अपने अधिकारों एवं स्वतंत्रता को लेकर चिंतित पत्रकारों ने अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में एक मार्च निकाला. इस मार्च का उद्देश्य देशभर, खासकर पूर्वोत्तर राज्यों, में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के प्रति चिंता जाहिर करना था.

इस मार्च की शुरुआत ईटानगर के आकाशदीप इलाके से हुई और इसका समापन अरुणाचल प्रदेश प्रेस क्लब पर हुआ. इसमें 200 से अधिक पत्रकरों ने हिस्सा लिया.

राजनीतिक दलों, अलगाववादियों, उग्रवादियों, व्यावसायिक एवं सरकारी प्रतिष्ठानों आदि द्वारा ख़बरों को निर्देशित करने के प्रयासों की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों में मीडिया गहरे दबाव में है और उसकी निर्बाध आज़ादी इस दिनों खतरे में है. इन क्षेत्रों में पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं. अभी कुछ समय पहले असम – मिज़ोरम सीमा पर हुई हिंसा की रिपोर्टिंग के दौरान मिज़ोरम की महिला पत्रकारों के साथ असम पुलिस के जवानों ने बदसलूकी की थी. त्रिपुरा में राज्य विधानसभा चुनावों से पहले दो पत्रकारों की हत्या कर दी गयी थी.

वरिष्ठ पत्रकार तारो चतुंग कहते हैं, “आजकल कुछ मामले प्रेस की आज़ादी पर हमले के तौर पर दर्ज कर लिये जाते हैं, लेकिन हमारे ज़माने में तो इन इलाकों में प्रेस की आज़ादी जैसी कोई अवधारणा ही नहीं थी.” वे आगे बताते हैं कि कैसे 1980 के दशक में राज्य पुलिस ने उनका कैमरा छीन लिया था जो आजतक उन्हें वापस नहीं मिल पाया.


अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष अमर संग्नो ने कहा, “हम प्रेस का दमन करने की केंद्र सरकार की नीति और देशभर में पत्रकार बिरादरी पर हो रहे हमलों की कड़ी निंदा करते हैं. हमने अगरतला में अपने दो साथियों को खोया है.”

उन्होंने प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, “ भाजपा द्वारा प्रेस और स्वतंत्र चिंतकों को निशाना बनाने और प्रेस काउंसिल को प्रभावित करने का प्रयास और कुछ नहीं बल्कि उसकी तानाशाही भरी योजनाओं का एक हिस्सा है.”

एक लोकप्रिय अंग्रेजी दैनिक के संपादक ने कहा, “जान पर खतरे और पेड न्यूज के अलावा हम सरकारी एजेंसियों और सुरक्षा बलों के प्रचार से आजिज आ गये हैं. हर रोज हमें उनकी ओर से प्रेस – बयान प्राप्त होते हैं, जिन्हें छापने को हम विवश होते हैं. अन्यथा हमपर झूठी ख़बर छापने का आरोप लगाया जा सकता है. वे अपने जनसंपर्क के एक औजार रूप में हमारा इस्तेमाल करना चाहते हैं.”