हरयाणा के, मानेसर, इलाके में कार्यरत, जापान के सुजुकी समूह की साझेदारी में चलने वाली मारुती कार फैक्ट्री कई मायनों में अव्वल है यह कंपनी भारत में सबसे ज्यादा कार बनाती है. देश के कार बाज़ार की 50. 4 फीसदी मांग को यह कंपनी पूरा करती है.साल 2016- 2017 में कंपनी ने 15,68,000 कार बनायीं. इस साल कंपनी का मुनाफा 7300 करोड़ रुपये से ऊपर था.

मारुती की फैक्ट्री दुनिया की अत्याआधुनिक तकनीक से चलने वाली फैक्ट्री है. इस फैक्ट्री में 51-52 सेकंड में एक कार बनायी जाती है.

दुनिया के पैमाने पर मारुती फैक्ट्री सबसे शोषणकारी औद्योगिक संबंधों का अग्रणी उदहारण है. लेकिन सभी बड़ी यूनियंस जैसे एआईसीटूसी , सीटू , एचएमएस,बीएमएस, इंटेक आदि के समर्थन न देने के बावजूद तथा विदेशी पूँजी को देश की समस्याओं का राम बाण हल मानने वाली बड़ी राजनितिक पार्टियों के विरोध के बावजूद मारुती मज़दूर पिछले 6 - 7 सालों से आंदोलन चला रहे हैं और उसे बारे में दावा किया जा रहा है कि वह मज़बूत हो रहा है.

मारुती की मानेसर फैक्ट्री में प्रशासन और मज़दूरों के बीच विवाद जून 2011 से ही चल रहा था. विवाद का विषय पहले था स्वतंत्र यूनियन बनाने का अधिकार और 1 मार्च 2012 को यूनियन के रजिस्टर हो जाने के बाद 13 सूत्री मांगपत्र पर प्रशासन से यूनियन की बात चीत चल रही थी. मारुती में जारी ठेका प्रथा का अंत और ठेका मज़दूरों को नियमित करना यूनियन की मुख्य मांगों में से एक थी. 18 जुलाई 2012 की सुबह जियालाल नामक मज़दूर और एक सुपरवाइजर के बीच विवाद हुआ था जिसमें प्रशासन ने जियालाल को निलंबित कर दिया. यह सब उस समय हुआ जबकि मज़दूर नेता कुछ पुराने मुद्दों के संबंध में प्रबंधन के साथ बैठक कर रहे थे. जब निलंबन की खबरें यूनियन तक पहुंची तो उन्होंने मांग की कि निलंबन रद्द किया जाये. मज़दूरों के अनुसार, उस दिन परिसर में कंपनी ने कई बाउंसर ( भाड़े पर बुलाये गए पहलवान) भी तैनात किए थे और बातचीत के वक़्त प्रशासन ने पुलिस भी बुला ली थी. निलंबन को रद्द करने के सवाल पर प्रशासन के टाल मटोल के कारण, तनाव बढ़ता गया. उसके बाद हुए हाथापाई में, कुछ प्रशासन कर्मी और मज़दूरों को चोटें आयी. इस बीच कार्यालय में आग लग गयी और सांस के घुटने के कारण एक एचआर प्रबंधक श्री अविनाश देव की दुःखद मृत्यु हो गयी.

इसी घटना को लेकर चले केस ( स्टेट बनाम राम मेहर आदि.) में 18 मार्च 2017 को दिए गए अपने निर्णय में, गुडगाँव डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज श्री आर पी गोयल ने 148 आरोपियों में से 117 को बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया. 13 आरोपियों को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गयी, 4 आरोपियों को हिंसक प्रवेश के जुर्म में 5 साल की जेल की सजा दी गयी तथा शेष 14 आरोपियों को गंभीर क्षति पहुँचाने का दोषी पाया गया, लेकिन चूँकि वो पहले से जेल में रहते हुए अपनी सजा काट चुके थे, उन्हें रिहा कर दिया गया. तेरह मज़दूर जिन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई गयी है उनमें से बारह मारुती मानेसर की यूनियन के पदाधिकारी सदस्य है( राम मेहर, संदीप ढिल्लों , रामविलास , सरबजीत सिंह , पवन कुमार , सोहन कुमार , प्रदीप कुमार ,अजमेर सिंह , जिया लाल , अमरजीत कपूर , धनराज भाम्बी , योगेश कुमार और प्रदीप गुज्जर ) तथा तेरहवां आदमी जिया लाल है जिसका 18 जुलाई 2012 कि सुबह एक सुपरवाइजर के साथ विवाद हुआ था.

इस केस का फैसला न्याय/ कानून पर आधारित न होकर सरकार की हर शर्त पर विदेशी पूँजी को बुलाने और उन्हें मुनाफे की खुली छूट देने की नीति पर आधारित है. लोहिया के शब्दों में- कानून व्यक्ति की पसंद- नापसंद पर मुनहसिर है, न कि न्याय की मर्यादा पर. इसी सच को विस्तार से विश्लेषित करते हुए इस अन्यायपूर्ण फैसले की पहली बरसी के अवसर पर पीयूडीआर ( पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स) ने अपनी रिपोर्ट ‘ ए प्री –डिसाईडेड केस: मारुती फैसले की एक आलोचनात्मक विवेचना 2017 ’ जारी की है.

यह रिपोर्ट जांच की प्रकृति, मुकदमे की प्रक्रिया और अभियोजन पक्ष की नीयत के बारे में सवाल उठाती है. साथ ही साथ रिपोर्ट न सिर्फ मारुति के श्रमिकों के लिए, ऑटोमोबाइल उद्योग में श्रमिकों के लिए बल्कि देश व्यापी स्तर पर मजदूरों के अधिकारों और संघर्षों के सम्बन्ध में फैसले के गंभीर प्रभाव की विवेचना करती है .2017 के फैसले के विस्तृत विश्लेषण के माध्यम से इस रिपोर्ट ने दर्शाया है कैसे न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन कर , अपराधी को अपराध से जोड़ने के लिए साक्ष्य की आवश्यकता का उल्लंघन कर यह फैसला कंपनी के इशारे पर पूंजी की सेवा में सक्रिय और मुखर श्रमिकों को दोषी ठहराता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दोषी कर्मचारियों को तत्काल रिहा किया जाए तथा एक ताजा, निष्पक्ष, स्वतंत्र और न्यायपूर्ण जांच द्वारा केस की फिर से सुनवाई हो.