श्रीलंकाई बौद्ध मंत्री को भारत में एक मंदिर में प्रवेश से रोका गया
धार्मिक भेदभाव की घटना से देश की साख पर असर
एक बेहद हैरान कर देने वाली घटना में श्रीलंका के बौद्ध धर्म मामलों के मंत्री गामिनी जयविक्रमा परेरा को उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में 11वीं सदी में निर्मित लिंगराज (शिव) मंदिर में घुसने से रोक दिया गया.
श्री परेरा ने पिछले रविवार को श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में मीडिया को बताया कि मंदिर के पदाधिकारियों ने यह कहते हुए उनके प्रवेश पर रोक लगा दी कि मैं एक बौद्ध हूं, हिन्दू नहीं.
उन्होंने बताया कि "असहज" कर देने वाली यह घटना विगत 16 मार्च को हुई जब वे कलिंगा इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक यात्रा पर थे.
श्री परेरा ने कहा, "बौद्ध धर्म के एक सच्चे अनुयायी के तौर पर मैं उस मंदिर को देखना चाहता था क्योंकि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए उस स्थान का ऐतिहासिक महत्त्व है. उक्त मंदिर का संबंध उस महान अशोक के काल से है जिसने पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रसार में महती भूमिका निभायी. अर्हन्त महिंदा, जिन्हें बौद्ध स्रोतों के अनुसार बौद्ध धर्म को श्रीलंका लाने के श्रेय दिया जाता है, का भी संबंध उड़ीसा से था. इस लिहाज से, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए उस मंदिर का ऐतिहासिक महत्त्व है."
उन्होंने आगे कहा, "मैं उस घटना से हैरान रह गया क्योंकि बौद्ध धर्म के अनुयायियों समेत सैकड़ों श्रीलंकाई श्रद्धालु तिरुपति और केरल के मंदिरों में जाते हैं. उक्त मंदिर का दौरा करने वाले शिष्टमंडल में भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त भी शामिल थे."
श्री परेरा ने बताया कि उन्होंने इस मसले को कलिंगा इंटरनेशनल फाउंडेशन के चेयरमैन और भारत के पूर्व विदेश सचिव ललित मानसिंह के समक्ष उठाया.
लिंगराज मंदिर की देखरेख मंदिर न्यास बोर्ड (टेम्पल ट्रस्ट बोर्ड) एवं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया) द्वारा की जाती है. यो तो उक्त मंदिर का परिसर में गैर - हिन्दुओं का प्रवेश निषिद्ध है, लेकिन इसकी दीवार से सटा एक चबूतरा है जहां से इसकी बाहरी रुपरेखा को अच्छी तरह से देखा जा सकता है.
वर्ष 2012 में एक रुसी पर्यटक के उस मंदिर में दाखिल होने के बाद काफी हंगामा मचा था. एक विदेशी के घुसने के बाद उस मंदिर में चार घंटे तक पूजा - अर्चना बाधित रही थी. पुजारियों ने मंदिर के शुद्धिकरण के लिए एक अनुष्ठान किया था और 50 हजार रूपए की लागत से बने प्रसाद को फिकवा दिया था.
भारत के जिन प्रमुख मंदिरों में गैर - हिन्दुओं के प्रवेश की मनाही है उनमें गुजरात का सोमनाथ मंदिर, केरल का गुरुवयूर कृष्ण मंदिर, उड़ीसा के पुरी का जगन्नाथ मंदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणासी का काशी विश्वनाथ मंदिर तथा केरल के तिरुअनंतपुरम का पदमनाभास्वामी मंदिर शामिल है.
"मंदिर की पवित्रता अक्षुण्ण रखने" के लिए वर्ष 1992 से सोमनाथ मंदिर में विदेशियों एवं गैर - हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया गया.
केरल के गुरुवयूर कृष्ण मंदिर में गैर - हिन्दुओं के प्रवेश पर बहस 30 साल पहले उस समय शुरू हुई जब प्रसिद्ध गायक येसुदास ने वहां आयोजित एक संगीत कार्यक्रम में भाग लेने का निर्णय किया. येसुदास को मंदिर के फाटक पर ही रोक लिया गया और अंत में उन्हें मंदिर परिसर के बाहर ही अपना भजन कार्यक्रम करना पड़ा. वर्ष 2006 में इस मंदिर के पदाधिकारियों को किंकर्तव्यविमूढ़ रह जाना पड़ा जब उन्हें बाद में यह पता चला कि तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के साथ मंदिर में पूजा - अर्चना करने आई उनकी पत्नी, शिरान्थी राजपक्षे, एक "इसाई" थी. मंदिर के पुजारियों ने केरल सरकार से श्रीमती राजपक्षे की धार्मिक स्थिति की पुष्टि के लिए कहा और यह घोषणा की कि अगर श्रीमती राजपक्षे "इसाई" निकलीं तो मंदिर को विशेष अनुष्ठानों के जरिए "शुद्ध" किया जाएगा. हालांकि, श्री राजपक्षे ने पूछे जाने पर केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ऊमन चंडी को सूचित किया कि श्रीमती शिरान्थी ने शादी के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया था.
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक पारसी, फ़िरोज़ गांघी, से शादी करने की वजह से प्रवेश में वंचित कर दिया गया था.