पाकिस्तान के आम चुनाव एक ऐतहासिक घटना इस लिहाज़ से है की गत दस वर्षों यह तीसरा आम चुनाव है और यह दूसरी बार ऐसा हो रहा है कि एक नागरिक प्रशासन दुसरे नागरिक प्रशासन को सत्ता सौंपेगा . लेकिन चुनावों में धांधली और बेइमानी के आरोपों और उस पर अधिकांश मीडिया का विश्वास करना और एक के अलावा सभी राजनैतिक दलों द्वारा इसकी पुष्टी करने से इस पूरी चुनावी प्रक्रिया और उससे होने वाले लोकतान्त्रिक संस्थाओ का मजबूती से स्थापित होने की धारणा कमज़ोर हुई है.

पाकिस्तान की फ़ौज ने अपने चुनाव प्रक्रिया के दौरान अपने उस आश्वासन कि वह केवल सुरक्षा, क़ानून- व्यवस्था का ही ध्यान रखेगी और बाकी किसी भी प्रक्रियामें कोई हिस्सा नहीं लेगी का उल्लंघन किया . वोटिंग वाले दिन फ़ौज मतदान केन्द्रों के भीतर और बाहर दोनों में ही तैनात थी.नियंत्रण उसी के हाथ में था .

लाहौर के अखबार डेली टाइम्स ने अपने सम्पादकीय में लिखा कि, ‘ वर्ष 2018 के चुनावों में तहरीक –इ इन्साफ की जीत हुई है . ( लेकिन )..हम यहाँ से कहां जायंगे ?

“ अंतिम नतीजे आने से पहले ही पाकिस्तान पीपल्स पार्टी , पाकिस्तान मुस्लिम लीग ( नवाज़), मुत्तहिदा मजलिस-इ - अमल और बाकी सभी पार्टियों ने भी इसे नकार दिया है और आश्चर्य की बात तो यह है कि तहरीक-ए-लब्बैक पाक्सितान भी इसे बेईमानी करार दे रहा हैं. “ यह अंतिम बरेलवी मत की अनुयायी फ़ौज के नज़दीक मानी जाती है लेकिन इसने भी धांधली की अलोचना की है.

समपाद्कीय आगे कहता है कि “ गिनती शुरू होने के पहले सबसे बड़ी समसया यह थी की वोट देने वाले तो बहुत थे लेकिन समय कम था . वोट डालने की प्रक्रिया बहुत धीमी थी और कुछ स्थानों में यह कार्य भी देर से शुरू किया गया था.

“ यद्यपी , सभी पार्टियों ने चुनाव आयोग से यह प्रार्थना की कि वोटिंग का समय एक घंटा बढ़ा दिया जाय लेकिन आयोग ने इस पेशकश को ठुकरा दिया . जो लोग 6 बजे से पहले मतदान केन्द्रों में पहुँच गए थे वे तो वोट डाल पाए , न बाकी इससे वंचित रह गये . वैसे तो पार्टियां इससे नाखुश थी , लेर्किन उन्होनें इसे मुद्दा नहीं बनाया और चुनाव के कायक्रम को पूरा करने के लिए आगे बढ़ गयी .

लेकिन फिर वोट की गिनती का नम्बर आया. ऐसे बहुत क्षेत्र हैं जिनमें पोलिंग एजेंट को जाने के लिए कहा गया और उन्हें फॉर्म 45 , जिसमें वोटिंग का पूरारिकोड दर्ज होता है , नहीं दिया गया, यानी बहुत जगहों पर वोटों की गिनती में ज्यादातर पार्टियों के पोलिंग एजनटो को घुसने नहीं दिया गया. सम्पादकीय की टिप्पणी है “चुनावों को पारदर्शिता की समस्या है.”

‘ स्वाभाविक है की पाकिस्तान तहरीक-इ- इन्साफ एक मात्र प्रमुख पार्टी है जो इस चुनाव को बेइमानी नहीं बता रही है.

“ यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान की राजनैतिक पार्टियां यह कह रही हैं की चुनाव में धांधली हुई है ; लेकिन यह संभवतः पहली बार है जब वे सब एक साथ आकर एक ही शिकायत कर रही हैं.”

सम्पादकीय अंत में यह पूछता है ,” क्या हम एक नए लोकतान्त्रिक सत्र की और अग्रसर हो रहे हैं या हम एक बड़ी उथल पुथल की और बढ़ रहे हैं ?”

इस घटना क्रम से समूचे देश में बहस शुरू हो गयी है.

, राजनैतिक विश्लेषक,जाहिद हुसैन के अनुसार , ‘ हर चुनाव के बाद हमें आम तौर पर यह बात सुनाई पडती है. जो पार्टी चुनाव् हारती है वह इस प्रकार की बात को उठाती है . भूलिए मत, वर्ष 2013 में भी यही चुनाव धांधली के आरोप लगे थे , लेकिन मेरा मानना है चुनाव आयोग को इसकी छान बीन करनी चाहिए ताकि चुनाव और पारदर्शी हो सके.

“दूर्भाग्य से पाकिस्तान में अपनी हार को सौजन्यता से स्वीकार करने की कोई परंपरा नहीं है . ऐसी कोई मिसाल नहीं है जिसमें हारने वाली पार्टी ने आगे बढ़कर अपनी हार स्वीकार की हो .

वर्ष 2013 में भी इमरान की पार्टी ने यह दावा किया था कि चुनावों को चुरा लिया गया है . वे धरने पर चले गए थे और यह मांग कर दी थी चार क्षत्रों के मत पत्र खोले जाय .

देरी से परिणाम का आना अपने आप में धांधली हो ऐसा ज़रूरी नहीं है. गत चुनावों में भी ऐसा ही हुआ था .लेकिन आयोग को इसकी छान बीन करनी चाहिए.’

धीमा मतदान मतदान के दिन की धांधली है

एक अन्य ,राजनैतिक विश्लेषक, आद्नान रसूल ,धीमे मतदान को किसी भी वोट धांधली स्कीम का हिस्सा मानते हैं. ज्यादातर धांधली मतदान से पहले की जाती है. क्योंकि चुनाव वाले दिन यह करना बहुत मुश्किल होता है. इससे संदेह पैदा होता है. धीमा मतदान मतदान के दिन की धांधली है. मत को दबाने का यह एक तकनीकी तरीका है.ज्यादातर लोग सार्वजनिक अवकाश के कारण धीरे धीरे मत देने आते हैं. उस समय मतदान केंद्र लोगों से भरे हुए होते हैं जिससे लम्बी लाइन लगती है इससे सभी को वोट डालने का मौका नहीं मिलता . कारण साफ है. ऐसा क्षेत्र जहां किसी पार्टी को प्रबल समर्थन प्राप्त है वहाँ बिना वोट दिए लोग चले जायंगे, जिससे उस पार्टी के वोट में कमी आयगी.

‘यह तरीका वर्ष 2002 केचुनाव में और पहले के चुनावों में भी अपनाया गया था उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार इस चुनाव में यह तरीका पूरी शक्ति से अपनाया गया है. इन सब और अन्य पूरक तरीकों को अपनाकर नतीजा अपने पक्ष की पार्टी के पक्ष में बद्ला जा रहा है.

“ जिस् प्रकार से यह किया जा रहा है ऐसा वर्ष 1977 की बाद से देखने को नहीं मिला हैं . आज इससमय तक , ( अर्थात आधी रात 25-26जुलाई ) को गत चुनाव में अभी तक अधिकांश नतीजे आ गए थे. लेकिन अभी इसबार केवल 26% मतदान केन्द्रों के परिणाम आये हैं”

आगे “ इन आरोपों के साथ यह समस्या है की यह नई सरकार की वैधता को और उनके प्राधिकार को पहले दिन चुनौती देता है.किसी भी सरकार के लिए कुछ भी करना असम्भव होगा यदि अधिकाँश जनता इसे मानने से इनकार कर दे.”

बहुत से चुनावों में धांधली हुई है लेकिन जिस पैमाने पर इस चुनाव में हुई है उसका कोई सानी नहीं है यह मात्रा ही इस चुनाव को संदेहास्पद बना देती है.”

नतीजों से पहले ही एक नतीजा आ गया

एक अजीबोगरीब तथ्य यह है की २५ जुलाई की शाम को यह सूचना दे दी गई थी कि इमरान खान २६ जुलाई की दोपहर दो बजे प्रेस सम्मलेन करेंगे .उससमय तक रुझान आने शुरू हो गुए थे और उनकी पार्टी आगे चल रही थी. आम तौर पर अधिकाँश नतीजे आने के बाद ही अपना नीतिगत बयान इत्यादी जारी करते हैं . लेकिन अभी पक्ष में आये रुझानों के आधार पर इमरान ने अपना नीतिगत वक्तव्य दे दिया है वह इतने निश्चिनत थे की उन्हें इन सब बातों की भी परवाह नहीं की की चुनाव में बहुतेरे परिणाम आने बाकी हैं उसकी अधिसूचाना में तो बहुत वक्त है .ऐसाप्रतीत हो रह था की उन्हें पहले से ही मालुम है नतीजे क्याहोंगे और वह जीतेंगे.

वास्तविकता यह हैं कि आज ( २7 जुलाई , शाम 7बजे)इस रिपोर्ट को लिखते समय भी सभी परिणाम नहीं आये हैं.

अभी भी 272 के सीधे चुने हुए सीटों पर उसे 137 सीटें चाहिए और अभी तक की गणना में यह संख्या 118 ही पहुंची है . एक वरिष्ठ पी टी आई नेता के हवाले से अखबारों ने लिखा है कि उनकी पार्टी ने बहुत अच्छा किया है लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहां है की 137 की संख्या से कुछ कम रह जायगा. पाकिस्तान के नियम के अनुसार 272 सीटो, पर सीधे चुनाव होता है और जिस अनुपात में यहाँ सीटें जीती होती हैं उसी अनुपात में बाके 70 सीटो पर महिला और अल्पमत के प्रत्याशी मनोनीत करते हैं . इसलिए यदि एक बार 137 सीटें सीधे संघर्ष में प्राप्त कर ले, तो कुल 342 में बहुमत प्राप्त करना आसान होगा.

अभी तक पी टी आई के पास 120 सीटें हैं और उन्हें अभी भी 17 सीटें चाहिए. यह संख्या और घट जायगी जब एक से अधिक सीट पर सात पर जो लोग आए है वे उन सीटों को छोड़ना शुरू करते हैं . यदि पूरी संख्या नहीं हुई तो निर्दलीय , या छोटे गठबन्धनों से साझा किया जा सकता है .

पी टी आई के विरोध की तीन पार्टियों – पी पी पी , प एम् एल (न) और मुत्तहिदा मजलिस – इ – अमल- की संख्या मिलाकर 110 है यानी पी टी आई से 8 कम . अभी तक इन पर्तिओयों ने व्सर्कार बनाने केबारे मेंनही सोचा है. पहले वे मिलकर यह निर्णय लेंगे की धांधली के विरोध में क्या किया जाय.

विकल्प में आन्दोलन का विकल्प भी है.

इमरान खान की शुरुआत बहुत खराब रही है . शुरु होने से पहले ही देश की विशाल जनता के प्रतिनिधि उसके विरोध में हैं. फ़ौज के प्रति जिन लोगों का विरोध है वे इमरान के भी विरोधी हो जायंगे .हो सकता है की अभी कोई आन्दोलन न हो लेकिन इमरान की सरकार के असपहल होने की शुरुआत के साथ ही बहुत तेज़ आन्दोलन शुरू हो जायगा.

एक आख़िरी बात यह है की जब फ़ौज ने हस्तक्षेप किया तो उन्होनें इमरान की पार्टी को बहुमत क्यों नहीं दिलवा दिया ? आज उसे साझा सरकार में जाना पड़ सकता है . क्या फ़ौज की यह नीति है कि इमरान को समर्थन बेशक मिले . लेकिन वह फ़ौज का मोहताज रह्ना चाहिये और अपेक्षाकृत कमज़ोर रहे!