सुबह के साढ़े दस बजे होंगे जब मैंने नेताजी नगर (मुम्बई) स्थित आजीविका ब्यूरो के अपने ऑफिस के बाहर दो महिलाओं को अपने सर पर प्लास्टिक के भारी दिख रहे बोरे के साथ देखा. मैंने बातचीत की शुरुआत के लिए उनसे पूछा, ‘शायद काफ़ी वजनी हैं. क्या ढो रही हैं आप?’ उनमें से एक बोली, ‘ये ड्रॉपर्स के अलग-अलग हिस्से हैं. हम इन्हें जोड़ने के लिए घर ले जा रहे हैं.’

वह जल्दी में दिख रही थीं, पर मुझे यह दिलचस्प लगा. मैंने पूछा, ‘क्या मैं आपके साथ आपका काम देखने आपके घर तक आ सकती हूँ?’ उन्होंने पहले तो एक दूसरे को थोड़े आश्चर्य के साथ देखा, फिर हल्का मुस्कुराकर सहमति दे दी.

उनका घर

यह सकीना थी, जिनके घर मैं बैठी थी. उनका घर नेताजी नगर के स्लम में था. पहले तल्ले पर बने एक दस गुने दस के कमरे और डेढ़ फीट के बालकनी को मिलाकर उनका आशियाना बना था. कमरे के एक कोने में रसोई की जगह थी, जहाँ करीने से कुछ जरुरी बर्तन, गैस स्टोव आदि रखे हुए थे. स्लैब के नीचे एक बैग धकेलकर रखा हुआ था. कमरे के दूसरे हिस्से में ‘बेडिंग’ था, जिसे फिलहाल मोड़कर रख दिया गया था. शायद इसे सोने के समय ही खोला जाता हो. नीचे से ऊपर आने के लिए लोहे की बनी संकरी सीढियाँ बनी थीं. किसी नए आगंतुक के लिए इन पर चढ़ना एक मुश्किल काम था. इसके लिए शरीर के संतुलन और सावधानी की जरूरत थी.

कमरे के बीच में एक प्लास्टिक की चटाई बिछी हुई थी. सकीना ने बोरे में लायी चीजों को फैलाने से पहले इसे साफ़ कर लिया था. उन्होंने अपने काम से परिचित कराते हुए कहा, ‘ड्रॉपर्स के तीन हिस्से होते हैं. हालांकि आज मैं इसके दो हिस्से ही लाई हूँ. तीसरा हिस्सा जो एक पारदर्शी पाइप होता है, वह स्टॉक में नहीं था. शाम तक आएगा तो लाने जाउंगी. तब तक इसके दोनों हिस्से को ही जोड़ना होगा.

सकीना की सहेली रूबी भी नेताजी नगर में ही रहती है. उनकी यह दोस्ती इसी काम की वजह से हुई. रूबी का घर भी कमोबेश सकीना की तरह ही था. बस अंतर यह था कि रूबी के पास दो अलग अलग कमरे थे – एक के ऊपर एक. हम नीचे के कमरे में एक कोने में खड़े हो कर बात कर रहे थें. इस कमरे का फर्श गीला था क्योंकि हमारे पहुँचने के पहले उनकी ९-१० साल की बेटी उस कमरे में स्नान कर रही थी. उसी कमरे के तरफ खाना बनाने, बर्तन रखने एवं बर्तन साफ़ करने का इंतज़ाम था. इसी कमरे में पानी का मोटर भी फिक्स किया क्या था. पहले तल्ले तक जाने के लिए यहाँ भी लोहे की पतली सीढियाँ दीवार से लगी थीं. वह बोली, ‘हमलोग ऊपर के कमरे में सोते हैं’. वह सात गुने सात का बिना वेंटिलेशन का एक छोटा सा कमरा है.’

उनका जन्मस्थान

सकीना गोंडा (उत्तर प्रदेश) से हैं. वो अपने गाँव से मुंबई शादी के बाद आईं. उन्होंने बताया की जब वो दो साल की थी तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था. माँ के देहांत के कुछ महीने बाद ही उनके पिता की दूसरी शादी कर दी गई. सकीना ने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए बताया की उनकी सौतेली माँ से उन्हें प्यार नहीं मिला. उनका स्कूल में दाखिला भी नहीं करवाया गया. वो अपनी सौतेली माँ घर के कामों में हाथ बटाते – बटाते बड़ी हुईं. पंद्रह साल की उम्र में शकीना की शादी कर दी गई. सकीना के पति शादी के दो-तीन साल बाद काम के तलाश में मुंबई आ गए. मुंबई में तीन साल कई तरह के काम का अनुभव हासिल कर लेने के बाद जब उन्हें गारमेंट लाइन में स्थाई काम मिल गया तब जा कर वो सकीना और उनके पहले बच्चे को भी मुंबई ले आयें. अब सकीना को मुंबई में रहते 18 साल हो गए हैं.

“ मेरे तीन बच्चे हैं. बड़ा लड़का ज़मील 20 साल का है. अभी हाल में उसे नज़दीक के इलाके में बाइक बनाने के कारखाने में रोज़गार मिला है. मेरा दूसरा बीटा अफज़ल 15 साल का है. वह दिमागी रूप से बीमार है और वह एक आँख से ही देख सकता है. उसे ढंग से कपडे पहनना भी नहीं आता. जब भी वो घर से बाहर निकलता है गली के बच्चों के साथ बड़े भी उसका मज़ाक उड़ाते हैं. मैंने दो-तीन डॉक्टर्स से सलाह भी ली लेकिन उसका इलाज़ कामयाब नहीं हो पाया. उसने किसी तरह से छट्ठी तक पढ़ाई की है. लेकिन उसे पढाई कुछ भी समझ नहीं आता था. उसकी टीचर ने सलाह दी के मैं उसका एडमिशन स्पेशल बच्चों के स्कूल में करवा दूं. लेकिन पैसे नहीं होने की वजह से हमने कहीं भी उसका एडमिशन नहीं करवाया. अब वो घर पर ही रहता है. मेरा छोटा बेटा इकबाल 12 साल का है. वह मुनिसिपल स्कूल में पढता है. उसने इस साल आठवीं कक्षा पास की है’.

रूबी नासिक से है. वह 45 साल की पांच बच्चों की महिला है. जब रूबी पांच साल की थी तब उसके माता-पिता काम की तलाश में मुंबई आये थें. रूबी की शादी उसके पिता के एक दोस्त के बेटे से 15 साल की उम्र में ही कर दी गई थी. वो लोग गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले थे लेकिन मुंबई में ही पूरा परिवार रहता था. रूबी की दो बच्चिओं की शादी हो गई है एवं तीन बच्चे अभी नवमी, सातवीं एवं पांचवी में मुनिसिपल स्कूल में पढने जाते हैं.

उनका काम

सकीना को घर से काम करने का विचार तब आया जब उन्होंने अपने पड़ोस की एक महिला को ड्रॉपर के पाइप (प्लास्टिक) वाले हिस्से के ऊपरी एवं नीचे के भाग से एक्स्ट्रा प्लास्टिक को काटने का काम करते देखा था. एक दिन अपने पडोसी के साथ वो ड्रॉपर बनाने वाले कारखाने में गई. पहले ही रोज़ उसे ड्रॉपर के पाइप का 1000 पिस दिया गया और अगले ही दिन काम पूरा कर के लाने को कहा गया. सकीना दिए गए टारगेट को पूरा नहीं कर सकीं. इस काम को पहली बार करने के कारण वो एक बार में एक पाइप को हाथ में ले रही थीं और उसके एक्स्ट्रा प्लास्टिक को काट रही थी. बल्कि दूसरी महिलाओं के बारे में सकीना ने बताया, ‘जो महिलाएँ काफी समय से इस काम में लगी हैं वो एक बार में 5-6 पाइप अपने मुट्ठी में लेती हैं’. कुछ समय बीतने के बाद सकीना भी एक साथ 4-5 पाइप मुट्ठी में ले कर काम करने लगीं थी. उन्होंने बताया, “एक साथ 4-5 पाइप मुट्ठी में पकड़ना मुश्किल था. मेरी हथेली एवं उंगलियाँ दर्द करने लगती थी. एक हाथ में 4-5 पाइप पकड़ना एवं दुसरे हाथ में ब्लेड या नेल कटर की मदद से पाइप के उपरी व नीचले हिस्से में निकले एक्स्ट्रा को काटना आसान नहीं था. मेरे बच्चे इस काम में कोई मदद नहीं करते थें क्योंकि उनको वो काम पसंद नहीं था. एक्स्ट्रा काटने वाले काम में वेतन भी बहूत कम था. हमें 1000 पाइप का एक्स्ट्रा काटने के लिए 15 रुपए मिलते थे. कभी कभी मैं 3000 पाईप एवं कभी कभी 6000 पाईप लाने लगी थी”.

पिछले तीन सालों से सकीना ड्रॉपर असेम्ब्ल करने के काम में लगी हैं. उन्होंने एक्स्ट्रा हटाने के काम को छोड़ कर ड्रॉपर असेम्ब्ल का काम करने का एक बहूत ही दुखद कारण बताया, ‘असल में मेरा दूसरा बेटा अफज़ल कई दिनों से 9 बजे सुबह नाश्ता करने के बाद कहीं चला जाया करता था. काम में व्यस्त होने के कारण मैं पता नहीं कर पाती थी की वो दिन भर रहता कहाँ है और करता क्या है. एक दिन मैंने अपने छोटे बेटे इकबाल को कहा की वो अफज़ल का पता लगाए. कुछ घंटे बाद ही इकबाल ने लौट कर बताया कि अफज़ल दो गली आगे एक घर में एक महिला की मदद कर रहा है ड्रॉपर असेम्ब्ल करने के काम में. मैं तुरंत उस महिला के घर जा पहुंची जहाँ अफज़ल था. उस महिला ने घबराते हुए कहा-मैं तेरे बेटे को ये काम करने का रोज़ 5 रुपए देती हूँ’.

अगली सुबह ही सकीना जब पाइप का एक्स्ट्रा हिस्सा काट कर लौटाने गई उसी समय उसने सेठ से ड्रॉपर असेम्ब्ल करने के काम के बारे में पुछा. पहले तो सेठ तैयार नहीं हो रहा था क्योंकि जल्दी कोई महिला पाइप का एक्स्ट्रा काटने का काम नहीं करना चाहती थीं. लेकिन कुछ देर के बाद ही सेठ सकीना को ड्रॉपर असेम्ब्ल करने का काम देने के लिए तैयार हो गए. सकीना दिन में 3000 से 6000 ड्रॉपर को असेम्ब्ल कर पाती हैं. उन्हें 1000 पीस को असेम्ब्ल करने का 21 रुपया मिलता है. महीने के अंत में उनका पगार 2000- 3000 होता है. उनका दोनो बेटा अफज़ल और इकबाल उनकी मदद करता है.

रूबी ड्रॉपर असेम्ब्ल करने के काम में पिछले 10 साल से लगी हैं. उन्हें भी इस काम का पता अपने पडोसी से चला था. वो बताती हैं की जब उन्होंने ये काम शुरू किया था तब 1000 पीस का 7 रुपया मिलता था. सेठ हर साल 1000 पीस को करने का दो या तीन रुपया बढाता है. रूबी हमेशा ही 3000 पीस लाती हैं, ‘मेरे बच्चे छोटे हैं. वो मेरी बहूत मदद नहीं कर सकते और मेरा घर भी बहूत छोटा है. मेरे लिए बहूत सारा पीस एक साथ फैलाना मुश्किल हो जाएगा इसीलिए मैं हमेशा 3000 पीस ही लाती हूँ.

वेतन का भुगतान

सेठ ने अपने सभी कामगार को एक छोटी सी डायरी दी है. हर दिन महिलाओं का थैला पैक करने के बाद वो डायरी में लिख देते हैं कि किस महिला को कितना पीस दिया गया है. सकीना ने बताया की, ‘अप्रैल महीने में किए गए काम का वेतन उनको जून महीने के शुरुआत में दिया जाएगा’. कई बार सेठ पूरे पीस को लौटा देता है अगर उन्हें एक पीस के ऊपर भी गन्दगी दिख गई. ये बताते हुए सकीना ने कहा, ‘आपने देखा न मैंने सामान बिछाने के पहले चटाई को अच्छे से झाड़ा? फिर भी कहीं से तो गन्दगी लग जाती है. पैक करने के पहले भी मैं एक-एक कर सारे पीस को सूखे कपडे से साफ़ करती हूँ’. लेकिन एक पर भी गन्दगी दिख जाने पर हमें पूरा पीस लौटा दिया जाता है और वापस से सब को साफ़ करने को कहा जाता है. हमारा वेतन तो नहीं कटता लेकिन उस दिन नया काम नहीं मिलता’.

कभी-कभी जब सकीना काम समय पर खत्म नहीं कर पाती तब सेठ फोन करता है. एक दिन जब सकीना अपना काम जमा करने 9:00- 10:00 बजे सुबह नहीं पहुंची तब सेठ ने उसे फोन कर कहा- ‘तुम महिलाएँ दिन भर करती क्या हो? समय पर काम खत्म क्यों नहीं कर सकती?तब सकीना ने सेठ को बहूत अच्छा जबाब दिया जिसके बाद से सेठ ने दूबारा वैसी बात नहीं कही. सकीना का जवाब था, ‘आप बिलकुल सही कहते हो! हम लोग चावल, दाल, नमक, हल्दी पाउडर प्लेटफार्म पर रख देते हैं. चावल और दाल खुद व खुद धुल जाते हैं. प्रेशर कुकर में जा कर खुद व खुद ही गैस पर भी चले जाते हैं. बन जाने के बाद खुद ही बच्चों की थालियों में आ जाते हैं. बर्तन खुद से ही नल के नीचे चले जाते हैं और अपने आप को साफ़ कर लेते हैं. नल में पानी आने पर बाल्टियों एवं टब में पानी अपने आप ही भर जाता है. मुझे तो मेरे घर की सफाई भी नहीं करनी पड़ती. मेरे पास जादू की झाड़ू है जो जब भी घर को गन्दा देखता है सफाई कर देता है’.

सकीना ने बताया की उनके पति अक्सर मना करते हैं इतना काम लाने से. एक बार जब उन्होंने सकीना को लगातार 5-6 दिन तक काम करते देखा तो कहा, ‘कम से कम सप्ताह में एक-दो दिन तो काम मत लाओ’. जिस पर सकीना ने कहा, ‘मैं एक दिन में 189 रूपए का काम करती हूँ. दो दिन में 378 रुपए का. तुम मुझे दे दो उतने रूपए फिर मैं दो दिन काम नहीं लाऊंगी’. सकीना ने बताया कि इस पर उनके पति ने मुस्कुराते हुए कहा था, ‘जरूर, आज शाम ही मैं तुम्हे रुपए देता हूँ’.

सकीना और रूबी से बात के दौडान पता चला की नेताजी नगर के 20 -25 घरों से महिलाएँ ड्रॉपर के पाइप का एक्स्ट्रा हिस्सा काटने का काम व ड्रॉपर असेम्ब्ल करने का काम लाने जाती हैं. मुझे बार-बार ये लग रहा था कि इतना मेहनत वाला काम आखिर महिलाएँ इतने कम वेतन पर क्यों करती हैं. वो आस पास की छोटी छोटी फैक्ट्रीओं में क्यों नहीं काम करती जहां उन्हें महीने का कम से कम 5000 रुपया तो मिल ही जायगा. मेरे इस सवाल के जवाब में सकीना ने कहा, ‘ मैं घर से काम करना इसीलिए पसंद करने लगी हूँ क्योंकि मैं अपने दुसरे बेटे के साथ दिन भर रह सकती हूँ. वो काम में मदद करता है. कई बार जब मैं घर के काम निपटा रही होती हूँ तब अफज़ल ड्रापर का काम कर रहा होता है. अब वो ज़्यादा समय गली में नहीं जाता तो लोग भी उसका मज़ाक नहीं उड़ाते’. ऐसी कई महिलाएँ हैं जो घर से ही काम करना इसीलिए चुनती हैं ताकी वो घर पर अपने बच्चों की देखभाल करते परिवार के लिए कुछ रूपए कमा सकें.