भारत में 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री स्तर पर होने वाला इफ्तार के बंद हो गया. लगभग सभी भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री आवासों मे होने वाली इफ्तार के सिलसिले भी बंद हो गये. लेकिन कई मुख्यमंत्रियों व बड़े नेताओं ने अपने स्तर पर पवित्र रमाजान के पवित्र महीने में एक दिन रोजा- ए -इफ्तार का आयोजन करके आपसी भाईचारा व सदभाव की कड़ी को मजबूत करने का सिलसिला आज भी कायम रखा है.

अधिकांश लोग साल में एक बार नेताओं व मुख्यमंत्री स्तर पर आयोजित होने वाली इफ्तार को सदभाव व आपसी मेल - मिलाप के लिए अच्छा अवसर बताते हुए इस तरह के आयोजनों के सिलसिले को बनाये रखने की ताईद करते हैं. जबकि कुछ लोग इसके उलट कहते हैं कि भारत के मुस्लिम समुदाय को अब अन्य वतन भाईयो के साथ शैक्षणिक, सामाजिक व महासी दौड़ लगाने के लिए इफ्तार पार्टियों के बजाय हर स्तर पर विकास की दौड़ में शामिल होकर इसकी रफ्तार को बढ़ाने की सख्त जरूरत है.

भारत के अलग - अलग हिस्सों मे मुख्यमंत्री व नेताओं द्वारा आयोजित इफ्तारों मे से कुछ पर अगर नजर दौडाएं, तो हम पाते हैं कि चंद मुख्यमंत्रियो व नेताओं की इफ्तार में रोजेदार बड़ी संख्या मे ख़ुशी – ख़ुशी शिरकत करके प्रांत व देश की खुशहाली व अमन-चैन की दुआएं करते हुए वापस लोट जाते हैं.

आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी व तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा आयोजित इफ्तार मे शिरकत करने वाले रोजेदारों व वतन भाइयो की तादाद अच्छी – खासी थी. सभी लोग इस अवसर पर आपसी मेलजोल बढ़ाते हुए खुश नजर आ रहे थे. उक्त सभी मुख्यमंत्री इफ्तार मे आने वाले लोगो की खिदमात करने व आपस में घुल - मिलने मे कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. जगन मोहन रेड्डी ने तो रोजेदारों के साथ बैठकर इफ्तार करने के अलावा बाजमात मगरीब की नमाज भी रोजेदारों के साथ ही अदा की. इसके अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इफ्तार के दौरान बाकायदा रोजेदार की तरह ही सिर पर टोपी लगाये नजर आये. इस अवसर पर मीडिया के मार्फत उनके छोटे से सम्बोधन को भी काफी प्रभावशाली बताया जा रहा है.

नेताओं में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी व राबड़ी देवी के अलावा राजस्थान के सीकर शहर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया द्वारा आयोजित इफ्तार के आयोजन मे बड़ी तादाद में रोजेदारों व वतन भाईयो की खुद से खींची आई भीड़ और आयोजन में उक्त नेताओं द्वारा स्वागत-सत्कार करने को भी बडे स्तर पर सहराया गया. उक्त सभी नेता सत्ता में रहें या सत्ता के बाहर, वे इफ्तार आयोजन के सिलसिले को निरंतर जारी रखे हुए हैं.

कुल मिलाकर, इस तरह के रोजा इफ्तार के सरकारी या गैर- सरकारी स्तर के आयोजन को अधिकांश लोग आपसी सदभाव और मेलजोल बढ़ाने के अलावा आपसी ख्यालात के तबादले होने का अवसर भी मानते हैं. वे इसे भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों और समूहों के आदर व सम्मान से जोड़कर भी देखते हैं. लेकिन कुछ लोग इसे मात्र दिखावा बताते हुए कहते हैं कि सरकारी स्तर पर इस तरह के आयोजनों के बजाय सरकार को हर स्तर पर पिछड़ चुके मुस्लिम तबके के विकास की कार्ययोजना बनाकर उनपर अमल करना चाहिए.