आयकर विभाग द्वारा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों पर छापे के बाद से प्रदेश के सियासी माहौल में उबाल आ गया है. लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से 4 दिन पहले की गयी इस कारवाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं और इसके राजनीतिक मायने भी तलाशे जा रहे हैं. जहां एक तरफ भाजपा इसे “काले धन” पर प्रहार बता रही है, तो वहीँ कांग्रेस इसको भाजपा द्वारा आगामी चुनाव में लाभ लेने की कवायद बता रही है.

आयकर विभाग के इस छापे के दायरे में मुख्यमंत्री कमलनाथ के पूर्व निजी सचिव प्रवीण कक्कड़, ओएसडी राजेंद्र कुमार मिगलानी, भांजे रतुल पुरी, अश्विनी शर्मा, प्रदीप जोशी शामिल हैं, जिनके 50 से अधिक ठिकानों पर छापे मारे गये हैं. दावा किया जा रहा है इस छापेमारी के दौरान करोड़ों की संपत्ति और नगदी मिली है.

पश्चिम बंगाल की तरह, यहां भी आयकर विभाग की टीम द्वारा प्रदेश की ऐजेंसियों बाताये बिना ही यह कार्रवाई की गयी है. यहां तक कि राज्य चुनाव आयोग तक को इसके बारे में जानकारी नहीं दी गई थी. आईटी टीम अपने साथ केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के जवानों की टुकड़ी भी लाई थी, जिसकी वजह से छापेमारी के दौरान सीआरपीएफ़ और मध्यप्रदेश पुलिस के बीच टकराव जैसी स्थिति बन गयी थी.

आयकर विभाग की इस कारवाई के बाद भाजपा हमलावर नजर आ रही है. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि पिछले 100 दिनों में राज्य में जो खेल चला था, यह सब उसी का नतीजा है. नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में कमलनाथ सरकार में जो ट्रांसफ़र उद्योग चलाया गया, उसके नतीजे अब जनता के सामने आ रहे हैं. उन्होंने कहा है कि “मुख्यमंत्री के ओएसडी के यहाँ से छापे में कालेधन का मिलना गंभीर मामला है, नैतिकता के आधार पर मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफ़ा दे देना चाहिये.”

इस मामले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लातूर के अपने चुनावी रैली में जोर-शोर से उठाया. कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि “मध्यप्रदेश में सरकार बने अभी छह महीने नहीं हुए, लेकिन इनकी कलाकारी देखिए कि अरबों-खरबों रुपये की लूट के सबूत मिल रहे हैं.”

दूसरी तरफ, कांग्रेस ने पलटवार करते हुए आरोप लगाया है कि यह कार्यवाही चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस पार्टी की छवि खराब करने और राजनीतिक दबाव बनाने का एक असफल प्रयास है. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आरोप लगाया है कि ये सब मोदी सरकार के इशारे पर हो रहा है. उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि पूरा देश जानता है कि पिछले पांच वर्षों से ये लोग कैसे संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल करते आये हैं. जब इनके पास विकास और अपने काम पर कुछ कहने और बोलने के लिए नहीं बचता है, तो ये विरोधियों के खिलाफ इसी तरह के हथकंडे अपनाते हैं.

छापेमारी को लेकर भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय द्वारा की गयी एक ट्वीट भी सवालों के घेरे में है. अपने ट्वीट में उन्होंने बताया था कि इस छापेमारी के दौरान करीब 281 करोड़ रुपए बरामद किये गये हैं. दिलचस्प बात यह है कि बरामद किये गये इस रकम के बारे में उन्होंने यह जानकारी आयकर विभाग से दस घंटे पहले ही दे दी थी. ऐसे में, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आयकर विभाग की आधिकारिक जानकारी से पहले 10 घंटे पहले ही कैलाश विजयवर्गीय को 281 करोड़ के बारे में जानकारी कैसे मिल गयी?

इस पूरे प्रकरण में, चुनाव आयोग का रुख भी गौरतलब है. आयोग ने जांच एजेंसियों को आगाह करते हुए निर्देश दिया है कि आचार संहिता के दौरान होने वाली कार्रवाई एकतरफा नहीं होनी चाहिये और ऐसी किसी भी कार्रवाई से पहले इसकी सूचना आयोग को दी जाये.

एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल को लेकर मोदी सरकार का रिकार्ड पहले से ही खराब रहा है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार चुनाव से ठीक पहले पिछले छह महीनों के दौरान आयकर विभाग द्वारा विपक्ष के नेताओं या उनसे जुड़े लोगों के यहां 15 बार छापामारी की गयी है.

ऐसे में, आयकर विभाग द्वारा की गयी इस कारवाई की टाइमिंग और मकसद को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे हैं. ठीक ऐसे समय जब लोकसभा चुनाव प्रचार अपने चरम पर है, आयकर विभाग की इस छापेमारी में सियासी मकसद ढूंढें जा रहे हैं. इससे पहले पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी आयकर विभाग द्वारा की गयी छापेमारी को लेकर बवाल हो चुका है. इस मामले में ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू धरना भी दे चुके हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी पर चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियों को कमजोर करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप लगा चुके हैं.

मध्यप्रदेश में सत्ता से बाहर होने के बाद से प्रदेश भाजपा इकाई में भ्रम और नेतृत्वहीनता की स्थिति बन गयी है. पार्टी की राज्य इकाई में खेमेबाजी, आपसी घमासान और उथल-पथल अपने चरम पर है. आज स्थिति यह है कि सूबे में लोकसभा चुनाव के लिए जहां कांग्रेस पार्टी का प्रचार ज़ोर पकड़ चुका है, वहीँ भाजपा में टिकटों के लिए घमासान चल रहा है.

प्रदेश में भाजपा के सबसे बड़े नेता शिवराज सिंह चौहान को भले ही राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया हो, लेकिन राजनीतिक रूप से वे अभी भी पूरी तरह से व्यवस्थित नहीं हो पाये हैं. उनका एक पांव अभी भी मध्यप्रदेश में जमा हुआ है. वैसे भी, उन्होंने अपने सामने किसी और नेता को पनपने नहीं दिया था. इधर, मध्यप्रदेश में जमे रहने की उनकी जिद के कारण पार्टी में नयी टीम भी उभर कर सामने नहीं आ पा रही है.

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव की हार के बाद से पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व शिवराज की मर्जी के खिलाफ उन्हें प्रदेश की राजनीति से बेदखल करने को आमादा है. दरअसल मोदी और शाह की जोड़ी इस बात को बखूबी समझती हैं कि अगर पार्टी में उनकी स्थिति थोड़ी भी कमजोर पड़ती है, तो शिवराज सिंह मजबूत विकल्प केर रूप में सामने आ सकते हैं. लिहाजा, उन्हें उनके मजबूत किले से बाहर निकालना जरूरी है. इसलिए, उन्हें राज्य से बाहर निकालने की एक खामोश जद्दोजहद जारी है.

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये जाने के बावजूद भी शिवराज खुद को प्रदेश की राजनीति में ही सक्रिय बनाये हुये हैं. फिलहाल, उनकी सारी जद्दोजहद हिंदी – पट्टी के इस ह्रदय प्रदेश की जमीन पर अपनी पकड़ को कमजोर ना होने देने की है. इसके लिए वे हरसंभव प्रयास कर रहे हैं और प्रदेश में अपने दखल का कोई ना कोई बहाना ढूंढ ही लेते हैं. सूबे में, उनके आलावा कोई और चमकदार चेहरा ना होने की वजह से वे लोकसभा चुनाव तक के लिए भाजपा आलाकमान के लिए मजबूरी हैं.

पार्टी में चल रही खींचतान के कारण शिवराज इस लोकसभा चुनाव के दौरान उदासीन से दिखाई पड़ रहे हैं. इससे पार्टी की राज्य ईकाई में असमंजस्य की स्थिति बनी हुई है. और राज्य में पार्टी की सारी उम्मीदें मोदी- शाह के करिश्मे और रणनीतियों पर निर्भर है. कमलनाथ के करीबियों पर हुई छापेमारी को इससे भी जोड़ कर देखा जा रहा है. इस कवायद का मकसद सक्रिय और तेजी निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री की छवि बना रहे कमलनाथ को कमजोर करना भी माना जा रहा है.

बहरहाल, इस छापेमारी की गूंज प्रदेश में लोकसभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया के दौरान बनी रहेगी. जैसाकि अनुमान था, कमलनाथ सरकार द्वारा भी पलटवार किया गया है. इसके तहत राज्य की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा भाजपा की शिवराज सरकार के दौरान हुए बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में आठ कंपनियों पर एफआईआर दर्ज किया गया है. करीब 80 हजार करोड़ रूपये का यह घोटाला, अपनी तरह का तरह का एक अनोखा घोटाला था. इसमें भ्रष्टाचार रोकने के लिए बनायी गयी व्यवस्था को ही घोटाले का जरिया बना लिया गया था .

बताया जाता है कि इस घोटाले में अब शिवराज सरकार में मंत्री रहे तीन भाजपा नेता - नरोत्तम मिश्रा, कुसुम मेहदेले, रामपाल सिंह और कई करीबी नौकरशाह जांच के घेरे में आ गये हैं.

जाहिर है, वार और पलटवार में उलझी राजनीति के बीच मध्यप्रदेश में लोकसभा का यह चुनाव छापेमारी और घोटाले की जांच के साये में ही लड़ा जायेगा.