आम चुनावों की घोषणा के बाद देश में तेज होती राजनीतिक सरगर्मियों के बीच विभिन्न नागरिक संगठनों एवं समुदाय के लोगों के साथ – साथ गुजरात के अल्पसंख्यकों ने भी अपना एक घोषणा - पत्र जारी कर विभिन्न राजनीतिक दलों से अपने भविष्य को लेकर राजनीतिक दलों से गंभीर सवाल पूछा है. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों से उनके सवालों को मुख्यधारा में लाने और उन्हें अपने चुनावी घोषणा - पत्र में जगह देने की मांग भी की है.

प्राप्त सूचना के अनुसार, शहीद भगत सिंह की शहादत दिवस के मौके पर 23 मार्च को गुजरात के अहमदाबाद में माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी (एमसीसी) के बैनर तले “वॉयस ऑफ़ माइनॉरिटीज 2019” के नाम से लोकसभा चुनावों के लिए अल्पसंख्यकों का घोषणा - पत्र जारी किया गया.

माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी (एमसीसी), देश और खासकर गुजरात में अल्पसंख्यक समाज के विकास एवं सुरक्षा के प्रश्न लगातार उठाता रहा है.

घोषणापत्र जारी करते हुए एमसीसी के संयोजक मुजाहिद नफ़ीस ने कहा, “पिछले कुछ कुछ समय से देश में अल्पसंख्यकों के प्रश्न हाशिये पर धकेल दिए गए हैं. अल्पसंख्यक समुदाय देश और गुजरात राज्य में लगातार गैर - बराबरी, छुआछूत और भेदभाव का शिकार हो रहा है. इसलिए, हमने अल्पसंख्यक समाज को प्रभावित करने वाले सभी गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दों को इस घोषणा – पत्र में संकलित किया है. हम इस घोषणा – पत्र को सभी राजनीतिक दलों के पास भेजेंगे और उनसे इस पर अपना पक्ष स्पष्ट करने की मांग करेंगे.”

श्री नफीस ने आगे बताया कि एमसीसी के तमाम साथीगण गुजरात के सभी लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के दौरान इस घोषणापत्र को सभी उम्मीदवारों को देंगे और उनसे इस बारे में अपना रवैया साफ़ करने को कहेंगे.

एमसीसी द्वारा जारी घोषणा – पत्र में मुख्य रूप से अल्पसंख्यकों के विकास और सुरक्षा से संबंधित मुद्दे शामिल हैं. इस घोषणा - पत्र में कहा गया है कि “अभी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 बहुत कमजोर है. इसमें राज्यों में अल्पसंख्यक आयोग के गठन की स्पष्ट व्यवस्था नहीं है. इसमें आयोग के अधिकार भी स्पष्ट नहीं है. इसकी वजह से देश में अल्पसंख्यक समुदाय के शिकायतों का प्रभावी निस्तारण नहीं हो पा रहा है. यही नहीं, देश के सिर्फ 18 राज्यों में ही अल्पसंख्यक आयोग मौजूद हैं. गुजरात में भी अल्पसंख्यक आयोग नदारद है. इसलिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 में संशोधन कर उसे संवैधानिक दर्जा दिया जाये और सभी राज्यों में अल्पसंख्यक आयोग के गठन को अनिवार्य बनाया जाये.”

घोषणा – पत्र में आगे कहा गया है कि “सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने यह आईना दिखाया है कि देश में मुसलमान रोजगार, नौकरियों (सरकारी एवं निजी), शिक्षा और अवसर के मामले में राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं. भेदभाव के कारण उन्हें पर्याप्त अवसरों से वंचित रखा जा रहा है. इसलिए “सभी को समान अवसर” की संविधान की मूल भावना को अमल में लाने के लिए “समान अवसर आयोग” का गठन किया जाये और उसे संवैधानिक दर्जा दिया जाये ताकि अल्पसंख्यक समुदाय को विकास के पथ पर आगे बढ़ने का समान मौका मिल सके.”

हाल के वर्षों में देशभर में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हुए संगठित हमलों के मद्देनजर घोषणा – पत्र में अविलंब अल्पसंख्यक (अत्याचार निवारण) कानून बनाने और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध होने वाले अपराधों को गैर – जमानती बनाने की मांग भी की गयी है.