लखनऊ के पब्लिक स्कूल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 12(1)(ग) के तहत कक्षा 1 से 8 तक जिन बच्चों के दाखिले का आदेश जिला प्रशासन करता है उसे मानने को तैयार नहीं हैं। बच्चों के साथ भेदभाव है। लखनऊ के पब्लिक स्कूल मुफ्त शिक्षा के लिए दाखिला लिए गए बच्चों से अवैध रूप से शुल्क वसूल रहे हैं।

आम तौर पर इन निजी विद्यालयों का मनमाना शुल्क वसूलने व तानाशाही रवैए के कारण अभिभावकों के ऊपर आतंक रहता है। इन विद्यालयों की कार्यशैली से असंतुष्ट होते हुए अभिभावक अपने बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अन्याय को बर्दाश्त करते हैं। निजी विद्यालय अभिभावकों की नाजुक स्थिति को भांपते हुए उनका जमकर शोषण करते हैं।

इन निजी विद्यालयों को नियंत्रित करने के लिए सरकार को इनका राष्ट्रीयकरण कर देश में समान शिक्षा प्रणाली लागू करनी चाहिए, जिसके माध्यम से ही दुनिया के कई देशों ने प्राथमिक शिक्षा के लोकव्यापीकरण का लक्ष्य हासिल किया है। इसका कोई अपवाद नहीं है। बिना सरकारी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत किए गरीबों के बच्चों का कोई भविष्य नहीं है।

यदि यह विचार अति क्रांति कारी लगे तो फिलहाल अंतरिम तौर पर निजी विद्यालयों का प्रशासनिक हिस्सा सरकार को अपने नियंत्रण में ले लेना चाहिए। विद्यालय के मालिक पढ़ाई-लिखाई व अन्य गतिविधियों का संचालन करते रहें किंतु दाखिले व शुल्क सम्बंधित निर्णय शिक्षा विभाग का कोई अधिकारी ले जो इन निजी विद्यालयों के कार्यालय में बैठे। निजी विद्यालय से देश के कानूनों का अनुपालन कराने के लिए यह आवश्यक है।

चूंकि कानून का नाम मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम है अतः जो भी निजी विद्यालय चलाना चाहें उन्हें विद्यालय के संचालन हेतु धन की व्यवस्था भी करनी चाहिए। यह विभिन्न तरीकों से हो सकता है।

शिव नादर का एच.सी.एल. फाउंडेशन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर व सीतापुर में दो विद्या ज्ञान विद्यालयों को निजी नवोदय विद्यालयों की तरह संचालित कर रहा है। ग्रामीण इलाके के प्रतिभाशाली बच्चों को आवासीय व्यवस्था में रखकर कक्षा 6 से 12 तक पूरी पढ़ाई का खर्च संस्था उठाती है। माता-पिता को एक पैसा भी नहीं खर्च करना पड़ता। इस विद्यालय का वित्तीय पोषण हिन्दुस्तान कम्प्यूटरस् लिमिटेड कम्पनी करती है।

सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ कम्पनियां ही निजी विद्यालय चलाएंगी? आंध्र प्रदेश के पूर्ण चंद्र राव ने यह दिखा दिया है कि कोई व्यक्ति भी चाहे तो वह विद्यालय का संचालन कर सकता है। रेलवे प्लेटफॉर्म पर बच्चों की स्थिति से द्रवित होकर पूर्ण चंद्र ने अपनी क्लर्क की नौकरी छोड़ 1996 में गुंटूर जिले के नाडेण्डला मण्डल के कनापर्थी गांव में, अपने पैतृक गांव में जमीन बेचकर आए रु. 80,000 से, जमीन खरीदी। अपनी भविष्य निधि से प्राप्त रु. 23,000 से अपने लिए एक दो पहिया वाहन खरीदा। आज उसी स्कूटर पर बैठ वे पूरे हैदराबाद में घूम घूम कर विद्यालय के संचालन हेतु धन संग्रह करते हैं। उनकी पत्नी जयलक्ष्मी एक निर्माण कम्पनी में लेखा-जोखा का काम देखते हुए परिवार की आजीविका चलाती हैं। आज यह कम्पनी पूर्ण चंद्र को चंदा देने वाली तीसरी सबसे बड़ी कम्पनी है।

2002-03 में जब पूर्ण चंद्र ने अपने विद्यालय का निर्माण शुरू किया तो उन्हें रु. 2.37 का चंदा मिला था। आज वे सालाना रु. 1.33 करोड़ रुपए चंदा एकत्रित कर लेते हैं। उनको चंदा देने वालों में निजी कम्पनियां, मध्यम से छोटे व्यापारी, हैदराबाद के कई निजी विद्यालय व तमाम देश विदेश में रहने वाले व्यक्ति शामिल हैं। हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि लोगों का उनपर कितनी भरोसा होगा क्योंकि वे हरेक माह रु. 9 लाख इकट्ठा करते हैं। वे हफ्ते में 7 दिन व प्रत्येक दिन 18 घंटे काम करते हैं। आज उनके विद्यालय में 275 अनाथ या अर्द्ध अनाथ यानी एक माता या पिता वाले बच्चे तथा 25 शिक्षक-शिक्षिकाएं व अन्य कर्मचारी रहते हैं। इन सभी के रहने खाने व बच्चों की पढ़ाई का खर्च विद्यालय उठाता है।

उपर्युक्त दो उदाहरणों से स्पष्ट है कि ऐसे निजी विद्यालय चलाने के लिए धन की व्यवस्था की जा सकती है ताकि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की भावना के अनुसार बच्चों के लिए शिक्षा मुफ्त हो। बल्कि जब विद्यालय चलाने वाले को धन संग्रह भी करना पड़ेगा तो वही लोग विद्यालय चलाएंगे जो वाकई में शिक्षा देने का काम करना चाहते हैं। जो लोग व्यवसायिक मानसिकता है विद्यालय खोले हुए हैं वे अपने आप मैदान छोड़ देंगे। शिक्षा एवं स्वास्थ्य मनुष्य की मूलभूत जरूरतें हैं व सभी को मुफ्त उपलब्ध होनी चाहिएं। यदि कोई पैसा कमाने के लिए इन गतिविधियों को संचालित कर रहा है तो गरीब इन सेवाओं से वंचित रह जाएगा जैसा आज के हिन्दुस्तान में हो रहा है। परिपक्व समाज में सभी नागरिकों तक पहुंच बनाने के लिए ये दोनों क्षेत्र मुफ्त व सरकार के नियंत्रण में रहते हैं।

जो व्यक्ति या संस्था विद्यालय संचालन के लिए धन संग्रह का कष्ट भी उठाएंगे वे शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान रखेंगे। यदि मुनाफा कमाने की दृष्टि से विद्यालय चलाया जा रहा है तो शिक्षा की गुणवत्ता के साथ समझौता होगा ही। पैसा कमाने के उद्देश्य से चलाए जाने वाले विद्यालय बच्चों में पैसे की हवस ही पैदा करेंगे और शिक्षा को ज्ञान प्राप्त करने वाला कार्यक्रम मानकर चलने वाले विद्यालय बच्चों में सेवा भावना पैदा करेंगे। अतः एक मानवीय समाज स्थापित करने के लक्ष्य को भी हासिल करने के लिए निजी विद्यालय बंद हो जाने चाहिए।

उ.प्र. उच्च न्यायालय ने सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने का एक तरीका बताया है - सभी सरकारी तनख्वाह पाने वाले लोगों के बच्चों का सरकारी विद्यालयों में पढ़ना अनिवार्य कर दिया जाए। जब सरकारी विद्यालय अच्छे हो जाएंगे तो निजी विद्यालय अपने आप अप्रासंगिक हो जाएंगे। यह हमारे बड़े लक्ष्य समान शिक्षा प्रणाली की ओर ले जाएगा। ऐसी व्यवस्था में विद्यालय चाहे सरकारी होगा अथवा निजी बच्चे के लिए शिक्षा मुफ्त व उच्च गुणवत्ता वाली होगी।

(संदीप पाण्डेय is a well known activist based in Lucknow. He is a Magsaysay award recipient)