका में यह कहा गया है कि जैसाकि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत प्रावधान है, नागेश्वर राव की नियुक्ति एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिश पर नहीं की गयी है.

कॉमन कॉज ने कहा कि यह इस अधिनियम का "अवैध, मनमाना और दुर्भावनापूर्ण उल्लंघन" है. इस संगठन ने सरकार को यह निर्देश दिये जाने की मांग की कि वह अधिनियम के नियमों के मुताबिक सीबीआई के नियमित निदेशक की नियुक्ति करे.

सुश्री भारद्वाज ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में पारदर्शी प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, सरकार को एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों के बिना सीबीआई निदेशक नियुक्त करने का प्रभार नहीं दिया जा सकता है.

याचिका में कहा गया है कि यही वजह है कि सीबीआई निदेशक के रूप में राव को प्रभार देने का सरकारी आदेश अवैध है और डीएसपीई अधिनियम की धारा 4 ए में उल्लिखित नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ है.