पिछले कुछ वर्षों में लैंगिक असमानता के मुद्दे पर गंभीर चर्चा की गयी है. इसका नतीजा यह है कि अब यह असमानता धीरे-धीरे कम होने लगी है. पर, अब एक दूसरी समस्या आ पड़ी है. और वह समस्या है - पारिवारिक मूल्यों का ह्रास और परिवारों का बिखराव. प्रतिष्ठित प्यू रिसर्च सेंटर ने हाल में ही 27 देशों में एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें कुल 30,133 लोगों से पूछा गया कि पिछले 20 वर्षों के दौरान उनके देश में क्या सामाजिक विविधता बढ़ी है? क्या लैंगिक समानता बढ़ी है? क्या धर्म का महत्व बढ़ा है? क्या पारिवारिक रिश्तों में मजबूती आयी है?

जिन 27 देशों में यह सर्वेक्षण किया गया उनमें स्वीडन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, फ्रांस, स्पेन, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, इंडोनेशिया, अमेरिका, केन्या, नीदरलैंड, जर्मनी, इजराइल, ब्राज़ील, इटली, नाइजीरिया, मेक्सिको, अर्जेंटीना, पोलैंड, ग्रीस, जापान, दक्षिण अफ्रीका, ट्यूनीशिया, फिलीपींस, रूस और हंगरी शामिल हैं.

पिछले 20 वर्षों में लैंगिक समानता बढ़ी है या नहीं, इस प्रश्न के जवाब में 68 प्रतिशत लोगों का मानना है कि यह बढ़ी है. जबकि महज 8 प्रतिशत के अनुसार लैंगिक समानता पहले से कम रह गयी है और शेष का मानना है कि इसमें कोई अंतर नहीं आया है. भारत में 77 प्रतिशत लोग समानता के पक्ष में हैं. जबकि 27 देशों के कुल प्रतिभागियों में से 64 प्रतिशत ही इसके पक्ष में हैं. महिलाओं की अपेक्षा ऐसे पुरुषों की संख्या अधिक है जो लैंगिक समानता में बढ़ोतरी देख रहे हैं.

जर्मनी में 78 प्रतिशत पुरुषों का और 62 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि लैंगिक समानता पिछले 20 वर्षों में बढ़ी है. पुरुषों और महिलाओं में 10 प्रतिशत से अधिक का अन्तर जापान, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड्स, स्पेन, अमेरिका, स्वीडन और केन्या में भी पाया गया. स्वीडन की 82 प्रतिशत आबादी और हंगरी की 29 प्रतिशत आबादी लैंगिक समानता की पक्षधर है.

कुल 69 प्रतिशत लोग मानते हैं कि पिछले 20 वर्षों में समाज में विविधता बढ़ी है. जबकि 10 प्रतिशत लोग इसका ठीक उल्टा समझते हैं. पूरी आबादी में से 45 प्रतिशत लोग विविधता में बढ़ोतरी को अच्छा संकेत मानते हैं. पर, भारत में केवल 36 प्रतिशत लोग ही इससे खुश हैं. यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अधिकतर लोग विविधता का स्वागत करते हैं. लेकिन ग्रीस और इटली इसके अपवाद हैं. ग्रीस के 62 प्रतिशत लोग और इटली के 45 प्रतिशत लोग मानते हैं कि सामाजिक विविधता नहीं होनी चाहिए.

कम उम्र के लोग, अधिक पढ़े-लिखे और वाम विचारधारा वाले लोग विविधता के पक्ष में खड़े रहते हैं. पर, आज के दौर में राष्ट्रवादी विचारधारा पूरी दुनिया में हावी होती जा रही है और ऐसी विचारधारा विविधता को ख़त्म करने का प्रयास करती है. इंडोनेशिया की 76 प्रतिशत आबादी और ग्रीस की केवल 17 प्रतिशत आबादी विविधता का स्वागत करती है.

पिछले 20 वर्षों में समाज के सन्दर्भ में धर्म की भूमिका अधिक हो गयी है या नहीं के जवाब में 27 प्रतिशत लोग कहते हैं, नहीं. जबकि 37 प्रतिशत लोग अपने समाज में धर्म की पहले से अधिक भूमिका देखते हैं. कुल 36 प्रतिशत आबादी मानती है कि धर्म की भूमिका में कोई अंतर नहीं आया है. दुनिया में कुल 13 प्रतिशत लोग समाज में धर्म के दखल का स्वागत करते हैं, जबकि भारत में ऐसे 21 प्रतिशत लोग हैं. स्वीडन में 51 प्रतिशत आबादी धर्म का दखल नहीं चाहती. जबकि इंडोनेशिया में केवल 4 प्रतिशत आबादी ऐसा नहीं चाहती.

जब लैंगिक समानता, सामाजिक विविधता और धर्म के प्रभाव में अंतर आएगा, तो परम्परागत पारिवारिक मूल्यों और सिद्धांतों में भी बदलाव होगा और इस सर्वेक्षण से यह स्पष्ट भी होता है. कुल 58 प्रतिशत आबादी के अनुसार पारिवारिक मूल्य पिछले 20 वर्षों में बदल रहे है, जबकि महज 15 प्रतिशत आबादी के अनुसार इसमें कोई अंतर नहीं आया है.

इतना तो स्पष्ट है कि समाज बदल रहा है, पर इस बदलाव का संकेत हमेशा विकसित देशों के अध्ययन से ही मिलते हैं. हमें अपने देश में ऐसे अध्ययनों की अधिक आवश्यकता है.