नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन नामक जर्नल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार टैक्स हेवन देशों का दुनिया के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक माहौल पर बुरा प्रभाव सर्वविदित है, पर पर्यावरण पर भी घातक प्रभाव पड़ रहा है. स्वीडन के स्टॉकहोम रेसिलिएंस सेंटर के विक्टर गालाज की अगुवाई में किये गए इस अध्ययन में रॉयल स्वीडिश अकैडमी ऑफ़ साइंसेज के वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री भी सम्मिलित थे. अध्ययन के अनुसार बड़े पैमाने पर पर्यावरण का विनाश करने वाली अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं में अधिकतर निवेश टैक्स हेवन देशों के माध्यम से किया जाता है. इससे पहले भी कुछ खोजी पत्रकारों ने इस तरह के छोटे अध्ययन प्रकाशित किये हैं. इंडोनेशिया के वर्षावनों का बड़े पैमाने पर विनाश पाम आयल उद्योग करते रहे हैं, जिनमें निवेश ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड से किया जाता रहा है. इसी तरह पश्चिमी अफ्रीकी देशों में हीरे के खनन के अवैध और अमानवीय कारोबार के लिए अधिकतर निवेश टैक्स हेवन देशों से किया जा रहा है. पर, वर्त्तमान अध्ययन विस्तार से किया गया है. इस अध्ययन की शुरुआत पनामा पेपर्स और पैराडाइस पेपर्स के प्रकाशन के बाद की गयी थी.

वर्ष 2016 में पनामा पेपर्स और 2017 में पैराडाइस पेपर्स से खुलासे के बाद हमारे देश में तो नहीं पर अनेक देशों में भूचाल सा आ गया था. पनामा पेपर्स में हमारे देश के 500 से अधिक लोगों के नाम थे जबकि पैराडाइस पेपर्स में 714 लोगों के नाम थे. इनमें उद्योगपति, राजनैतिज्ञ और फ़िल्मी हस्तियाँ सभी शामिल थे. पैराडाइस पेपर्स में कुल 180 देशों के लोगों के नाम थे और टैक्स हेवन देशों में जमा मुद्रा के अनुसार हमारे देश का स्थान 19वां था. नवाज शरीफ इस खुलासे के बाद जेल में बंद हो गए. हमारे देश में तो इस खुलासे के अगले दिन ही बड़ी-बड़ी जांच की बात की गयी और सारा मामला रफादफा हो गया. अब तो कहीं इसका जिक्र भी नहीं होता. खुलासे के बाद इतना जरूर हुआ की टैक्स हेवेन देशों के बारे में आम आदमी जान गया.

टैक्स हेवन पूंजीवादी व्यवस्था की देन है और दुनियाभर के धनाड्यों के लिए हेराफेरी से की जाने वाली कमाई को सुरक्षित रखने के लिए सबसे अच्छी जगह भी. ये देश, किसी को भी अपने ग्राहकों के बारे में जानकारी नहीं देतें हैं. इन देशों में किसी भी देश का नागरिक या कंपनी पैसा जमा कर सकता है और इसपर कोई टैक्स नहीं लगता या फिर नाममात्र का लगता है. टैक्स हेवन में शामिल देश बहुत छोटे हैं और अधिकतर देशों का नाम भी शायद ही सुनाने को मिलता है. इसमें शामिल मुख्य देश हैं – एंडोरा, बहामास, बेलीज़, बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, केमन आइलैंड्स, चैनल आइलैंड्स, कुक आइलैंड्स, हांगकांग, द आइल ऑफ़ मैन, मॉरिशस, लिच्तेंस्टीन, मोनाको, पनामा, सेंट् किट्स और नेविस.

उपलब्द्ध जानकारियों के अनुसार दुनिया में रजिस्टर्ड मछली पकड़ने वाले पोत में से महज 4 प्रतिशत का पंजीकरण इन देशों में किया गया है, पर अवैध मछली पकड़ने के मामले में संलिप्त कुल पोतों में से 70 प्रतिशत इन्ही टैक्स हेवन देशों की हैं. अवैध कामों में संलग्न पोतों पर यह देश कोई कार्यवाई नहीं करते, इसीलिए इन देशों में पंजीकृत पोत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं, प्रतिबंधित प्रजातियों का व्यापार करते हैं.

रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि दक्षिणी अमेरिका के अमेज़न वर्षावनों में अवैध तरीके से बड़े पैमाने पर वृक्षों को काटने के लिए जिम्मेदार बीफ और सोयाबीन उधोग का अधिकतर निवेश भी टैक्स हेवन देशों के माधाम से किया जाता है. वर्ष 2000 से 2011 के बीच ब्राज़ील के सोयाबीन उद्योग और बीफ उद्योग में जितना निवेश किया गया, उसका 68 प्रतिशत इन्ही देशों के माध्यम से आया. इस अवधि के दौरान इन उद्योगों में कुल 26.9 अरब डॉलर का निवेश किया गया, जिसमें से 18.4 अरब डॉलर इन देशों से आया था.

रिपोर्ट में अमेज़न वर्षावनों और महासागरों में मछली पकड़ने का ही विस्तार से वर्णन है, पर अनुमान है कि पर्यावरण नष्ट करने वाले अन्य गतिविधियों में भी यहीं से निवेश किया जाता है. इतना तो स्पष्ट है कि टैक्स हेवन देश केवल हवाला कारोबार, मानव और नशीले पदार्थों की तस्करी, आर्थिक आतंकवाद और सामाजिक आतंकवाद में ही शामिल नहीं हैं बल्कि पर्यावरण को भी पूरी तरीके से नष्ट करने पर तुले हैं. यही पूंजीवाद का असली चेहरा है, जिसमें आर्थिक उन्नति का समाज के बेहतर जीवन यापन से कोई रिश्ता नहीं है.