कर्नाटक संगीत के विख्यात कलाकार टी एम कृष्णा ने द सिटिज़न को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “इन धमकियों और कलाकारों को डराने के बेहूदा प्रयासों में कुछ भी अनायास नहीं है. यह सही है कि बॉलीवुड ने हमें पूरी तरह से निराश किया है, वे इसके खिलाफ कभी नहीं बोलेंगे.”

श्री कृष्णा ने यह साक्षात्कार उन्हें व कर्नाटक संगीत के कई अन्य कलाकारों को ईसाई धर्म के भजनों को गाने के खिलाफ मिली धमकियों के तत्काल बाद दिया. धमकी मिलने के बाद जहां कर्नाटक संगीत के अधिकांश कलाकारों ने माफ़ी मांग ली, वहीँ श्री कृष्णा ने इसके खिलाफ मुखर होने का निश्चय किया. उन्होंने हर महीने ईसा मसीह या अल्लाह के सम्मान में कर्नाटक संगीत का इसी किस्म का एक गीत जारी करने का ऐलान किया.

श्री कृष्णा ने कहा, “मैं उन्हें हमारी दुनिया में दखल देने की इजाज़त नहीं दूंगा.” उन्होंने यह निर्भीक वक्तब्य सोशल मीडिया पर बुरी तरह ट्रोल किये जाने और शारीरिक नुकसान पहुंचा देने की धमकियों के बावजूद दिया. आरएसएस – एस नाम के एक संगठन (एक अतिरिक्त एस की ओर इशारा करते हुए श्री कृष्णा हंसते है) से जुड़े रामनाथन नाम के एक व्यक्ति ने तो उनकी टांगें तोड़ने की धमकी दी. अपनी प्रतिक्रिया में श्री कृष्णा ने कहा कि इन धमकियों में कुछ भी अनायास नहीं है. डराने की ऐसी हरकतें साफ़ तौर पर एक खास एजेंडा का हिस्सा हैं. उन्होंने कहा, “वे भय का माहौल बनाना चाहते हैं और लोगों को आतंकित रखना चाहते हैं.”

यह पूछे जाने पर कि क्या आप डर गये हैं, श्री कृष्णा ने कहा, “ डरा तो नहीं, लेकिन निश्चित रूप से ये बातें आपके अवचेतन में घुस जाती हैं और आप अपने कंधे उंचकाकर देखने लग जाते हैं.” उन्होंने आगे जोड़ा, “ लेकिन मैंने उनसे भिड़ने का निश्चय कर लिया है. यह जोखिम किसी को तो लेना ही पड़ता है. हम अपने सुन्दर देश को इस तरह से बर्बाद नहीं होने दे सकते.”

श्री कृष्णा ने स्वीकार किया कि कई कलाकार इन हरकतों खिलाफ बोलना चाहते हैं, लेकिन भयभीत हैं. उन्होंने कहा कि हमारे बहुलतावादी संस्कृति तो ऐसे अराजक तत्वों से बचाना जरुरी है. और इसके लिए सबको मिल – बैठकर काम करना होगा. इसके विरोध में एकाध पत्र जारी कर देना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि इसके खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिरोध को जमीनी स्तर तक ले जाना जरुरी होगा.

उन्होंने कहा, “ हमें प्रत्येक शहर में धर्मनिरपेक्ष सांस्कृतिक एकता स्थापित करनी होगी और इस अत्याचार के खिलाफ लोगों को संगीत, नृत्य और नाटक के माध्यम से एकजुट करना होगा. सिर्फ राजनीतिक स्तर पर ही सक्रिय होने भर से काम नहीं चलेगा. इन सांस्कृतिक केन्द्रों को किसी पार्टी विशेष से जुड़ने के बजाय समान विचारों वाले ऐसे लोगों से जुड़ना होगा जो वास्तव में आजादी के 70 सालों की उपलब्धियों को सहेजने के प्रति चिंतित हों और भारत को बर्बाद नहीं होने देने के लिए प्रतिबद्ध हों.”

शांत लेकिन दृढ़ व्यक्तित्व वाले श्री कृष्णा ने हाल के वर्षों में अपने संगीत में एक नया आयाम जोड़ा है. वे उन गिने – चुने विख्यात कलाकारों में हैं जिन्हें अन्याय के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने और मुल्क को बांटने वाले प्रयासों का सख्त प्रतिरोध से कोई गुरेज नहीं है. उन्होंने फेसबुक पर ट्रोल करने वाले तत्वों से जूझने की हिम्मत दिखायी है और हर स्तर पर धर्मनिरपेक्षता स्थापित करने के पक्ष में मुखर रहे हैं. उनका मानना है कि उनके जैसे कर्नाटक संगीत के कलाकारों पर किया गया ताज़ा हमला एक सोची – समझी रणनीति का हिस्सा है और इसे अनायास होने वाली एक घटना मानकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता.

कमल हासन जैसे कलाकारों, जिनके पास अब एक राजनीतिक दल भी है, के साथ जुड़ने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर श्री कृष्णा का स्पष्ट कहना है कि कमल हासन को अब एक राजनीतिक व्यक्तित्व के तौर पर देखा जाता है. वे जो कुछ भी करेंगे उसे अब राजनीतिक नजरिए से देखा जायेगा. इस किस्म के प्रतिरोध के प्रयासों का समर्थन भले ही वो करें, लेकिन इसकी पहल प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष सांस्कृतिक जमात की ओर से ही होनी चाहिए.

बॉलीवुड और अभिव्यक्ति के अधिकार व स्वतंत्रता के पक्ष में बोलने से बचने के उसके रवैये के बारे में टिप्पणी करते हुए टी एम कृष्णा ने कहा कि वह सामंती संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है. उन्होंने आगे जोड़ा कि आज़ादी के बाद देश में सामंतवाद ही लोकतंत्र पर सबसे बड़ा खतरा रहा है.