महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने जब मुंबई के निकट नाल्लासोपारा इलाके के एक मध्यमवर्गीय परिवार के घर पर छापा मारा और सनातन संस्था के कथित सदस्य वैभव राउत को गिरफ्तार किया, तो मुझे जरा भी हैरानी नहीं हुई.

जब पुलिस वालों ने उसके घर से 8 बम, बारूद और डेटोनेटर बरामद किया, तब भी मैं नहीं चौंका.

चरमपंथी हिन्दुत्ववादी समूहों के भूमिगत गतिविधियों से मैं अवगत हूं. हालांकि, जिस बात ने मुझे चौंकाया वह थी दिनदहाड़े इस किस्म की गतिविधियों को संचालित करने की उनकी हिम्मत. खासकर उस परिस्थिति में जब दाभोलकर – पानसरे – कलबुर्गी – गौरी लंकेश की हत्या के मामलों की जांच जारी है और इनकी निगरानी मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा की जा रही है.

यह साफ़ तौर पर उनके दुस्साहस को दर्शाता है. एटीएस ने इस मामले में दो और लोगों को गिरफ्तार किया और उनके पास से पिस्तौल बरामद किया. इनमें से एक का संबंध संभाजी भिड़े के संगठन से है.

पुलिस अधिकारियों ने इन गिरफ्तारियों के जरिए महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में बम विस्फोट करने के एक षडयंत्र का पर्दाफाश करने का दावा किया है. इस षडयंत्र के उद्देश्यों और उसके सरगना के बारे में हमें अभी कुछ नहीं मालूम. एटीएस ने इस बारे में और अधिक खुलासा करने से इनकार किया है.

एक खास संदर्भ में देखने पर ये गिरफ्तारियां बेहद गंभीर हैं. ये गिरफ्तारियां स्वतंत्रता दिवस, ईद और मराठा आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुई हैं. सनातन संस्था ने वैभव राउत के साथ किसी किस्म का संबंध होने से इनकार किया है, लेकिन वह उसकी कानूनी लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार है. जाहिर है, हिन्दुत्व के हितों के लिए बम बनाना देशभक्ति का काम है. संस्था के प्रवक्ता ने पत्रकारों को बताया कि वैभव हिन्दू जनजागृति समिति (एचजेएस) का सदस्य था, न कि सनातन संस्था का. सनातन संस्था ने इस आजमाये हुए तौर – तरीकों का इस्तेमाल अतीत में भी किया है.

लेकिन हिन्दू जनजागृति समिति (एचजेएस) चरमपंथी हिन्दुत्ववादी समूहों की एक छतरी है जिसके तले सनातन संस्था, राम सेने, हिन्दू राष्ट्र सेना, हिन्दू विधिदन्य परिषद एवं कई अन्य अतिवादी संगठन आते हैं.

सनातन संस्था अपने गोवा स्थित मुख्यालय में हर साल वार्षिक सम्मेलन करती है. यह कई सिरों वाला एक हाईड्रा है जो जांच एजेंसियों को उलझा देने में समर्थ है. हालिया छापेमारी के बाद सनातन संस्था को प्रतिबंधित करने के बारे में एक बार फिर बहस छिड़ गयी है.

लेकिन अगर हम इस देश में कानून – व्यवस्था बनाये रखने के बारे में गंभीर हैं, तो हमें इस बारे में बहस नहीं करनी चाहिए. सनातन संस्था का एक दशक पुराना आपराधिक इतिहास है. मडगांव एवं थाणे के बम विस्फोट मामले में इसके सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था. इसके दो सदस्यों को दोषी करार दिया गया था और वे फिलहाल जमानत पर हैं. दाभोलकर और पानसरे की हत्या के मामले में वांछित सनातन संस्था के सदस्य फरार चल रहे हैं. इन मामलों में गिरफ्तार दो लोग सनातन साधक हैं.

कर्नाटक एटीएस द्वारा पेश दस्तावेजों के मुताबिक गौरी लंकेश की हत्या के तार सनातन संस्था और राम सेने से जुड़ते हैं. इन संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली व्यक्तिगत धमिकयों और मानहानि के मुकदमों के बारे में तो खैर मैं बात ही नहीं कर रहा.

हमें यह याद रखने की जरुरत है कि सनातन संस्था कोई धार्मिक, आध्यात्मिक या राजनीतिक संगठन नहीं है. यह एक हत्यारी प्रवृति है जो अपने विरोधियों एवं आलोचकों को ठिकाने लगाकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहती है. अगर आपको मेरी बातें अतिरंजित लगती हैं, तो आप सनातन संस्था का वेबसाइट देखें. उन्होंने दाभोलकर और पानसरे की तस्वीरों पर क्रॉस का निशान लगाकर उनकी हत्या से पहले उसे अपनी वेबसाइट पर जारी किया था. उनका मुखपत्र रोजाना अपने आलोचकों की मानहानि करता है और उन्हें धमकाता है. इन गुंडों ने हाल में कन्नड़ और कोंकणी भाषा के लेखकों को भी धमकाया है.

वर्ष 2011 में, महाराष्ट्र एटीएस ने सनातन संस्था की आतंकी गतिविधियों के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस रिपोर्ट को केंद्र की यूपीए सरकार के पास सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश के साथ भेजा था. सरकार बदल गयी है, लेकिन इनका रवैया नहीं बदला. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सनातन संस्था के खिलाफ कार्रवाई करने की उम्मीद करना बेमानी है क्योंकि उन्होंने 2013 में हिन्दू जनजागृति सम्मेलन को अपनी शुभकामनाएं भेजी थी.

गोवा में मनोहर पर्रिकर सरकार में भागीदार एक राजनीतिक दल, एमजीपी, के एक नेता सनातन संस्था का खुलकर समर्थन करते हैं. इससे संस्था का पुलिस से बचाव होता है. सनातन संस्था के खिलाफ आतंकवाद विरोधी कानून के तहत कार्रवाई नहीं करने के पीछे पुलिस अधिकारी सबूतों के अभाव का तर्क देते हैं. लेकिन सबूत इकठ्ठा करने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है?

महाराष्ट्र पुलिस और सीबीआई ने पिछले पांच सालों में कुछ खास नहीं किया है और उच्च न्यायालय ने उन्हें कड़ी फटकार लगायी है. महाराष्ट्र एफडीए ने सनातन संस्था के पनवेल स्थित आश्रम में छापा मारकर वहां से आपत्तिजनक दवाइयां बरामद की थीं. लेकिन इस मामले में आगे कुछ भी नहीं हुआ.

गौरी लंकेश मामले को सुलझाने का श्रेय कर्नाटक पुलिस को जाता है. हालिया छापेमारी और गिरफ्तारियों के वास्ते सुराग देने के लिए महाराष्ट्र एटीएस को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए. लेकिन कलबुर्गी मामले में जांच आगे नहीं बढ़ी है और मृतक बुद्धिजीवी के परिजनों को अब इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगानी पड़ी है.

अगर भारत सरकार सिमी या ज़ाकिर नायक के संगठन को प्रतिबंधित कर सकती है, तो अतिवादी हिन्दुत्ववादी समूहों के साथ ऐसा करने में उसे क्या दिक्कत है?

क्या इन संगठनों को सजा से मुक्ति सिर्फ इसलिए मिल जाती है कि वो एक हिन्दू संगठन हैं?

हमें शहीद पुलिस अफसर और एटीएस के पूर्व प्रमुख हेमंत करकरे को बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने हिंदुत्ववादी आतंक की जांच में असाधारण साहस दिखाया था. उनके पास मालेगांव – मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस मामलों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अभिनव भारत से जुड़े सदस्यों के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे. लेकिन इन मामलों को एनाईए को सौंप दिया गया. अनजान कारणों से यूपीए सरकार ने इन मामलों में कभी तेजी नहीं दिखाई और नरेंद्र मोदी सरकार में इन मामलों को कथित रूप से कमजोर कर दिया गया है.

सरकारी वकील रोहिणी सालियन ने एक समाचार पत्र को दिये गये एक साक्षात्कार में इन मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप का खुलासा किया है. सनातन संस्था और जनजागृति के सदस्यों की हालिया गिरफ़्तारी ने हिंदुत्ववादी आतंक के अस्तित्व को एक बार फिर से साबित किया है. यह इस्लामी आतंक के जैसा ही खतरनाक है. सरकार को इन आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने का साहस दिखाना चाहिए. अगर जांचकर्ताओं ने इसके सरगना को पकड़ने में तत्परता नहीं दिखाई, तो एक और हत्या या बम विस्फोट की घटना से रूबरू होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी.