अच्छे दिनों के नाम पर भाजपा के . नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 43 माह पूर्व बनी केन्द्र सरकार के वर्तमान रेल मंत्री पीयूस गोयल ने भी बिहार की लम्बित नई-पुरानी रेल परियोजनाओं की घोर उपेक्षा की है। र्सिफ दिखावे के लिए कुछ नई एक्सप्रेस ट्रेनों को पिछले वर्ष हरि झंडी दिखाकर रवाना करने बाद इस वर्ष कुछ नई-पुरानी रेल परियोजनाओं में कुछ पैसा आवंटन कराकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर आराम फरमा रहे हैं।

केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने ही रेल बजट पेश किया है। उन्होंने बिहार की वैसी ही रेल परियोजनाओं को पहली बार की तरह अपने दूसरे रेल बजट में भी शामिल किया है, जो निकट भविष्य में पूरा होने के करीब है। ताकि महात्वाकांक्षी दीघा-पहलेजा घाट और मुंगेर-साहेबपुर कमाल की तरह उद्घाटन कर खूब वाह-वाही बटोरी जा सके। इसमें बिहार की महत्वाकांक्षी निर्मली-भपटीयाही कोशी महासेतु भी शीघ्र पूरा होने को है। इतना ही नहीं, मोकामा-सिमरिया घाट के बीच गंगा नदी पर सामानान्तर रेल सह सड़क पुल के अलावा हाजीपुर-सुगौली वाया वैशाली और खगड़िया-कुशेश्वरस्थान वाया शहरबन्नी नई रेल लाइन सहित कुछ रेल परियोजनाओं को छोड़कर बाकी सभी नई-पुरानी रेल परियोजनाओं को दूसरे रेल बजट में भी नजरअंदाज किया गया है। इसमें 44 वर्ष पूरानी अधूरी सकरी-हसनपुर रोड वाया कुशेश्वरस्थान नई रेल लाइन परियोजना भी शामिल है। वर्षों से अधूरी यह नई रेल लाइन परियोजना, बिहार में रेल क्षेत्र के लिए विकास पुरूष के रूप में चर्चित भूतपूर्व रेल मंत्री स्व.ललित नारायण मिश्र का सपना था, जो आज 44 वर्षों में भी पूरा नहीं हुआ है।

नरेन्द्र मोदी जी का यह नारा ’’सबका साथ सबका विकास’’ रेल क्षेत्र के विकास में बिहार के साथ आज तक फिट क्यों नहीं हुआ ? बिहार को ’’विशेष राज्य का दर्जा’’ मिलना तो दूर की बात है। बिहार की वर्षों से खटाई में पड़ी विभिन्न रेल परियोजनाओं को पूरा करने की दिशा में कोई खास पहल नहीं हुई है। जन प्रतिनिधि भी चुप्पी साधे हुए हैं। बिहार की वर्षों से खटाई में पड़ी सकरी-हसनपुर रोड वाया कुशेश्वरस्थान नई रेल लाइन परियोजना के अलावे मोतिहारी-सीतामढ़ी वाया शिवहर, छपरा-मुजफ्फरपुर, हसनपुर रोड-बरौनी वाया चेरियाबरियारपुर, दरभंगा-मुजफ्फरपुर वाया सिमरी, सीतामढ़ी-निर्मली, मुजफ्फरपुर-जनकपुर रोड, कर्पूरीग्राम-हाजीपुर वाया ताजपुर, दरभंगा-कुशेश्वरस्थान वाया बहेड़ी, मुक्तापुर-कुशेश्वरस्थान वाया सिंघिया नई रेल लाइन का निर्माण कार्य सहित कई मार्गों का दोहरीकरण एवं विधुतीकरण आदि अन्य कई परियोजनाऐं रेल मंत्री पीयूस गोयल की कृपा से अब भी पूरी नहीं होने वाली है। आम बजट में उक्त रेल परियोजनाओं को तरजीह मिलती है तो इसका फायदा सिर्फ बिहार वासियों को ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल में भी रह रहे लोगो को मिलता सकता है। बिहार में रेल निर्माण की 29 परियोजनाऐं हैं जो ऑन गोइंग प्रोजेक्ट्स है। अब तक किसी भी परियोजना को आवश्यकता के मुताबिक राशि नहीं दी गई है। अल्बत्ता बिहार के एकलौते पूर्व मध्य रेल मुख्यालय, हाजीपुर के अधीन बिहार और झारखंड में दोहरीकरण से जुड़े 11 नई परियोजनाऐं वर्ष 2015-16 में स्वीकृत की गई थी, उस मद में वर्ष 2016-17 के अलावा 2017-18 और 2018-19 में भी राशि आवंटित की गई है और कुछ रेल परियोजनाओं को जिन्दा रखने के लिए भी इस रेल बजट में महज कुछ राशि आवंटित की गई है, लेकिन वह ’’उँट के मूंह में जीरा का फोरन’’ के समान है।

पिछले 43 महिनों की सरकार में ट्रेन किराये में वृद्धि के साथ-साथ 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मिलने वाला कम दूरी का जेनरल हाफ टिकट नमो सरकार में मिलना ही बंद हो गया है। अब तो लम्बी दूरी की किसी भी मेल या सुपर फास्ट एक्सप्रेस ट्रेनों में बच्चों का हाफ टिकट तो मिलेगा, परन्तु रिर्जवेशन किसी भी हालत में नहीं मिलना है। इससे आम लोगों में काफी आक्रोश है।

इतना ही नहीं, रेल मंत्री पीयूस गोयल की कृपा से कैटरिंग के सामानों की किमतों में भी काफी वृद्धि हुई है, लेकिन, अभी भी घटिया ही भोजन परोसा जा रहा है। अब तो सुपर फास्ट एक्सप्रेस ट्रेनों के शौचालय में भी पानी की कमी रहने की शिकायत अक्सर मिलने लगी है। बांकी मेल-एक्सप्रेस या पैसेंजर ट्रेनों की हाल तो और भी बुरी है। ट्रेनों में गंदगी व गद्दे फटा रहना, मच्छरों का काटना, कोक्रेच का दौड़ना और चूहों का डिब्बों के अन्दर सामानों को बर्बाद करना तो अब आम बात है। देश के विभिन्न जगहों से आने-जाने वाले बिहार के ट्रेनों में तो लोग भेड़-बकरियों की तरह यात्रा करते हैं। क्योंकि रेलवे स्लीपर क्लास में यात्रा कर रहे जेनरल टिकट लेकर चल रहे यात्रियों से चेकिंग के नाम पर प्लांटि ( जूर्माना ) काटकर अपनी आमदनी तो बढ़ा ली है। लेकिन, रिर्जवेशन करा चुके यात्री काफी कठिनाइयों का सामना कर यात्रा करने को मज़बूर हैं। ट्रेनों के शौचालय तक में ऐसे लोग कब्जा किए हुए रहते हैं।

बिहार के सभी शहरों को रेल के नेटर्वक से जोड़ने के लिए रेलवे को वर्तमान में पुरानी रेल परियोजनाओं के लिए करीब 1389.21 करोड़ रूपये की आवश्यकता है। इस बार बिहार को रेल बजट में 4407 करोड़ रूपये का सौगात मिला है। इस रकम से बिहार में रेलवे का विस्तार और विकास कार्य किया जाना है। लेकिन, बिहार की कुछ प्रमुख परियोजनाओं के लिए नाम मात्र की राशि उपलब्ध कराई गई है। रेल मंत्रालय की प्राथमिकता सूची में उक्त रेल परियोजनाओं को शामिल नहीं किए जाने से पुरानी रेल लाइनों पर ट्राफिक का भार भी बढ़ता जा रहा है। समस्तीपुर-हाजीपुर वाया मुजफ्फरपुर, बरौनी-हाजीपुर वाया शाहपुर पटोरी, समस्तीपुर-खगड़िया वाया रोसड़ा एवं खगड़िया-समस्तीपुर वाया बेगूसराय और समस्तीपुर-जयनगर वाया दरभंगा रेल मार्ग पर तो क्षमता से दो से तीन गुणा माल व मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों का परिचालन हो रहा है। जिसमें तेज रफ्तार से चलने वाली राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों भी शामिल है।

दूसरी ओर पूर्व मध्य रेल का समस्तीपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन, रेल मंडल मुख्यालय का जंक्शन रेलवे स्टेशन होते हुए भी उपेक्षित है। यहां से वर्तमान में एक भी दूरगामी ट्रेन बनकर नहीं चलती है। कभी यहां से देश के विभिन्न जगहों के लिए ट्रेनें चला करती थी, आज यह जंक्शन रेलवे स्टेशन ‘‘रोड साईड’’ रेलवे स्टेशन बन कर रह गई है। जबकि मुजफ्फरपुर से आनंदविहार टर्मिनल तक चलने वाली 12557 अप व 12558 डाउन सप्तक्रांति सुपर फास्ट एक्सप्रेस टेªन और मुजफ्फरपुर से आनंदविहार टर्मिनल तक चलने वाली 12211 अप व 12212 डाउन गरीबरथ एक्सप्रेस टेªन को समस्तीपुर से प्रतिदिन चलाने की मांग वर्षों से की जा रही है। पहले वाशिंग पीट का बहाना बना कर नकार दिया जाता था। आज की तारीख में करीब डेढ़ करोड़ रूपये की लागत से समस्तीपुर में 22 रेक का एक नया वाशिंग पीट बन कर करीब सात वर्षों से नई ट्रेन की प्रतिक्षा में है।

समस्तीपुर के महत्व को देखते हुए राजद सुप्रीमो व तत्कालीन रेलमंत्री लालु प्रसाद ने समस्तीपुर रेल कारखाना और डीजल शेड के विस्तार की दिशा में पहल ही नहीं किया, बल्कि सी.केटेगरी रेल कारखाना के निर्माण और डीजल शेड के विस्तार के लिए 9 अक्टूबर 2007 को अपने चहेते अधिकारियों व नेताओं के काफिले के साथ समस्तीपुर डीजल शेड में पहुंच कर दोनों योजना का एक साथ शिलान्यास भी किया और बजट में पैसे की व्यवस्था भी की।सी.केटेगरी रेल कारखाना का कार्य तो पूरा हो गया लेकिन अभी तक चालू नहीं हुआ है। जबकि समस्तीपुर डीजल शेड में नये पुराने इंजनों से 100 इंजनों की क्षमता तो पूरा कर दिया गया है। बल्कि, बिना मैंन पावर के यानी 900 कर्मचारियों की जगह करीब 600 कर्मचारियों की बदौलत 140 इंजनों का मेंटेनेन्स हो रहा है। रेल के अधिकारी खूब वाहवाही लूट रहे हैं। लेकिन, बाकी विस्तार का कार्य धीमी रफ्तार से चल रहा है। ऐसी जानकारी मिली है कि रेल मंत्रालय अब सी.केटेगरी रेल कारखाना को प्राइवेट करने के मूड में है। लोगों के गुस्से का एक उदाहरण हाल ही में मिला जब समस्तीपुर रेल कारखाना के समक्ष रेल विस्तार विकास मंच के बैनर तले संयोजक शत्रुधन राय के नेतृत्व में लोगों ने धरना-प्रदर्शन तक किए। लेकिन, यह सब गांधीवादी तरीके बेकार साबित हुए हैं।

रेल मंत्रालय की उपेक्षा के कारण ही 678 करोड़ 61 लाख की लागत वाली 188 किलोमीटर लम्बी सीतामढ़ी-निर्मली रेल परियोजना और कर्पूरीग्राम-हाजीपुर वाया ताजपुर नई रेल लाइन परियोजना सहित कई अन्य परियोजनाऐं भी फंसी है।.