राजस्थान में विधानसभा चुनाव के पूर्व "जयपुर" में विकास के वैकल्पिक मॉडल पर विमर्श करने के लिए देश- विदेश से प्रख्यात अर्थशास्त्रियों , पर्यावरणविदों, पत्रकारों एवं सामाजिक कार्यकर्ता जमा हो रहे हैं। प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्कॉलर अश्वनी कबीर ने बताया कि जयपुर में 5 ओर 6 मई को विकास के वैकल्पिक व्यवस्था की संभावना पर खुली बातचीत होगी। देशभर से प्रख्यात अर्थशास्त्री, पर्यावरणविद , समाजशास्त्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता 2 दिनों के इस कार्यक्रम में विचार विमर्श के बाद अंतिम सत्र में विकास का वैकल्पिक मॉडल रखेंगे।

इस कार्यक्रम का पहला उद्देश्य है , उस विकास के मॉडल की असलियत समाज के सामने रखना जिसे हम पिछले 70 वर्षों से लेकर चला रहे हैं, उसमें क्या क्या चुनौतियाँ आ रही हैं और हम उनका क्या समाधान कर रहें हैं जबकि असल में होना क्या चाहिए?इस कार्यक्रम के आयोजकों का दावा है कि समाज के उन हिस्सों को उस मॉडल से जोड़ रहे है जिसके लिए वो मॉडल बनता तो है लेकिन वो कहीं उस मॉडल में नही होता।

इस परिचर्चा की पृष्ठभूमि में कहा गया है कि हमने यूरोप की मॉडर्निटी की बस जा रही थी उसमें सब कूद गए, यूरोप की उसी ट्रिकल डाउन सिद्धांत को अपना लिया और उसी को ढोये जा रहे हैं। 70 साल पहले ये कह तो दिया कि सामाजिक न्याय होगा, सभी की इज्जत ओर सम्मान की जिंदगी होगी लेकिन हो क्या रहा है? एक तरफ तो अनाज सड़ रहा है, किसानों को उनकी पैदावार का दाम नही मिल रहा और दूसरी तरफ लोग भूखे मर रहे है और जमीन की उत्पादकता घट रही है।अदिवासियों के जल जंगल जमीन को छीन कर वहां बिल्डिंग खड़ी कर रहें है और उससे कोई पूछ ही नही रहा कि आदिवासियों को ये इमारतें चाहिए या नही।

पर्यावरण ह्रास के अंतिम चरण में पहुंच गया है।देश की 70 प्रतिशत संपति केवल 1 प्रतिशत लोगों के पास है, असंगठित क्षेत्र के लोगो का रोजगार छीन गया है, हर साल लेबर फ़ोर्स बढ़ रही है लेकिन नए रोजगार पैदा नही हो रहे । इन सबकी वजह से समाज मे तनाव, हताशा ओर हिंसा बढ़ रही है।

आयोजकों का कहना है कि वे इस बात का दावा नही कर रहे कि अंतिम सत्य उनकी मुट्ठी में है। उनके अनुसार केवल इतना कह रहे है कि विकास का मॉडल उस समाज की सहमति के साथ हो, समावेशी हो जो सबको साथ लेकर चले, वो सतत हो, जो पर्यावरण के साथ सुसंगत हो, सहभागी वाला हो वो समानता को लाने वाला हो, वो समाज मे आशा, उत्साह ओर प्रसन्ता को बढाने वाला हो ,वो लोकतंत्र की आत्मा के साथ सुसंगत हो अर्थात विकास मॉडल स्वंय समाज के अंदर से निकले न कि किसी देश की कॉपी हो ओर हम ऐसा ही मॉडल देना चाहते हैं।

इस कार्यक्रम के संयोजक के अनुसार इस वैकल्पिक मॉडल को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर" नई दिशाएं" ओर "संभावना" नाम से शुरु कर रहे हैं जिसमे नई दिशाएं पढ़े लिखे युवाओं के लिए है और संभावना असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए ।