क्या आपको लगता है कि इतिहास के साथ एक युद्ध लड़ा जा रहा है? जी, आप बिल्कुल सही हैं. वर्तमान सरकार पिछले कुछ सालों से ऐसा कर रही है, और अब वह अपने चरम पर पहुंच गयी है. वे पुरानी मूर्तियां गिरा रहे हैं, उनकी जगह जिसे वे महत्वपूर्ण समझते हैं उसे स्थापित कर रहे हैं, शिलापट्टों को हटा रहे हैं, स्थानों / सड़कों / हवाईअड्डों / शहरों के नाम बदल रहे हैं और हमारी अतीत की स्मृतियां मिटा रहे हैं.

आप अतीत को बदल नहीं सकते, लेकिन शायद कुछ लोगों को यकीन है कि हमारे अतीत की स्मृतियों को हटाकर वे भविष्य बदल सकते हैं.

अगर आप कर्णावती से बरास्ते गुरुग्राम और अयोध्या में विश्राम के साथ प्रयागराज तक की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो यह सुनिश्चित कर लें कि आपके पास नया मानचित्र है वरना आप बस चकित होकर गोल – गोल घूमते हुए यह सोचते रह जायेंगे कि आखिर मैं हूं कहां ! सरकार की संकीर्णता इस हद तक जा पहुंची है कि आप सचमुच अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति उनकी जहरीली नफरत को साफ़ – साफ़ देख सकते हैं.

भविष्य की आपदाएं अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं. शहरों और सड़कों के नाम बदलना निहायत ही बचकाना है. पहले से ही चोटिल एवं जर्जर हमारी व्यवस्था और भी बदतर होती जा रही है. हम पतन की गर्त में गिरते हुए एक खतरनाक अंत की ओर बढ़ते जा रहे हैं, और इसके लिए उनलोगों का शुक्रिया जो अपने निजी हितों के लिए जानबूझकर इतिहास की गलत व्याख्या करते हैं.

एक बात तो निश्चित है कि : अगर देश को आगे बढ़ना है, तो वह अपने को अलग – थलग रखने और संकीर्ण मानसिकता में उलझने का जोखिम नहीं मोल ले सकता. उसे बहिर्मुखी होकर समानता एवं सांस्कृतिक बहुलता वाली आधुनिक दुनिया में सहकार, प्रतियोगी और भागीदार होना पड़ेगा. हम अंतर्मुखी होने का जोखिम नहीं ले सकते. लेकिन अगर हम संकीर्ण मानसिकता में उलझे रहेंगे, तो अंतरराष्ट्रीय जगत में कैसे प्रतियोगिता या भागीदारी करेंगे?

यह महज एक संयोग नहीं हो सकता कि वैश्विक आर्थिक अवसर के दरवाजे हमारे लिए खुले हैं और हम राष्ट्रवाद के बुनियादी मुद्दे से जूझ रहे हैं. यह एक ऐसा महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसपर हमें तत्काल राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर गौर करने की जरुरत है. संविधान प्रत्येक नागरिक, चाहे वह किसी भी धर्म और पृष्ठभूमि का हो, के अधिकारों को संरक्षण देता है. हमें संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांत को स्वीकार करने और वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति बेहतर करने की जरुरत है.

हमें ‘संकीर्णता’ की राजनीति से आगे बढ़ना होगा क्योंकि यह एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्रगति में सहायक नहीं होगा. आप अतीत को नहीं बदल सकते. अगर आप कुछ बदल सकते हैं तो वह है इसे देखने का नजरिया और समझदारी कि कैसे एक देश या समुदाय आगे बढ़ने और विकास करने के क्रम में हसीन और कठिन क्षणों से गुजरता है.

विवादों में घिरे रहने वाले योगी आदित्यनाथ जहर उगलने के लिए प्रसिद्ध हैं. उनकी पूरी राजनीति धार्मिक टकराव पर आधारित है. उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ा है. उनका उभार बहुसंख्यक समुदाय की चिंताओं एवं निराशाओं के दोहन में निहित है. जानबूझ कर टकरावों को हवा देना उस कदर नियंत्रण में नहीं रहता, जैसाकि वो सोचते हैं. आदित्यनाथ का राजनीतिक इतिहास नफ़रत और भय का रहा है और धर्मनिरपेक्षता की असफलता की ओर देखने से भी उनके पाप कतई कम नहीं हो जाते. उनके लगातार उकसावे की वजह से राजनीतिक आख्यान का विकास से हटकर विभाजनकारी मुद्दों पर केन्द्रित होने की संभावना है.

शांति और सदभाव विकास की बुनियादी शर्त हैं और सभी मोर्चों पर इसकी कमी है. इस किस्म की आदिम युग की राजनीति आधुनिक भारत के उदय को खतरे में डालती है. यह बेहद दुख की बात है कि योगी या मोदी की सरकारों ने नफरत, भय और धमकी की सांप्रदायिक राजनीति को गले लगाने का फैसला करने में अधिक समय नहीं लगाया.

हम अपने देश की जिंदगी के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं. वर्तमान शासन ने विकास का मुखौटा उतर दिया है और उन तत्वों को रास्ता दिया है जो कभी हाशिये पर थे. अतिवादी, नफ़रत को संचालित करने वाला हिंदुत्व अब आवश्यक रूप से आधिकारिक गतिविधियों के केंद्र में है.

भारतीय जनता पार्टी का लक्ष्य 7 दिसंबर के चुनावों में तेलंगाना की सत्ता में आने के बाद हैदराबाद और 'महान लोगों' के नाम पर रखे गये राज्य के अन्य शहरों के नाम बदलना है. इलाहाबाद, फैजाबाद, अहमदाबाद, हैदराबाद आदि नामों पर रुकिए ... यह सूची अंतहीन जान पड़ती है ... उन्हें अपनी यादों में समेटिये ... राजनीतिक शो चल रहा है ... राष्ट्र का दम घोंटा जा रहा है.