रेवाड़ी के जिस सिविल अस्पताल में 12 सितंबर को हुए गैंग रेप की पीड़िता नीतू (बदला हुआ नाम) का इलाज चल रहा है, वहां की दीवार पर लिखा है-

कहती बेटी हाथ पसार, मुझे चाहिए प्यार-दुलार.

लेकिन प्यार-दुलार के बजाय हरियाणा के रेवाड़ी-महेंद्रगढ़ इलाके में लड़कियों के साथ एक पैटर्न में गैंग रेप हो रहे हैं. आए दिन अख़बारों के दूसरे-तीसरे पन्ने पर लिखा आता है कि बाजरे के खेतों में मनचलों ने की युवती से छेड़खानी, शौच के लिए बाहर निकली बालिका से सामूहिक दुष्कर्म. एनसीआरबी (NCRB) की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में देश के बाकी राज्यों की तुलना में आबादी के हिसाब से गैंगरेप की घटनायें बहुत ज्यादा हो रही हैं. प्रतिदिन लगभग 3 गैंगरेप की घटनाएं हो रही हैं.

कोटड़ी- लड़कों के गोलबंदी करने की जगह

लड़कों के गैंग बनाने का प्रमाण कोसली के नयागांव की कोटड़ी से मिलता है जहां पर नीतू के साथ गैंगरेप हुआ. कोटड़ी कहते हैं खेतों में कुएं या ट्यूबवेल के साथ बने कमरे को. गांव के बाहर खेतों में बनी इस कोटड़ी में फ्रिज, टीवी और किचन की सारी सुविधाएं हैं. गांववालों के मुताबिक कोटड़ी के मालिक दीनदयाल ने कुछ लड़कों को ये कोटड़ी किराये पर दे रखी थी. यहां पर हमेशा 10-12 युवक मौजूद रहते थे और शराब-पार्टी किया करते थे. गांववालों का कहना है कि तकरीबन हर गांव में ऐसी स्थिति है, जहां पर लड़के ऐसे ही गोलबंदी करके दिनभर बैठे रहते हैं. इस गैंगरेप के मामले में पकड़े गए मुख्य आरोपी निशु फोगाट ने तो कुछ दिन पहले इसी कोटड़ी से फेसबुक लाइव किया था जिसमें वो शराब की सैकड़ों बोतलें दिखा रहा था. इसी कोटड़ी पर गानों की शूटिंग भी हुई है, जिसमें निशु ने हिस्सा लिया है.

पुलिस और आम लोगों की मानसिकता

12 सितंबर को ये गैंग रेप जिस खेत के कमरे पर हुआ उस खेत से सटे खेतों में घास खोद रही महिलाओं ने ऑल इंडिया डेमोक्रेडिक वीमेंस एसोशिएशन की अध्यक्ष जगमति सांगवान और उनकी टीम को बताया कि यहां आने वाले लड़कों का इतना खौफ था कि ये औरतें अकेले कभी अपने खेतों में नहीं आती हैं. जगमति सांगवान जब टीम के साथ पीड़िता के परिवार से मिलने रेवाड़ी पहुंची तो महिला वार्ड के बाहर बैठी टीम ने पीड़िता को ही दोषी माना.

जगमति सांगवान के मुताबिक पंचायत से लेकर पुलिस और सरकार में बैठे सभी लोग रेप से जुड़ी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेते हैं. बल्कि कोशिश करते हैं कि पीड़ित परिवार ऐसे केस लेकर पुलिस के पास ना आए.

जब नीतू (बदला हुआ नाम) के पिता 12 सितंबर की रात रेवाड़ी महिला थाने गए तो सहायक उप निरीक्षक (ASI) हीरामणि ने उनकी कंप्लेंट कॉपी फेंकते हुए कहा कि कैसे कैसे लोग उनकी नींद खराब करने आ जाते हैं. उन्होंने नीतू (बदला हुआ नाम) के पिता को फटकारते हुए वहां से भगा दिया कि ऐसे जाली केस रोज़ आते हैं. बाद में हीरामणि को मामले में लापरवाही बरतने के लिए निलंबित कर दिया गया.

और भी गैंगरेप जिनकी पुलिस रिपोर्ट नहीं हुई

गांव में दस दिन पहले ही एक और गैंग रेप हुआ था जिसमें गांव के ही 17-18 लड़के शामिल थे. दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़की को अगवा कर सरकारी स्कूल ले जाया गया, जहां सबने मिलकर उसके साथ गैंग रेप किया गया. उसका एक वीडियो भी बनाया गया जिसमें उससे बंदूक के दम पर कहलवाया गया कि वो अपनी मर्जी से वहां आई थी. लेकिन उक्त लड़की के पिता न होने की वजह से चाचा-ताऊओं ने बदनामी का डर दिखा मामला दबा दिया. पंचायत ने दोनों पक्षों की सुलह करा दी. वीडियो मांगने पर गांववाले कन्नी काटते दिखाई दिए. एक व्यक्ति ने कहा कि सब डिलीट कर दिया गया.

कागज़ों पर गांव की सरपंच सरिता देवी हैं लेकिन उनका सारा कार्यभार उनके पति अमित कुमार ही देखते हैं. उनका कहना है कि जब दोनों पक्ष ही सुलह चाहते हैं तो इसमें पंचायत कुछ नहीं कर सकती. गांव की कोटड़ी पर इतने सालों से ऐसे मामले चलने की बात पर उनका कहना है कि ये लड़के हथियार लेकर घूमते हैं. किसी की हिम्मत नहीं पड़ती है. कौन अपना गला कटवाए. उन्होंने बताया कि पुलिस खुद ऐसे मामलों में नहीं पड़ना चाहती है. खुद पुलिस ऐसे मामलों को वापस पंचायत के पास लाकर सुलह करवाती है.

पुलिस के बड़े अधिकारियों ने गैंगरेप के मामलों में पुलिस को मीडिया से बात करने से रोक दिया है. गौरतलब है कि भूपिंदर सिंह हूडा की सरकार गैंगरेप और दलित उत्पीड़न के चलते ही जनता के निशाने पर आई थी. जाटों को दरकिनार कर बाकी समुदायों की गोलबंदी कर खट्टर सरकार आई थी, पर खट्टर सरकार भी उसी धारा पर चल रही है.

गांव की सरपंच दलित समुदाय से आती हैं जबकि सभी आरोपी यादव और जाट हैं. इस गांव में करीब 750 परिवार हैं जिनमें जाटों के लगभग 250 घर हैं और बाकी यादवों के हैं.

गांव की सहानुभूति लड़कों के साथ पर लड़कियां सच बोल रही हैं

हालांकि नया गांव में जो रहा है वह यहां के आस पास के ज़्यादातर गांवों का हाल है. हर गांव के कुछ लड़के ऐसी शांत और सुनसान जगहें खोज लेते हैं. गांव के पंचायती घर या किसी कुए पर बनी कोटड़ी या गांव से बाहर कोई जगह. इन लड़कों को गांव वालों से वैधता मिली होती है. गांव गुढ़ा की पूनम का कहना है कि लोग अपने बेटों के फेसबुक चेक क्यों नहीं करते? वो शाम को खेलने का बहाना लगाकर जहां जा रहे हैं, उनकी तफ्तीश क्यों नहीं की जाती? पूनम से बताया कि रोडवेज़ बसों में भी ग्रुप बनाकर ये लड़के लड़कियों को परेशान करते हैं. परिवार वालों की नजर में इस समस्या का समाधान लड़की की जल्द शादी करवा देने से हो जाएगा.

महिलाओं को लगता है कि लड़की ऐसे मामलों में कम ज़िम्मेदार नहीं है. वह किसी ना किसी से चक्कर तो चलाती है. उन्होंने एक स्वर में यही बात कही- ताली एक हाथ तै ना बाज्या करै, उस लड़की ने इनमें से एक लड़के पंकज को खुद बुलाया था. लेकिन इसी गांव की सुनीता से आवाज़ पर ज़ोर डालते हुए कहा कि एक बुलाया भी था तो क्या सारा गाम जावैगा, थारी शरम कित गई. शायद ये महिलाएं ये नहीं देख पातीं कि उम्रदराज हो जाने के बावजूद ये महिलाएं पुरुषों के बीच चेहरे पर चुन्नी बांधे ही बात कर रही थीं. पब्लिक में ये खुले चेहरे के साथ खड़ी नहीं हो पा रही थीं.

डर इतना है कि 20 सितंबर को एक और रेप हुआ, पर दबा दिया गया

डर की वजह से पीड़िता का परिवार अस्पताल से बाहर नहीं गया है. पीड़िता के छोटे भाई को स्कूल नहीं भेजा जा रहा है. पीड़िता की मां का कहना है कि उन्हें धमकियां दी जाएंगी लेकिन वो केस से पीछे नहीं हटेंगी. पंचायत ने दस दिन पहले हुए गैंग रेप में भी कुछ मदद नहीं की बल्कि मामले को दबा दिया. इस इलाके में रेप की घटनाओं की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार देवेंद्र सिंह ने बताया कि एक साल पहले भी इसी गांव में एक लड़की का गैंग रेप हुआ था. लड़की पड़ोस के किसी गांव से थी. उन्हें गांव से खबर मिली थी कि लड़की के पिता ने उसे करंट लगाकर मार दिया है. यह मामला भी ना पंचायत पहुंचा, ना ही पुलिस तक पहुंच पाया.

देवेंद्र इस इलाके के एकमात्र पत्रकार हैं जो सभी रेप की घटनाओं को कवर करते हैं. कई केसों में जब उन्हें गांव के किसी व्यक्ति के ज़रिए खबर मिली तो उन्होंने पीड़ित पक्ष से रिपोर्ट दर्ज़ कराने की अपील की है. लेकिन बहुत सारे केसों में मामला घर की चारदीवारी से बाहर नहीं जा पाया. इस गांव में इसी 20 सितंबर को एक और घटना हुई है. इस बार की घटना का शिकार एक लड़का है, लड़की नहीं. यह मामला भी लोक लाज में दब गया है.

निशु के परिवार वाले कुछ अलग ही बातें कर रहे हैं

इस घटना के मुख्य आरोपी निशु का नाम पहले भी ऐसे कई मामलों में आ चुका है. आरोप है कि वह खेत में घास खोदने आई दलित महिलाओं के साथ भी ऐसा कर चुका था. लोगों ने बताया कि ये लड़के रोज़ शाम को हरिजनों की बस्ती में जाकर भी उत्पात मचाते थे. वहां भी छेड़ने वाली घटनाएं हो चुकी हैं. निशु का फेसबुक भी सेक्सुअल कंटेंट से भरा हुआ है. उसने अपनी तस्वीरों के साथ "लोग सोचते हैं मेरी कई गर्लफ्रेंड हैं, लेकिन मैं दूसरों की गर्लफ्रेंड छेड़ता हूं ' लिखा हुआ है. पड़ोसी गांव गढ़ी के संदीप(बदला हुआ नाम) ने कहा कि निशु एक नंबर का बदमाश रहा है. उसका रिकॉर्ड शुरू से ही खराब रहा है.

निशु के घर जाने पर उसके मां-बाप ने चाय के लिए पूछा और खुल के बातें की. उसके पापा का एक पैर एक्सीडेंट में कट गया था. मां ने कहा कि बेटे को फंसाया गया है. बाप ने भी यही कहा, साथ ही यह भी जोड़ दिया कि अगर वो गलत होगा, तो न्यायालय उसे सजा दे, मैंने तो उसे बुला के सरेंडर करवा दिया. लड़के की बात करते हुए इन्होंने लड़की पर भी दोष मढ़ा कि उसका मामले में दूसरे आरोपी पंकज के साथ अफेयर था और वो शराब भी पीती थी.

आरोपी पंकज के घर पर ताला बंद था. पीछे के दरवाजे से जाने पर आंगन में दो गायें बंधी थीं और पंकज की अस्सी साल की नानी उनको खिला रही थीं. नानी ही घर में अकेली हैं. सारे लोग गायब हैं. नानी ने कहा कि ऐसा करने से अच्छा था कि मर ही जाता. एक साल पहले ही पंकज की शादी हुई थी और उसकी पत्नी गर्भवती है.

पंकज के पिता की मौत पंकज की सेना में नौकरी लगने के वक्त ही हो गई थी. गांव के एक लड़के ने बताया कि पंकज की नौकरी लगने में नीतू के पापा का बहुत योगदान था. वो मोटरसाइकिल पर बैठकर पंकज से दौड़ मरवाते थे. पंकज बचपन से ही उनके घर आता-जाता था. नीतू के पापा ने पंकज को अपनी गोद में भी खिलाया है.

वहीं मामले के तीसरे आरोपी मनीष के घर पर सन्नाटा पसरा हुआ है. उसकी मम्मी बोल नहीं पातीं, रोने लगती हैं. उसके पापा को पुलिस ने बहुत पीटा है, वो खून की उल्टियां कर रहे हैं. मनीष की बहन के मुताबिक मनीष नाबालिग है और उसी ने लड़की को कनीना बस स्टैंड पर छोड़ा था. कनीना नयागांव से पंद्रह किलोमीटर दूर है. वहां पर नीतू कोचिंग लेने जाती थी. लड़कों ने नीतू को वहीं से उठाया था. मनीष की बहन ने ये भी कहा कि अगर वो गलत होता तो नीतू को छोड़ने नहीं जाता. पर ये समझ नहीं आया कि गांव से दो किलोमीटर की दूरी पर गैंगरेप कर उस लड़के ने अठारह किलोमीटर दूर बस स्टैंड पर क्यों छोड़ा. बहन के मुताबिक इस देश में गरीबों की कोई नहीं सुनता.

गौरतलब है कि तीनों ही आरोपी लड़कों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और परिवारों को इन तीनों से ही उम्मीद थी.

गांव के लोग लड़की को छोड़, हर बारे में बात कर रहे हैं

गांव के लोगों को सबसे ज्यादा दुख इस बात था कि पुलिस ने गांव के बहुत सारे लड़कों को उठा लिया और बहुत पिटाई की. गांव की ही 150 औरतें नाहड़ पुलिस चौकी जाकर इस बात करके आई हैं. घूंघट निकाले मोहल्लों में खड़ी इन औरतों का कहना है कि जो भी अपराधी हैं उन्हें पकड़ा जाए. उनके पतियों और लड़कों को क्यों मार रही है पुलिस. मीडिया में कुछ भी बोलने से बच रहे ग्रामीण अब मीडिया से मदद लेना चाहते हैं कि पुलिस के अत्याचार से उनके लड़कों को बचाया जाए.

किसी ने भी पीड़िता के पक्ष में कुछ नहीं कहा.

देवेंद्र बताते हैं कि पुलिस पुराने जमाने के हिसाब से काम कर रही है. जो दिखा उसको उठा लो और खूब पीटो. खुद ही कुछ ना कुछ बता देंगे. जबकि अगर सोशल मीडिया और टेक्नॉल्जी का सहारा लेते तो तुरंत पकड़ लेते. गौरतलब है कि दो आरोपी घटना के अगले दिन भी गांव में ही मौजूद थे.