टीवी चैनलों के प्रसारण को बेहतर बनाने और एनालॉग टीवी में अंतर्निहित खामियों को दूर दूर करने के लिए डिजिटलीकरण किया गया। डिजिटलीकरण के बाद भी अनेक हितधारक प्रसारण कंपनियां उपभोक्ताओं को चैनल चयन करने का अधिकार नहीं दे रही थीं। इसलिए ट्राई उपभोक्ताओं के लिए एक नया विनियामक ढांचा लायी। इस ढांचे के पक्ष में और उपभोक्ताओं को इसे अपनाने के लिए यह तर्क दिया गया कि उपभोक्ता को चैनलों के चयन की स्वतंत्रता होगी कि वह क्या देखना चाहता है और वह केवल उसके लिए ही भुगतान करेगा। साथ ही, उपभोक्ता चैनलों को एलाकार्ट के आधार पर चुन पायेगा।

लेकिन ट्राई की 1 फरवरी 2019 की तय समय सीमा पर जब काफी उपभोक्ताओं ने अपने चैनलों का चयन नहीं किया तो ट्राई ने कहा कि “जनहित के मद्देनजर, प्राधिकरण सभी डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफार्म ऑपरेटर (डीपीओ) को निर्देश देता है कि जो ग्राहक अपने चैनल का चुनाव नहीं करते हैं, उन्हें ‘बेस्ट फिट प्लान’ में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।” ग्राहक की पुरानी योजना तब तक जारी रहेगी जब तक कि वह अपने चैनलों का चयन नहीं करता या बेस्ट फिट प्लान में स्थानांतरित नहीं हो जाता है। बेस्ट फिट प्लान उपभोक्ताओं के इस्तेमाल संबंधी रुझानों, चैनलों की लोकप्रियता और बोली जाने वाली भाषा के आधार पर तैयार किया जाएगा।”

दरअसल, उपभोक्ता को झूठमुठ का दिया गया चयन का अधिकार भी ‘बेस्ट फिट प्लान’ के जरिये ट्राई ने छीन लिया। जब ऑपरेटर्स द्वारा बेस्ट फिट प्लान दिया जायेगा, तो चयन का अधिकार किस बात का?

बढ़ते बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता संस्कृति तेजी से बढ़ रही है जिसमें उपभोक्ता को अधिकार देने की बात तो की जाती है, लेकिन असल में उपभोक्ताओं को अधिकार दिये नहीं जाते। इस बात को ऐसे समझिए कि आपको ट्राई ने चयन का अधिकार तो दे दिया, लेकिन हकीकत में क्या उपभोक्ता को चयन के अधिकार से किसी तरह का लाभ हुआ? उसका खर्च घटने के बजाये बढ़ गया और चैनलों की संख्या बढ़ने की बजाये घट गयी! चैनलों के प्रसारण की गुणवत्ता में भी कोई खास सुधार देखने को नहीं मिलता है। उपभोक्ता को 100 एफटीए चैनल देखने के लिए तकरीबन 153 रुपये का भुगतान करना पड़ेगा। ट्राई के अनुसार, कुल 864 चैनल हैं इनमें 536 फ्री टू एयर चैनल हैं और 328 पेड चैनल्स हैं। ऐसी स्थिति में तो अधिक फ्री टू एयर चैनलों को देखने के लिए भी अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा जबकि अभी उपभोक्ता 270 देकर लगभग 500 चैनल देख सकता था। इन 500 चैनल्स में फ्री टू एयर और पेड चैनल दोनों शामिल होते थे। पेड चैनल के लिए चैनल शुल्क और अतिरिक्त नेटवर्क क्षमता शुल्क भी देना पड़ेगा।

चयन के अधिकार का मतलब बाजार की सेवाओं में प्रतिस्पर्धा हो ताकि उपभोक्ता को कम कीमत में बेहतर सेवा मिले। लेकिन ट्राई की नयी व्यवस्था में उपभोक्ता कुछ निश्चित चैनलों तक सीमित होकर रह गया है। उदाहरण के लिए, यदि उपभोक्ता एक महीने के लिए सिर्फ सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स के पैक को चुनता है तो वह सिर्फ उस नेटवर्क द्वारा दिए गए चैनलों को ही देख सकता है। लेकिन वायकॉम 18, स्टार इंडिया या जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइज लिमिटेड द्वारा पेश किए गए चैनलों को देखने के लिए सोनी सब्सक्राइबर को अतिरिक्त रूप से अपने पैक का चयन करना होगा। उपभोक्ता अपनी पसंद के चैनल देखने के लिए अलग-अलग पैक चुनेगा जिससे प्रसारक कंपनियों को फायदा होगा न कि उपभोक्ता को। जो उपभोक्ता ज्यादा खर्च नहीं कर सकते वह सीमित चैनल देखकर ही गुजारा करेंगे।

एक बात और, इस नये ढांचे में एक बड़ा तबका सिर्फ खास तरह की सामग्री ही देख पायेगा। भारत जैसा देश जोकि विविधता के लिए जाना जाता है, वहां इस नये ढांचे से उपभोक्ताओं के टीवी चैनल देखने की विविधता भी खत्म हो जायेगी। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि एक उपभोक्ता कुछ न्यूज चैनल चुनेगा। और केबल ऑपरेटर्स या डीटीएच सेवा के पैक्स में भी सभी न्यूज चैनल नहीं होंगे। इस तरह उपभोक्ता दूसरे न्यूज चैनलों की सामग्री से वंचित रह जायेगा। एक नागरिक का अधिकार है कि उसको न्यूज चैनल के माध्यम से सूचना व जानकारी मिले। लेकिन इस व्यवस्था से एक उपभोक्ता/नागरिक कुछ चैनलों की खबरों/जानकारियों तक सीमित रहेगा। इसी तरह से मनोरंजन, खेल, फिल्मों के चयन की विविधता भी सीमित हो जायेगी।

डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में एक नये तरह का विभाजन होगा। क्योंकि अब तक केबल ऑपरेटरों को एक निश्चित शुल्क देकर उपभोक्ता लगभग 500 चैनल देख सकता था, लेकिन अब जो उपभोक्ता ज्यादा खर्च नहीं कर पायेगा वह सीमित चैनल ही देख पायेगा। जो उपभोक्ता ज्यादा पैसे खर्च करेगा वह ज्यादा से ज्यादा चैनल देख सकेगा।

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने 2017 में कहा कि इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनी इंटरनेट के उपयोग को लेकर भेदभाव नहीं कर सकते हैं। जब इंटरनेट का एक पैक लेकर हम सभी वेबसाइटों को देख सकते हैं तो एक निश्चित शुल्क देकर हम सभी चैनलों को क्यों नहीं देख सकते? ट्राई के ये दो तरह के सिद्धांत भला किस तरह के हैं जिसमें एक सिद्धांत उपभोक्ताओं के पक्ष में है तो दूसरा प्रसारकों के पक्ष में।

डिजिटलीकृत प्रसारण एनक्रिप्‍टेड यानी नकल न किए जा सकने योग्‍य होगा, तो इस स्‍थिति में स्‍थानीय चैनलों और शहर के विज्ञापनों पर भी रोक लग जाएगी। उपभोक्‍ता तब झक मारकर वही देखने पर मजबूर होगा, जो उसे प्रसारणकर्ता और मल्‍टी सिस्‍टम ऑपरेटर दिखा रहा है।

साफ है कि उपभोक्ताओं को चयन के अधिकार के नाम पर ठगा गया है। नये ढांचे से सिर्फ उपभोक्ताओं का बजट ही नहीं बढ़ा है, बल्कि उससे कई सुविधा छीन ली गई हैं जैसे- किसी भी चैनल को देखने का अधिकार, चैनल देखने के लिए अलग से भुगतान और भुगतान भी पहले से कई गुना ज्यादा आदि। नयी व्यवस्था के लागू होने के बाद केबल टीवी उपभोक्ता डीटीएच प्लेटफॉर्मों की ओर रुख कर रहे हैं। इस व्यवस्था से डीटीएच प्लेटफॉर्मों और प्रसारकों को लाभ होगा।