दिसंबर 1985 में मुम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के शताब्दी अधिवेशन के दौरान ही वहां के जहांगीर आर्ट गैलरी में कार्टूनिस्ट , आर के लक्ष्मण (1921-2015) के रेखाचित्रों की एकल प्रदर्शनी लगी थी. उसी दौरान एक अलसाई -सी सुबह अंग्रेजी दैनिक , टाइम्स ऑफ इंडिया , को पढ़ कर उस प्रदर्शिनी के आयोजन की जानकारी मिली। मैं मुम्बई पहली बार गया था। कांग्रेस अधिवेशन की रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली से साथ आए कई अन्य पत्रकारों और कांग्रेस नेताओं की तरह मुझे भी उसके आयोजन स्थल , ब्रेबॉर्न स्टेडियम के पास तीन -सितारा होटल में कांग्रेस के ही सौजन्य से टिकने का मौक़ा मिला था। मैं पेशेवर कार्य से थोड़ा वक़्त निकाल प्रदर्शनी का अवलोकन करने लोगों से पूछते -पूछते पैदल , जहांगीर आर्ट गैलरी पहुँच गया।

दोपहर की खुशवक्त धूप में जब मैं वहाँ पहुंचा तो कौव्वे -ही -कौव्वे नज़र आये.. कुछेक दर्शकों और गैलरी कर्मचारियों के अलावा सिर्फ आर के लक्ष्मण दिखे। मैं उन्हें देखते ही पहचान कर उनके सामने जा खड़ा हो गया। लक्ष्मण ने मुझे देखते ही पूछा , " यहाँ कैसे आ गए ? " मैं अपनी कमीज पर लगा ' प्रेस ' का वह बिल्ला उतारना भूल गया था जो कांग्रेस अधिवेशन को 'कवर ' करने वाले पत्रकारों को सुविधा के लिए दिया गया था। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और कहा, " आपके ही अखबार से पता चला कि यहाँ आपके रेखाचित्रों की प्रदर्शनी है. सो चला आया. बचपन से आपके कार्टून देखता रहा हूँ. आपको आमने -सामने कभी देखा -सुना नहीं था.

उन्होंने किंचित मुस्कान के साथ कहा , " मुझे नहीं इन सारे कौव्वों को गौर से देखो। फिर बोलो तुम्हें क्या लगता हैं इनको देख कर? " मैंने कहा , " झूठ क्या बोलूं , मुझे तो यहाँ क्या, सभी जगह , सारी दुनिया के सारे कौव्वे एक- जैसे लगते हैं ". वो बोले , " एक- जैसे ना ? एक नहीं ना ? एक -जैसा बोला , तो एक बार फिर सबको देखो और तब मुझे बोलो क्या लगता है "

उनके रेखाचित्रों के कव्वों का फिर से देर तक अवलोकन करने के बाद मैंने उनके पास पहुँच कुछ सकुचाते हुए कहा , " मुझे कोई कौव्वा अलग-थलग अभिशप्त -सा दिखा , कुछेक समूह में बेहद खुश नजर आए। एक कौव्वा खामोश , देवदास -जैसा था। एक तो बिलकुल आवारा लग रहा था ".

लक्ष्मण ठठा कर हंस पड़े. फिर उन्होंने कहा , " सही पहचाना तुमने उन सबको। ये सब हमारी तरह ही हैं। हम सारे लोग जैसे-जैसे हैं , ये सारे कौवे भी हमें उसी तरह लग सकते हैं " .मुझसे नहीं रहा गया और बोल पड़ा , 'कौवा तो बेहद बदरंग जीव है. बहुत लोगों को कौव्वा अछूत लगता है. आपने अपने रेखाचित्रों के लिए अन्य जीवों को छोड़ , कौव्वों को ही क्यों चुना ?'

वह मुझे थोड़ा डांटने के स्वर में बोले , " दोष तुम्हारा नहीं , तुम्हारी दृष्टि का है. देखा ठीक. बोला भी ठीक. पर अब सवाल सही नहीं कर रहे हो। मैं चुप हो गया और उनको टुकुर -टुकुर देखने लगा .लक्ष्मण शायद ताड़ गए कि मैं अब कुछ भी नहीं बोलूंगा , सिर्फ देखूंगा और सुनूंगा. सो वो बोलने लगे और मैं बस उनको देखता --सुनता रहा.

उन्होंने बताया कि वह टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए ' यू सेड इट ' , कार्टून श्रृंखला 1951 से बना रहे हैं , उनका पूरा नाम रासीपुरम कृष्णास्वामी अय्यर लक्ष्मण है , वह ब्रिटिश राज में मैसूर में 24 अक्टूबर 1921 के दिन पैदा हुए थे , वहीं शिक्षा प्राप्त की , उन्होंने कॉलेज की शिक्षा के समय ही कार्टून बनाने शुरू कर दिए थे जो स्थानीय अखबारों और पत्रिकाओं में छपने भी लगे थे। उन्होंने ढेर सारी बातें बताई। यह भी कि , उनके पिता हेडमास्टर थे , वह अपने माता -पिता की आठ संतान में सबसे छोटे हैं , उनके अग्रज , लेखक -भ्राता का पूरा नाम , रासीपुरम कृष्णास्वामी अय्यर नारायण है जिनके लेखन से चर्चित स्थान , मालगुडी , दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा है.

उन्होंने यह भी बताया कि वह मुंबई से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक , फ्री प्रेस जर्नल , में बतौर कार्टूनिस्ट अपनी पहली पूर्णकालिक नौकरी के लिए यहां आये जहां बाद में शिवसेना की स्थापना करने वाले बाल ठाकरे भी सहकर्मी कार्टूनिस्ट थे। उन्होंने बताया कि तमिल फिल्म , कामराज , और हिंदी फिल्म , मिस्टर एंड मिसेज 55 , में उनके कार्टूनों का इस्तेमाल किया गया है , ऐसियन पेंट्स , के विज्ञापनों में दिखने वाला छोरा , गट्टू , का चित्रण उन्होंने किया है।

आर के लक्ष्मण का जब पुणे के एक अस्पताल में 26 जनवरी 2015 को निधन हुआ तब मुझे मुंबई में अपनी नौकरी की अतिव्यस्तता के कारण उनके अंतिम दर्शन करने नहीं जा सकने का हमेशा अफसोस रहेगा। हाँ , मुम्बई में ही सेवानिवृत्त होने के पहले पुणे जाकर वहाँ सिमबायोसिस संस्थान में आर के लक्ष्मण की अभिनव कृति , कॉमन मैन , की स्थापित प्रतिमा को देख आया।

अपने पास महफूज आर के लक्ष्मण के 1948 से 2008 तक के बनाए चयनित कार्टूनों , गणेश की दैवीय कल्पना के कई चित्रण , महात्मा गांधी , जवाहरलाल नेहरू , रबीन्द्रनाथ टैगोर , माओ त्से-तुंग , मदर टेरेसा , नेल्सन मंडेला , , सुनील गावस्कर , कपिल देव , रवि शंकर , जुबीन मेहता , खुशवंत सिंह , सलमान रश्दी , दिलीप कुमार , रजनी कान्त , और रेखा के रंगीन चित्र कै अलावा इंदिरा गांधी , सोनिया गांधी , प्रियांका गांधी , मनमोहन सिंह और अमिताभ बच्चन तक के श्वेत -श्याम केरीकेचर , कौव्वों की विभिन्न मुद्रा में बनाए कई रेखाचित्र से सुसज्जित ग्रन्थ , आर के लक्ष्मण द अनकॉमन मैन , को फिर- फिर देखते वक़्त हम दोनों की प्रथम वार्ता में कही उनकी सौ बातों में से एक बारीक बात मुझे याद आ ही जाती जो सबके लिए गौरतलब है। वह बात है , " पक्षियों में सबसे ज्यादा मानवीय कोई है तो वो कौव्वा ही है . क्योंकि वही मानव के सबसे ज्यादा करीब है ".