दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग के साथ मिलकर 52 शांत क्षेत्रों की पहचान कर हाल में उन्हें अधिसूचित किया है. शांत क्षेत्र वो क्षेत्र हैं जहाँ वाहनों के हॉर्न बजाने, तेज संगीत बजाने और पटाके चलाने पर पाबंदी है. इन क्षेत्रों के लिए शोर के मानक भी आवासीय इलाकों या वाणिज्यिक इलाकों की अपेक्षा कठोर होते हैं. इसके पहले दिल्ली में 103 शांत क्षेत्र अधिसूचित किये जा चुके थे. पर, दिल्ली में जो लोग रहते हैं, उन्हें शांत क्षेत्र की अधिसूचना एक मजाक से अधिक कुछ नहीं लगेगी. यहाँ के वाहन चालकों में हॉर्न बजाने का जो उत्साह है, वह किसी और शहर में नहीं देखा जाता. संभवतः दिल्ली के अधिकतर वाहन चालक यह मानते हैं कि बिना हॉर्न बजाये वे तेज नहीं चल सकते और इसे लगातार बजाना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है.

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के लिए अधिक शोर, कारों में बजनेवाला और बहरा बनानेवाला म्यूजिक या बेवजह हॉर्न कभी भी नियंत्रण का विषय ही नहीं रहा. वैसे भी यहाँ के ट्रैफिक पुलिस की कुछ विशेषताएं पूरी दुनिया में शायद ही कहीं मिलती हों. आप गति सीमा का उल्लंघन करेंगे तो शायद जुर्माना देना पड़े पर दिल्ली या किसी अन्य राज्य की सरकारी बसें कितना भी गति सीमा उल्लंघन करें या फिर प्रतिबंधित प्रेशर हॉर्न बजाती रहें, उन्हें कोई भी नहीं रोकता. इसी तरह दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने धार्मिक प्रयोजनों में भाग लेने वाले लोगों और सामान्य चालकों के लिए भी अघोषित अलग रवैया अपनाया हुआ है. मूर्ती विसर्जन, जगराता या कावड़ यात्रा के नाम पर वाहनों और बाइक सवार तमाम उत्पात सडकों पर मचाते हैं और सभी ट्रैफिक नियमों की अवहेलना सरेआम करते हैं, पर दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के लोग आँख मूंदे बैठे रहते हैं. पर, उसी समय सामान्य चालक वैसी ही कोई हरकत करे तब ट्रैफिक पुलिस उससे जुर्माना वसूलने में सबसे आगे रहते हैं.

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अनुसार जनवरी से सितम्बर 2018 के बीच शांत क्षेत्रों में हॉर्न बजाने के कारण 13243 वाहन चालकों का चालान काटा गया, पर चालान काटना और जुर्माना भरने में बहुत अंतर है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि शोर दिखाई नहीं देता और तुरंत समाप्त हो जाता है, इसलिए बिना इसे मापे इसका जुर्माना वसूलना कठिन है. हॉर्न बजने की फोटो नहीं खींची जा सकती और भीड़ में वीडियोग्राफी से सीधे तौर पर यह बता पाना लगभग असंभव है कि किस वाहन में हॉर्न बज रहा है.

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अनुसार वर्तमान में उनके विभाग की तरफ से बेवजह हॉर्न बजाने की आदत रोकने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. इसके अंतर्गत पहले ही दिन, यानि 8 अक्टूबर को बेवजह हॉर्न बजाने वालों के 834 चालान काटे गए. सवाल यह उठता है कि, चालान काट कर कौन सी जन-जागरूकता की नुमाइश की जा रही है? जुर्माने के साथ कैसे जन-जागरूकता हो सकती है?

पिछले वर्ष सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी, देलही टेक्निकल यूनिवर्सिटी और सेंट्रल पोल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड के साथ मिलकर सात बड़े शहरों के कुल 17 शांत क्षेत्रों में शोर के स्तर का अध्ययन किया था. ये शहर थे – दिल्ली, चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद और लखनऊ. इस अध्ययन में एक भी शांत क्षेत्र ऐसा नहीं मिला जहाँ शोर का स्तर दिन या रात में निर्धारित मानकों के अनुरूप हो. निर्धारित मानकों के अनुसार शांत क्षेत्रों में दिन के समय शोर का स्तर 50 डेसिबेल से और रात में 40 डेसिबेल से अधिक नहीं होना चाहिए. उपरोक्त अध्ययन के दौरान दिन में शोर का स्तर 56 से 77 डेसिबेल के बीच था, जबकि रात के समय 51 से 75 डेसिबेल के बीच था.

नॉइज़ पोल्यूशन (रेगुलेशन एंड कण्ट्रोल) रूल्स 2000 के अनुसार हॉस्पिटल, शिक्षा संस्थान, न्यायालय और पुस्तकालयों से 100 मीटर के दायरे का क्षेत्र शांत क्षेत्र है. रूल्स के अनुसार हॉस्पिटल में नर्सिंग होम्स और क्लिनिक सम्मिलित हैं. इसी तरह शिक्षा संस्थानों में कोचिंग इंस्टिट्यूट, फिजिकल ट्रेनिंग सेंटर और जिम इत्यादि सम्मिलित हैं. न्यायालय में ट्रिब्यूनल भी सम्मिलित हैं. आश्चर्य की बात यह है कि वर्ष 2000 से लागू इस रूल्स के तहत अब शांत क्षेत्र घोषित किया जा रहा है. वैसे भी, हमारे देश के मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों की तुलना में बहुत लचर हैं. हमारे देश में शांत क्षेत्रों में दिन के समय शोर का स्तर 50 डेसिबेल तक और रात में 40 डेसिबेल तक निर्धारत मानकों के अनुरूप है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के अनुसार विद्यालयों में इसका स्तर 35 डेसिबेल से अधिक और अस्पतालों में 30 डेसिबेल से अधिक नहीं होना चाहिए.

जाहिर है, शोर का नियंत्रण हमारी सरकारों के लिए कभी महत्वपूर्ण नहीं रहा है. जनता में इसके नियंत्रण के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाए जाते हैं. शोर पर तभी चर्चा के जाती है जब इससे सम्बंधित कोई फैसला कोई न्यायालय सुनाता है, जैसे पटाखे पर प्रतिबंध का सर्वोच्च न्यायालय का फैसला या फिर जंतर-मंतर रोड पर शोर के कारण धरना/प्रदर्शन पर रोक का दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला. हमारे देश में सन्नाटे पर शोर होता है और शोर पर सन्नाटा.