पिछले 13 दिसम्बर को 20 लोग मेघालय के ईस्ट जैंतिया हिल्स जिले के 370 फुट गहरे एक खदान में उतरे. दो सप्ताह बाद, उनमें से 15 लोग अभी भी उस खदान के भीतर फंसे हुए हैं. इस घटना का अफसोसनाक पहलू यह है कि बेहतर उपकरण के अभाव में बचाव कार्य स्थगित है.

“चूहे के बिल वाले खान” के नाम से मशहूर मेघालय के ये खदान छोटे निकासों वाले खड्डे हैं जिसमें एक बार में सिर्फ एक व्यक्ति दाखिल हो सकता है. खदानों में घुसने के बाद मजदूर कोयले के ढेर का पता लगाने के लिए खुदाई करते हैं और कोयला निकालने के लिए “चूहे के बिल वाले” सुरंगों को क्षैतिज दिशा में काटा जाता है. इस तरह से निकाले गये कोयले का अधिकांश हिस्सा मेघालय से बाहर पड़ोसी राज्य असम चला जाता है. छोटे आकार वाले इन सुरंगों में जाहिर है कि अंधिकांश स्वस्थ वयस्क नहीं घुस पाते और अक्सर इन खदानों में नाबालिग बच्चों को उतार दिया जाता है.

जिन खतरनाक परिस्थितियों में इन खनिकों को काम करना पड़ता है, उसका खुलासा उस समय हुआ जब असम के दो संगठनों – आल दिमासा स्टूडेंट्स यूनियन और दिमा हसाव जिला समिति - ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष इस आधार पर एक याचिका दायर किया कि इस खनन की वजह से कोपिली नदी का पानी अम्लीय हो गया है.

मामले की सुनवाई करते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में इस खनन पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन अवैध खनन बे - रोकटोक जारी रहा.

सूत्रों ने बताया कि ताजा हादसा की वजह खनिकों द्वारा असावधानीवश किसी सुरंग की उन दीवारों की खुदाई करना हो सकती है जिससे होकर ल्यतें नदी का पानी पहले से ही बह रहा था. संभव है कि दीवारों की खुदाई होने से नदी का पानी भीतर आ गया हो और खनिक जलजमाव में घिर गये हों.

राष्ट्रीय आपदा राहत बल द्वारा चलाये जा रहे बचाव – कार्य को पानी निकालने वाले बेहतर उपकरण के अभाव में अस्थायी रूप से रोक दिया गया है. हालांकि, इस कदम को सामाजिक कार्यकर्ता जेनी संगमा ने बेकार करार दिया.

द सिटिज़न से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि जिस पानी में खनिक घिरे हैं, वह नदी से आ रहा है और उसे निकाल फेंकना संभव नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि खनन पर प्रतिबंध लगाने का शायद ही कोई असर हुआ. उस इलाके में खनन बिना किसी रोकटोक के निर्बाध रूप से जारी है और इस बारे में सभी को मालूम है.

उन्होंने कहा, “यह सब कोयला माफिया, राजनेताओं और पुलिस की मिलीभगत से चल रहा है. वरना उनकी जानकारी के बगैर कोयले से लदा कोई भी ट्रक राज्य से बाहर कैसे जा सकता है.”

राज्य में अवैध खनन इस कदर बेतहाशा चल रहा है कि राज्य के मुख्मंत्री कोनराड संगमा तक को मीडिया के सामने इसे स्वीकार करना पड़ा.

श्री संगमा ने कहा, “हम अवैध खनन की बात स्वीकार करते हैं और इसपर शीघ्र कार्रवाई करेंगे. इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.”

जेनी संगमा ने कहा कि अवैध खनन का ज्यादातर फायदा राज्य के बाहर के लोग उठा रहे हैं और स्थानीय लोग इसके खिलाफ बोल पाने असमर्थ हैं.

जिन लोगों ने इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत की, उन्हें धमकियां झेलनी पड़ी और कम – से – कम एक हालिया मामले में हिंसा का सामना करना पड़ा.

पिछले महीने, सामाजिक कार्यकर्ता एग्नेस खर्शिंग और अमिता संगमा पर जिले के सोह्श्रीह इलाके में कोयला माफिया से जुड़े संदिग्ध लोगों द्वारा हमला किया गया.

वे दोनों उस इलाके में अवैध खनन जारी रहने की खबर पाकर वहां पहुंचे थे.

इस बीच, राज्य सरकार ने बचाव अभियान को मदद पहुंचाने के लिए कोल इंडिया लि. से पानी निकालने वाला उच्च शक्ति का पंप मांगा है. लेकिन दो सप्ताह तक पानी से भरे खदान में फंसे रहने के बाद खनन मजदूरों के जीवित बचने के आसार कम हैं.

खदान के मालिक को गिरफ्तार कर लिया गया है. लेकिन जेनी का कहना है कि सरकार को अब लोगों को गरीबी से निजात दिलाने के लिए कोई ठोस उपाय जरुर करना चाहिए.

उन्होंने कहा, “खदान में काम करने वाले लोग वहां अपनी इच्छा से नहीं गये हैं. बल्कि ऐसी खराब परिस्थितियों में काम करने को वे मजबूर हैं.”