सुबह के आठ बजे हैं और 24 परगना जिले के बजबज के एमजी रोड स्थित एक तीन – मंजिले मकान के भीतर भू- तल पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कार्यालय में 50 लोग मौजूद हैं.

इनमें से अधिकांश अधेड़ और बुजुर्ग हैं. वे सब डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले वाम – मोर्चा के उम्मीदवार और कोलकाता के डॉक्टर फुआद हलिम के चुनाव प्रचार के लिए तैयार हो रहे हैं. डायमंड हार्बर में चुनाव के अंतिम चरण में 19 मई को वोट डाले जायेंगे.

श्री हलिम काफी समय से पश्चिम बंगाल की राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन इस बार से पहले चुनावी मैदान में वो सिर्फ 2011 के विधानसभा चुनाव में उतरे थे. तब बालीगंज विधानसभा क्षेत्र में उनका सामना तृणमूल कांग्रेस के सुब्रत मुख़र्जी से हुआ था और 41,000 से अधिक वोटों से उनकी हार हुई थी.

यह वही चुनाव था जिसमें ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में 34 साल पुराने वाम – मोर्चा के शासन का अंत किया था.

चुनावी अखाड़े में श्री हलिम का प्रवेश उस समय हुआ था, जब राज्य की राजनीति में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ ढीली पड़ रही थी. उनके पिता हाशिम अब्दुल हलिम 1982 से लेकर 2011 तक लगातार 29 साल पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष रहे थे. और उनके दादा नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में कोलकाता नगर निगम में पार्षद थे.

ऐसी पृष्ठभूमि के बावजूद श्री हलिम की चुनावी राह आसान नहीं है. उनका सामना डायमंड हार्बर के वर्तमान सांसद और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी से है. 2014 के संसदीय चुनाव में श्री बनर्जी ने यह सीट 71, 000 से अधिक वोटों से जीती थी. सीपीएम का उम्मीदवार यहां दूसरे स्थान पर रहा था.

पिछले महीने, चुनाव प्रचार के दौरान श्री हलिम पर कथित रूप से तृणमूल समर्थकों द्वारा कई बार हमले किये गये. भाजपा उम्मीदवार नीलांजन रॉय पर भी कथित रूप से तृणमूल कार्यकर्ताओं की ओर से हमले हुए.

खैर, सुबह के 9 बज चुके हैं और 150 से अधिक लोग जुट चुके हैं. जमा हुए लोगों में स्त्री – पुरुष अनुपात बेहतर है, लेकिन युवाओं की अनुपस्थिति खटकती है. डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले बजबज के बड़े हिस्से और सतगछिया विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्से में कार्यकर्ताओं और समर्थकों को प्रचार के लिए ले जाने के लिए 9 टेम्पो तैयार खड़े हैं.

श्री हलिम के प्रचार के लिए जादवपुर के वर्तमान विधायक और सीपीएम के लोकप्रिय नेता सुजान चक्रबर्ती जुटे हैं. ये दोनों नेता पार्टी की कुछ महिला कार्यकर्ताओं व समर्थकों के साथ सबसे आगे वाले टेम्पो में सवार होते हैं. टेम्पो में इन दोनों नेताओं को कुर्सी पर खड़े होकर प्रचार करने की व्यवस्था की गयी है.

बुधवार की सुबह की चिलचिलाती गर्मी में सुबह के सवा नौ बजे रोड शो शुरू होता है. जल्दी ही यह स्पष्ट हो जाता है कि इस क्षेत्र के लोगों के बीच सुजान चक्रबर्ती खासे लोकप्रिय हैं. ज्योंहि कोई उनका अभिवादन करता, तो वे खुश होते और टेम्पो में सवार बाकी लोगों का उत्साह दुगना हो जाता.

दूसरी गौर करने वाली बात यह थी कि चारों तरफ अभिषेक और ममता बनर्जी के बड़े – बड़े पोस्टरों की भरमार थी. कई पोस्टरों में तो मुख्यमंत्री की तस्वीर नदारद थी. उनके भतीजे ने उनकी पार्टी के चुनाव – चिन्ह को बौना बना दिया था. इसके उलट, सीपीएम और भाजपा के पोस्टर न के बराबर नजर आ रहे थे.

भाजपा के संदर्भ में, उनके अधिकांश पोस्टरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद हैं. जबकि पार्टी उम्मीदवार की तस्वीर नदारद है.

श्री हलिम का रोड शो, गंगा नदी के समांतर दोनों ओर छोटे दुकानों से घिरे तंग सड़कों से गुजरता है. इन इलाकों में चिलचिलाती धूप में मछुआरे और ईंट - भट्टों के मजदूर कठिन मेहनत करते दिख जाते हैं.

“इंक़लाब जिंदाबाद” के नारों से भरे शुरुआती उत्साह के बाद 11 बजते – बजते अधिक गर्मी की वजह से चेहरे पर थकान नजर आने लगती है. इसके बावजूद श्री चक्रबर्ती और श्री हलिम भीड़ का अभिवादन करना जारी रखते हैं. एक पार्टी कार्यकर्ता माइक पर लोगों से सीपीएम के चुनाव चिन्ह “हसिया और हथौड़ा” पर वोट करने की लगातार अपील करना जारी रखता है.

दोपहर होते - होते रोड शो ख़त्म होता है. काफिला पार्टी कार्यालय के सामने रुकता है. इस बीच, दो कार्यकर्ता अधिक गर्मी सहन नहीं कर पाने की वजह से क्षणिक तौर पर मूर्छित होते हैं.

एक सवाल के जवाब में श्री हलिम ने कहा कि “इस किस्म की रैलियां लोकतांत्रिक प्रवृति को दर्शाती हैं. जहां तक सीपीएम का सवाल है, इस कठोर मौसम में शारीरिक कठिनाइयों को झेलते हुए हमारे कामरेड पिछले आठ सप्ताह से लगातार जुटे हुए हैं.”

दो सप्ताह पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें डायमंड हार्बर में तृणमूल समर्थकों को एक जीप पर अभिषेक बनर्जी का पुतला रखकर प्रचार करते हुए दिखाया गया है. विपक्ष और मीडिया के एक हिस्से द्वारा यह दावा किया गया कि श्री बनर्जी द्वारा गर्मी सहन नहीं कर पाने की वजह से तृणमूल को ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा.

श्री हलिम ने टिप्पणी करते हुए कहा, ““आपके सामने अन्य पार्टियां हैं जो मौसमी परिस्थितियों, जिसमें लोग काम कर रहे हैं, से बचने की कोशिश कर रही हैं. आज आपने देखा होगा कि जब हम ईंट के भट्टों से गुजरे, तो वास्तव में लोग नारे लगा रहे थे.”

इस सवाल के जवाब में कि क्या उनका एक राजनेता के साथ – साथ चिकित्सक भी होना उनकी चुनावी संभावनाओं को बाधित करता है, श्री हलीम कहते हैं, "मैं अपना जीवन एक राजनेता और चिकित्सक के रूप में अलग - अलग नहीं जीता. एक चिकित्सक के तौर पर मेरा पेशा वाम राजनीति के प्रति मेरी समझ और प्रतिबद्धता पर आधारित है. इसलिए दोनों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है.”

श्री हलीम मध्य कोलकाता के मोहम्मद इशाक रोड पर एक नर्सिंग होम चलाते हैं, जहां गरीब लोगों का इलाज किया जाता है.

इस अहम चुनौती से जूझने के बावजूद श्री हलिम अपनी चुनावी संभावनाओं को लेकर आशान्वित हैं. उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि लोग परिस्थितियों में बदलाव चाहते हैं और वे मतदान के दिन परिस्थिति को बदल देंगे.”