प्रधानमंत्री जी गले मिलने को गले पड़ना बताते हैं, पूरे संसद को और कैमरे के सामने. चलिए मान लेते हैं, अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी मोदी की नीतियों पर खरी-खोटी सुनाने के बाद उनके गले पड़ गए. पर, प्रधानमंत्री जी को भी पूरी दुनिया को यह बताना चाहिए कि किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को देखते ही वे उसके गले क्यों पड़ जाते हैं. एकदम उदासीन शक्ल के साथ बैठे मोदी जी से राहुल गांधी मुस्कराकर गले मिलते हैं, यदि इसे गला पड़ना कहते हैं तब तो प्रधानमंत्री जी को डोनाल्ड ट्रम्प के गले पड़ने वाली तस्वीर को जरूर याद करनी चाहिए. उस समय ट्रम्प बिलकुल उदासीन शक्ल के साथ खड़े थे और मोदी जी गले पड़ते हुए मुस्करा रहे थे.

बीजेपी को लगता है मानो गले मिलना या गले पड़ना केवल मोदी जी का जन्मसिद्ध अधिकार है या आधुनिक शब्दों में पेटेंट राईट है. तभी तो, प्रधानमंत्री जी का किसी राष्ट्राध्यक्ष के गले पड़ने को वे कूटनीतिक चाल बताते है, दिल से दिल मिलना बताते है, देश की संस्कृति और परंपरा बताते है. जबकि राहुल गांधी जब अपने प्रधानमंत्री के गले मिलते हैं तब उन्हें परेशानी होने लगती है. मर्यादा का उल्लंघन, बच्चों जैसा व्यवहार, चिपको और मुन्नाभाई की झप्पी जैसे जुमले ध्यान आने लगते हैं. मोदी सरकार में मंत्री और शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाए जाने पर कहा, "यह संसद है, 'मुन्नाभाई' का 'पप्पी-झप्पी एरिया' नहीं है...'. हरसिमरत कौर इस वाक्य से केवल राहुल गांधी को ही नहीं बल्कि मोदी जी को भी मुन्नाभाई बता गयी और गले मिलने को पप्पी-झप्पी. बीजेपी ने कहा कि है राहुल गांधी ने पीएम मोदी से गले मिलकर नियम तोड़ा है. इसके अलावा, बीजेपी सांसद किरण खेर ने कहा, "राहुल गांधी को शर्म आनी चाहिए... वह हमारे मंत्रियों को बिना किसी सबूत के निशाना नहीं बना सकते... वह सदन में ड्रामा कर रहे थे, और मोदी जी को गले लगा रहे थे... मुझे लगता है, उनका कदम बॉलीवुड होगा... हमें उन्हें वहां भेजना ही होगा...". किरण खेर का आजतक कोई भी वक्तव्य ऐसा नहीं होगा, जिसपर कमेंट करने का मन करता हो. आश्चर्य, बस यह है कि तालियाँ बजाकर भाषण देनेवाले, बात-बात पर आंसू बहानेवाले, मेरे पास माँ है, बतानेवाले बॉलीवुड जाने लायक नहीं लगते.

सुमित्रा महाजन को सदन की मर्यादा नजर आ रही थी. सदन की मर्यादा यदि गले मिलने से टूटती है तब तो मोदी जी ने राहुल गांधी की पीठ थपथपाकर भी मर्यादा का उल्लंघन किया होगा. सदन की मर्यादा तो देश की मर्यादा भी होती है, जब मोदी जी गले मिलते हैं तब सुमित्रा महाजन को यह ख्याल क्यों नहीं आता? मोदी जी ने कभी कहा था, वे गले मिलते हैं क्यों कि यह भारतीय परंपरा है. लोक सभा में उल्टा हो गया, जिसपर विदेशी संस्कृति अपनाने का आरोप बीजेपी मढ़ती है, उसने भारतीय परंपरा को अपनाया. दूसरी तरफ, भारतीय संस्कृति की दुहाई देनेवाले प्रधानमंत्री जी ने हाथ मिलाकर विदेशी संस्कृति से अपने लगाव को दुनिया को दिखा दिया.

इस पूरे प्रकरण से सबकी भूमिका भी स्पष्ट हो गयी. मीडिया को एक ऐसा मसाला मिला, जिससे राहुल गाँधी समेत दूसरे विपक्षी नेताओं के भाषणों के मुख्य बिन्दुओं को समाचारों से गायब रखा जा सके. इन मुद्दों को गायब रखने में किसी झूठी तस्वीर या फेक न्यूज़ का सहारा नहीं लेना पड़ा. सभी मंत्री और दूसरे बीजेपी नेताओं को भी एक मसाला मिल गया. भारतीय राजनीति, विकास और मर्यादा सब एक चित्र में सिमट कर रह गया, यही वर्ष 2019 का भारत है.