धर्मिक होने के मायने

संदीप पाण्डेय

Update: 2017-11-12 11:13 GMT

LUCKNOW: जबकि बंग्लादेश को छोड़कर कोई भी करीब चार लाख रोहिंग्या मुसलमानों को जो म्यांमार से जातीय हिंसा में भगाए जा रहे थे, जिसको वहां की सरकार का मौन समर्थन प्राप्त था, लेने को तैयार नहीं था इंग्लैण्ड की एक सिक्ख धर्मार्थ संस्था खालसा एड ने बंग्लादेश पहुंच कर रोहिंग्या लोगों के लिए गुरुद्वारे की तरह लंगर चला कर भोजन की व्यवस्था की। म्यांमार की प्रसि़़द्ध नेत्री आंग सान सू जिन्हें अपने मुल्क में लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला की अब थू थू हो रही है क्यों वे भी रोहिंग्या के पक्ष में कोई भूमिका लेने को तैयार नहीं। भारत ने ऐतिहासिक रूप से तमाम शरणार्थियों की मदद की है। तिब्बत की तो निष्कासित सरकार ही यहां चल रही है।

किंतु चूंकि एक दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है उसने यह कह कर अति गरीब व असाय रोहिंग्या लोगों को भारत में लेने से मना कर दिया कि उनमें आतंकवादी भी हो सकते हैं। हलांकि भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 21 यानी जीने का अधिकार व व्यक्तिगत स्वतंत्रता रोहिंग्या लोगों पर भी लागू है एवं भारत में रह रहे करीब चालीस हजार रोहिंग्या लोगों को जबरदस्ती नहीं निकाला जाना चाहिए। सरकार उनके लिए म्यांमार वापस लौटने तक हिरासत केन्द्र बना कर उनको वहां रखने की योजना बना रही है।

प्रधान मंत्री ने हमेशा की तरह दीपावली सीमा पर सैनिकों के साथ मनाई और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री ने अयोध्या में प्रत्येक नागरिक के नाम पर एक दिया जलाने का संकप्ल लेते हुए सरकारी खर्च पर 1,87,213 दिए जलाए। नरेन्द्र मोदी से पूछा जाना चाहिए वे हरेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय या धर्मिक त्योहार पर सीमा पर सैनिकों के ही मिलने क्यों पहुंच जाते हैं? लाल बहादुर शास्त्री, जिनकी भारतीय जनता पार्टी नेहरू-गांधी परिवार के प्रधान मंत्रियों से ज्यादा इज्जत करती है, ने ’जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। क्या प्रधान मंत्री को कभी उन किसान परिवारों में नहीं जाना चाहिए जिनके किसी सदस्य ने आत्महत्या की हो अथवा क्या इस बार उन्हें उन परिवारों में नहीं जाना चाहिए था जिनके बच्चे गोरखपुर के बाबा राघव दास अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में मर गए या अभी भी मर रहे हैं बजाए इसके कि बार बार उपनी युद्धोन्मादी मानसिकता का परिचय दें।

मुख्य मंत्री ने अयोध्या में बीते जून 350 करोड़ रुपए की अयोध्या के विकास के नाम पर घोषणा की थी। दीपावली के अवसर पर उन्होंने 133 करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा की है। अयोध्या में धर्मिक कार्यक्रमों के आयोजन हेतु सरकारी पैसा खर्च किया जाना भारतीय संविधान के धर्मनिर्पेक्ष सिद्धांत की भावना का उल्लंघन है। संविधान से भी ज्यादा यह नैतिक आधार पर जिस देश में आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हों और हरेक बड़े शहर, जिसमें स्मार्ट शहर भी शामिल हैं, के मुख्य चौराहों पर और प्रत्येक धार्मिक स्थल मंदिर, मस्जिद या मजार पर लोग भीख मांगते हों इस तरह की पैसे की बरबादी गलत है। छोटी दीपावली पर करीब 25,000 लीटर तेल जिसमें सरसों, तिल व सोयाबीन के तेल शामिल थे जो दियों में जलाया गया तो कार्यक्रम के बाद बचा खुचा तेल लोग बोतलों में भरने आ गए जो शायद वे खाना पकाने में इस्तेमाल करने वाले हों।

मुम्बई से कलाकार बुलाए गए थे जो राम, सीता व लक्ष्मण बने थे। इन्हें 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे राम के दृश्य को जीवंत बनाने के लिए कलाकारों को सरकारी हेलिकॉप्टर में लाया गया। सरकारी नियमों के हिसाब से सम्भवतः कलाकार लोग सरकारी हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। यह काम राज्यवाल राम नायक का देखने का है कि सभी सरकारी नियमों का पालन हो रहा है अथवा नहीं? किंतु राज्यपाल तो सरकार के सभी धार्मिक कार्यक्रमों में बड़ी शिद्दत से शामिल होते हैं। उनकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि उनके द्वारा निष्पक्ष कार्य करने में बाधा बन रही है। पिछली सरकार की छोटी से छोटी गल्ती भी उनको बर्दाश्त नहीं थी किंतु वर्तमान सरकार की कुछ खामियों को वे नजरअंदाज कर देते हैं।

जबकि खालसा एड की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तारीफ हो रही है, उ.प्र. सरकार जो कर रही है वह धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण कर भाजपा का राजनीतिक एजेण्डा आगे बढ़ाना है। सिक्ख धर्म को मानने वाले अपने व्यक्तिगत पैसे से प्रताड़ित लोगों की मदद कर रहे हैं और हिन्दुत्व का प्रतिनिधित्व करने वाले जनता का पैसा बरबाद कर रहे हैं। मात्र दिखावा कर यह अपने धर्म की भी बदनामी कर रहे हैं। जब मायावती लखनऊ में दलित प्रतीकों के स्मारक सरकारी धन खर्च कर बनवा रही थीं तो जनता का पैसा बरबाद करने का उनपर लोग आरोप लग रहा था। क्या भाजपा वही काम नहीं कर रही?

अच्छा होता यदि योगी ने 1,87,213 लोगों को ठीक से भोजन करा दिया होता। लेकिन हिन्दू धर्म में सिक्ख धर्म की तरह सम्मान से भोजन कराने की कोई परम्परा नहीं है। यदि भोजन दिया भी जाएगा तो भिखारी मान कर। इसलिए जबकि हिन्दू व अन्य धर्मों में भिखारी मिल जाएंगे कोई सिक्ख भिखारी नहीं मिलेगा।

किसी भी धर्म के मौलिक मूल्य होते हैं करुणा, दया, ममता, बंधुत्व, आदि जिसका खालसा एड ने तो परिचय दिया है लेकिन हिन्दुत्ववादी अपनी संकीर्ण मानसिकता ही प्रदर्शित कर रहे हैं। खालसा एड धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। उन्होंने 2005 में कश्मीर में भूकम्प के समय मदद पहुंचाई जिसमें मदद पाने वालों में हिन्दू भी थे, 2009 में स्वात में व इसी साल मैनचेस्टर में आतंकी घटना के बाद लोगों की मदद की। योगी ने अयोध्या में घोषणा की है कि अब इतिहास में दूसरी बार राम राज्य आ गया है और जाति, धर्म, आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा किंतु यह कोई गोपनीय बात नहीं है कि भाजपा की राजनीति ही मुस्लिम विरोध पर टिकी हुई है। हलांकि योगी धार्मिक आडम्बर ओढ़े हुए हैं लेकिन उनके क्रियाकलाप कोई धार्मिक नहीं। सिर्फ कर्मकाण्ड धर्म नहीं होता, मानवीय मूल्यों को जीना धर्म होता है। रा.स्व.सं. व भाजपा धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे हैं और वास्तविक रूप से धार्मिक नहीं हैं। इन्हें हम छद्म धार्मिक कह सकते हैं।

जब से रा.स्व.सं. का उदय हुआ है और खासकर भाजपा की कई राज्यों व केन्द्र में सरकार बनी है तब से नाफरत की राजनीति बढ़ गई है, दलितों, मुसलमानों, इसाइयों व हिन्दुत्व के विचार की आलोचना करने वालों के साथ मार-पीट व हत्या तक की घटनाएं और असहिष्णुता व आतंक के माहौल का निर्माण हुआ है। ये तो धर्म विरोधी कार्य हैं और जाने-अनजाने में रा.स्व.सं.-भाजपा हिन्दू धर्म के ताने-बाने व छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस दृष्टिकोण से ये धर्म विरोधी हैं।

(संदीप पाण्डेय is the recipient of the Magasaysay award. He is a well known activist based in Lucknow)

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