अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 का राज्य की देशी आबादी पर कोई असर नहीं नहीं होगा. उनकी इस टिप्पणी ने विपक्षी पार्टियों को एक बार फिर से उनपर हमला करने का मौका दे दिया है. लेकिन इस बीच एक बड़ी बहस पृष्ठभूमि चली गयी है.

केंद्र द्वारा प्रस्तावित संशोधन से अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करना आसान हो जायेगा. इसके तहत इन धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए भारत में निवास करने की अवधि की शर्तों को बदलकर उसे वर्तमान 11 वर्षों से घटाकर छह वर्ष किया जायेगा.

प्रस्तावित संशोधन की घोषणा होने के बाद से पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश हिस्सों में, सिर्फ असम के कुछ उन इलाकों को छोड़कर जहां बड़ी संख्या में बंगला – भाषी हैं, इसका घनघोर विरोध हो रहा है.

पिछले सोमवार को, नार्थ – ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन के बैनर तले पूर्वोत्तर राज्यों के छात्र संगठनों ने पूरे इलाके में इस विधेयक के विरोध में जोरदार प्रदर्शन किया.

यहां तक कि भाजपा शासित असम के मुख्यमंत्री और मेघालय, जहां भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है, के मुख्यमंत्री को इस प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ बोलना पड़ा है. इस मुद्दे पर ख़ामोशी अख्तियार करने के कारण अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री विपक्षी दलों के निशाने पर हैं.

हालांकि पिछले बुधवार को अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में एक खेल समारोह के दौरान पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर श्री खांडू ने कहा कि बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन 1873, के तहत संरक्षित होने की वजह से प्रस्तावित विधेयक का राज्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि इस रेगुलेशन की वजह से राज्य की देशी जनजातीय आबादी के अलावा अन्य किसी को बगैर इनर लाइन परमिट के यहां घुसने की इजाज़त नहीं है.

श्री खांडू ने कहा, “राज्य के लोगों को इस किस्म के विधेयक से चिंतित होने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि राज्य कुछ विशेष कानूनी प्रावधानों से संरक्षित है.” इन प्रावधानों में से एक यह भी है कि यहां उन भारतीय नागरिकों, जो राज्य की जनजातीय आबादी का हिस्सा नहीं हैं, को भी जमीन खरीदने की इजाज़त नहीं है.

हालांकि, राज्य के विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी की घोर आलोचना की है. राज्य के एकमात्र क्षेत्रीय दल – पीपुल्स पार्टी ऑफ़ अरुणाचल (पीपीए) – ने मुख्यमंत्री के बयान को गैर-जिम्मेदाराना करार दिया है.

खांडू पर हमला करते हुए पीपीए ने कहा कि “बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन के तहत भले ही राज्य के लोगों के हितों को संरक्षण मिला हुआ हो, लेकिन यह सीमावर्ती राज्य अब एक अलग – थलग भौगोलिक इकाई नहीं रहा और असम इसका निकट पड़ोसी है जहां की देशी आबादी पर प्रस्तावित नागरिकता (संशोधन) विधेयक का प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है. भविष्य में इस प्रतिकूल प्रभाव की वजह से वहां गंभीर सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समस्याएं पैदा होंगी और इसका असर निश्चित रूप से अरुणाचल प्रदेश पर फैलेगा.”

पार्टी ने हाल में भाजपा की अगुवाई वाली नार्थ – ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायन्स (एनईडीए) की बैठक में इस मुद्दे पर चुप्पी साधने के लिए श्री खांडू पर सवालिया निशान लगाया. पूर्वोत्तर क्षेत्र में इस विधेयक के संभावित असर के बावजूद एनईडीए की बैठक के किसी भी विमर्श में इस मसले पर को शामिल नहीं किया गया.

इस बीच, अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने मुख्यमंत्री पर “मुख्य मुद्दे से भटकाने” और विदेशी नागरिकों को राज्य में घुसने के लिए आवश्यक प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट और संरक्षित क्षेत्र परमिट के खात्मे की मांग करके “बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन” को “कमजोर” करने का आरोप लगाया.

कांग्रेस की प्रदेश इकाई ने यह भी कहा है कि राज्य में अवैध आप्रवासियों को नहीं घुसने देने संबंधी मुख्यमंत्री का बयान बिल्कुल “संतोषजनक” नहीं है क्योंकि इनर लाइन परमिट के बगैर भी चकमा, हाजोंग और तिब्बती शरणार्थी राज्य में हर तरह की स्वतंत्रता का लाभ उठा रहे हैं.