जब ज़ुल्मतें बढ़ जाएं बहुत
इक लौ जलाना लाज़िम है
जब हाकिम ही गुमराह करे
इक आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब क़ातिल के संग हाकिम हो
जब हर लब पर इक पहरा हो
जब सहमी सहमी गलियां हों
जब ख़ौफ़ का आलम गहरा हो

आवाम जगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब क़ातिल उतरें सड़कों पर
जब मुंसिफ भी घबराने लगें। (मुंसिफ-judge)
जब ताले लबों पर लग जायें
जब अपने आग लगाने लगें

इल्ज़ाम लगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब हाकिम रहज़न होने लगें
जब हाकिम ज़हर को बोने लगें
जब हाकिम नशे में ताकत के
इंसानी क़दरें खोने लगें

नाम गिनाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब ताक़त सर पड़ चढ़ने लगे
जब ज़ुल्मत हद्द से बढ़ने लगे
जब आवाज़ उठाना जुर्म बने
जब लहू लहू से लड़ने लगे

बरबत पे गाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब तास्सुब उनकी फ़ितरत हो
फिरकापरस्ती आदत हो
जब दंगे ही दस्तूर बनें
जब जड़ों में उनकी नफ़रत हो
आवाम जगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

बरहना है अमीर ए वतन (बरहना-naked, king is naked)
ये उसको बताना लाज़िम है
ख़ुद तुमने जलाया मेरा चमन
उस तक पहुंचाना लाज़िम है

इस देश के दुश्मन भगवों से
भारत को बचाना लाज़िम है
हम सब एक हैं भारतवासी
ये हाकिम को सिखाना लाज़िम है

नाम गिनाना लाज़िम है
इल्ज़ाम लगाना लाज़िम है
आवाम जगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है