जयललिता कोई आम महिला नहीं थी बल्कि राजनीतिक आयकन, एक सुप्रसिद्ध कलाकार और सफल महिला भी थी। वह महिला सशक्तिकरण की प्रतीक थी।

जयललिता की पूरी जिंदगी पर नजर दौड़ाया जाये तो एक चीज बहुत ही महत्व पूर्ण है और वहऔ है उनका दृढ़ संकल्पो। शायद यही वह गुण था जिसकी वजह से जिस चीज में जयललिता ने हाथ लगाया, उसमें अपार सफलता हासिल की। जयललिता को उनके प्रशंसक और उनकी पार्टी एआईएडीएमके के नेता तथा समर्थक ‘अम्माि’ के साथ-साथ ‘पुरात्चि थलाइवी’ भी कहा करते थे जिसका अर्थ है- क्रांतिकारी नेता। जयललिता ने अपने अंदर की इस क्रांति को सदैव बरकरार रखा और अपनी जिंदगी से जुड़ी हर क्षेत्र में इसका खूब इस्ते माल किया।

अपनी जिंदगी की दास्तांद बयां करती हुयी जयललिता ने कहा था कि मैंने अपनी जिंदगी का एक तिहाई हिस्सेप को मां के अनुसार जिया, दूसरी तिहाई जिंदगी एमजी रामचंद्रन के अनुसार जिया और बाकी की जिंदगी ही उन्हों ने अपने अनुसार जिया। जिंदगी का अधिकांश हिस्सात जिसने दूसरे के अनुसार जिया इसके बावजूद सफलता उनके कदम चूमे ऐसे व्यहक्ति बिरले ही होते हैं। क्यों ‍कि ऐसा माना जाता है कि बिना ईच्छाब के किसी काम को करने से उसमें सफलता नहीं मिलती।

अम्मा प्रारंभ से ही पढ़ाई में अच्छी‍ थी जिसके कारण उनकी दिले ईच्छाई थी कि वे एक कामयाब वकील बने। किंतु बचपन में ही पिता का देहवासन हो जाने और घर की खराब स्थिति के कारण मां के कहने पर मजबूरन उन्होंंने फिल्मीप दुनिया में कदम रखा। ईच्छाप के विपरीत भी बीस साल की उम्र में जयललिता ने सुपर स्टानर का दर्जा हासिल कर लिया। जब एम जी रामचंद्रन जयललिता को राजनीति में लेकर आये तो वह भी उनकी ईच्छाे के विपरीत था फिर भी जयललिता ने जो मुकाम हासिल किया वह कोई असाधारण व्याक्ति ही कर सकता था।

अम्मा की दृढ़ संकल्प ता इससे भी देखी जा सकती कि उन्होंाने कैसे फिल्मीर दुनिया में स्त्री चित्रण को पूरी तरीके से बदलकर रख दिया। उन्हों़ने फिल्मोंस में भी काम अपनी शर्तों पर किया। जिस समय तमिल फिल्मों की अभिनेत्रियां सिर्फ साड़ी जैसे परिधान ही पहना करती थी, उस दौर में जय ललिता ने बिकनी, स्क र्ट और अन्यम पश्चिमी परिधानों में अभिनय कर सिर्फ फिल्मीा जगत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण महिला समुदाय के बीच भी क्रांति पैदा कर दी। इस प्रकार फिल्मीभ दुनिया में भी स्त्री का एक नया प्रतिबिंब स्था्पित किया।

जयललिीता के कामयाबी का श्रेय हमेशा से एमजी रामचन्द्र न को दिया जाता है किंतु ये बात लोग भूल जाते हैं कि जब तक हमारे अंदर काबिलियत नहीं होगी तबतक हमे कहीं कोई तवज्जोा नहीं दी जा सकती और ना ही हम अपनी कोई जगह बना सकते हैं। कोई भी व्यहक्ति किसी को रास्ताक दिखा सकता है लेकिन रास्तेप पर कैसे चलना है और मंजिल को कैसे हासिल करना है यह स्वबयं तय करना होता है। जयललिता ने अपनी काबलिियत पर ही जिंदगी में इस तरह का मुकाम हासिल किया जो एक पुरूषवादी समाज में पुरूषों के लिए तो मुश्किल है ही महिलाओं के लिए यदि कहें कि नामुमकिन था तो अतिश्यो क्ति नहीं होगी। जयललिता जब राजनीति में आयीं तब वे कामयाबी के शिखर पर थी, उनकी लोकप्रियता सिर्फ दक्षिण तक ही नहीं सीमि‍त थी हिंदी सिनेमा में भी वे अपना खास मुकाम बना चुकी थी और जयललिता के उसी कामयाब और लोकप्रिय चेहरे को राजनीति में लाया गया था जिसके कारण पार्टी की लोकप्रियता बढ़ी।

एमजीआर ने उन्हें यदि अन्ना द्रमुक का प्रोपेगेंडा सेक्रेटरी बनाया तो उसका मुख्यल कारण था 92 तमिल फिल्मों में 85 सिल्वरर जुबली और 28 तेलगु, कन्नपड़ हिट फिल्में । तमिलनाडु ही नहीं, समूचा दक्षिण उनके नाटकों, नृत्योंम और फिल्मोंज का दीवाना था। फिल्मी सितारों का राजनीति में अक्सगर उपयोग किया जाता है। एमजीआर ने भी यही किया। वर्ना आठ साल से दूर रह रहे जयललिता से वे फिर से क्यों जुड़ते। हिंदी, अंग्रेजी पर जबरदस्ते पकड़ और प्रभावशाली शैली के कारण ही एमजीआर ने जयललिता को करूणानिधि से लड़ने के लिए लिया न कि कोई परोसी गई सत्ता जयललिता को मिली।

फिल्मह जगत में जयललिता के अलावा सिर्फ एमजी रामचंद्रन और एनटी रामा राव दो अन्य् राजनेता हुये जिन्हेंप सफल सितारा राजनेता का दर्जा मिला। तमिल और अन्य् भाषाओं की 120 फिल्मोंय में अभिनय करने वाली जयललिता, एमजीआर-एनजीआर श्रेणी की मेगास्टायर नहीं थी फिर भी उन्होंरने राजनीति में ज्याकदा सफलता, लोकप्रियता हासित की और इस क्षेत्र में टिकाऊ भी साबित हुयीं। जबकि जयललिता को राजनीति विरासत में नहीं मिली थी, उन्हेंा इसके लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ा। एमजीआर के निधन के बाद सत्ता सीधे उनके हाथ में नहीं आयी बल्कि इसके लिए निरंतर उन्हेंं संघर्ष करना पड़ा।

जयललिता ने हर कदम पर मुश्किल, विरोध और संघर्ष इंतजार करता रहा, किंतु उन्हों ने कभी हार नहीं मानी। 5 मार्च 1989 का वह दिन जब विधानसभा में जयललिता के साथ अभद्रता की गई, उस घटना से एक नई जयललिता का जन्मह हुआ और मुख्य मंत्री बनकर लौटने का संकल्पा उन्हों ने ने पूरा कर, अम्माल का रूप धारण कर लिया। यह स्थासन पितृसत्ताामक समाज में किसी महिला द्वारा हासिल करना किसी स्वेप्नस से कम नहीं था। इसके बाद तमिलनाडु की राजनीति में ऐसा भूचाल आया कि पूरा का पूरा राजनीतिक परिदृश्यन ही बदल गया। अपने विपक्षी को अक्स र वह धूल चटा दिया करती थी। अच्छेय-अच्छेन राजनेता उनके सामने नतमस्तपक हो जाया करते थे। एक बार जब वे सत्तात में आयी तो सदैव लोगों को अपने सामने झुकाया, कभी किसी के सामने झुकी नहीं।

जनता के साथ जयललिता के जबरदस्त तालमेल ने ही उन्हेंि ‘अम्माी’ बना दिया। उन्हों ने विभिन्नर जन कल्यानण अथवा गरीब कल्याथण योजनाओं के जरिये मातृसत्ताे को स्थाेपित कर समाज में इसका वर्चस्व बनाया। जयललिता को तानाशाही स्वयभाव का भी कहा जाता था इसके बावजूद इतना बेहतर जनसंपर्क होना अचंभित कर देता है।

जयललिता की सरकार ने ही स्त्रीा सशक्तिकरण के लिए सबसे पहले कदम उठाया और देश में स्त्रीन भ्रूण हत्याे पर रोक लगवाई। तमिलनाडु पहला राज्या है जिसने पंचायत और म्यु निसिपल कार्पोरेशन में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को लगातार दो कार्याकाल दिए। स्त्रियों की सुरक्षा के लिए महिला थाने बनवाए। 16 दिसंबर की घटना के बाद 16 सूत्री मांगों को सबसे पहले जयललिता ने ही उठाया था और महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम प्रयास किए।

आज देश में युवक-यवतियां जिस तरीके से छोटी- छोटी बातों पर हताश निराश होकर आत्मघहत्याआ को अपना हथियार बना लेते हैं ऐसे लोगों को जयललिता की जिंदगी से प्रेरणा लेनी चाहिए। जयललिता को जिंदगी के हर मोड़ पर गहरा आघात मिला। जिन लोगों को उन्होंतने अपना समझा उन्हीं लोगों ने उनको स्वािर्थ में अंधा होकर धोखा दिया। सबसे पहली चोट तब लगी जब उनकी सबसे अच्छी और विश्वाउसी सहेली ने एक लड़के के लिए जयललिता को धोखा दिया। यह धोखा जयललिता के जीवन की पहली कामयाबी की सी‍ढ़ी बनी। फिर तो जब-जब जयललिता को जीवन में आघात मिला तब-तब वे और ऊपर उठती चली गयीं। मां की मौत से टूटी जयललिता ने फिल्मोंी में सफल मुकाम बनाया तो अपने सबसे अच्छे दोस्तऊ, मेंटर और मार्गदर्शक एमजी रामचंद्रन के मौत के बाद वे सफल राजनीतिज्ञ बनी। वहीं विधानसभा में बेइज्जवती का बदला उन्होंवने तमिलनाडु की मुख्यममंत्री बनकर लिया। भ्रष्टाबचार के गंभीर आरोपों में जेल भेजे जाने से भी वे उबर गईं, यह उनकी हर विपरीत स्थिति को मात देकर उबरने की क्षमता ही दर्शाता है।

जयललिता का जीवन और व्य क्तित्व हर किसी व्य क्ति के लिए प्रेरणा है। आज के समय में अवसाद (डिप्रेशन) से लोग सबसे ज्याादा ग्रसित हैं। लगातार डिप्रेशन की दवाओं का सेवन करते हैं, शराब, धूम्रपान तथा अन्य नशाओं को अपना जीवन बना लेते हैं और तब भी न उभर पाये तो मौत को गले लगा लेते हैं। ऐसी स्थिति में जयललिता की जिंदगी से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना उचित होगा।

जयललिता की जिंदगी इस बात का भी संकेत देती है कि कोई सहारा, काई साथ न ढूंढिए- अकेले ही लड़ना है। जिंदगी के बड़े हिस्सेद किसी के प्रभाव में ही गुजर जाते हैं, पर अपनी पहचान इसी में बनाना है तथा महिला को पुरूष आसानी से बढ़ने नहीं देंगे। एक अकेली नारी अबला और मजबूर नहीं होती यह जयललिता ने साबित कर दिया। उनकी अद्भूत सहनशीलता और विपरीत परिस्थितियों में लड़ने की ताकत एक बार फिर यह याद दिलाता है कि औरत शक्ति का प्रतीक है। उसे कितना भी झुका लो, डरा लो, वह हार नहीं मानेगी।

गौतम बुद्ध ने कहा था कि “जीवन मिलना भाग्यल की बात है। मृत्युन होना समय की बात है, पर मृत्युढ के बाद भी लोगों के दिल में जीवित रहना ‘कर्मों’ की बात है।” जयललिता ने भी अपने कर्मों से ही लोगों के दिल में ऐसी जगह बनायी कि मृत्युं के बाद भी लोग उन्हें भूल नहीं पायें। उनकी मृत्युअ के बाद लगभग 600 लोग भावनात्मकता में इस गहरे स्तर पर धिर गए और अपनी जान गंवा दी । जयललिता तमिलनाडु के आम जनता की धड़कन थी और यह उनके कर्म का ही परिणाम है।

(डॉ. अमिता पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग गुरू घासीदास विश्वविद्यालय)