गार्डियन में छपी एक खबर के अनुसार निवेश की कमी से परेशान अडानी की ऑस्ट्रेलिया स्थित कोयला खदान कंपनी फिर से चर्चा में है. 13 सितम्बर को कंपनी की तरफ से बताया गया कि खदान से बंदरगाह तक जो रेल लाइन बिछानी थी अब उसकी लम्बाई को लगभग आधा कर दिया जाएगा और स्टैण्डर्ड गेज के बदले नैरो गेज की रेलवे लाइन बिछाई जायेगी. इससे खदान के लिए अपेक्षाकृत कम निवेश की जरूरत पड़ेगी. ऑस्ट्रेलिया में जानकार कह रहे हैं कि, यदि यह सब इतना ही आसान था तो परियोजना के आरम्भ में ही ऐसी योजना क्यों नहीं बनाई गयी थी?

इस परियोजना पर अब पूंजी की कमी का असर पड़ने लगा है. ऑस्ट्रेलिया में क्वीन्सलैंड की सरकार में स्पष्ट कर दिया है कि वहाँ की कोई भी सरकारी संस्था या बैंक इस परियोजना की कोई सहायता किसी भी तरह से और किसी भी चरण में नहीं करेगा. इसके बाद सरकारी मदद की कोई उम्मीद नहीं बची, और सभी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी अपनी साख बचाने के लिए इस परियोजना से अपना पल्ला झाड़ चुकी हैं.

कर्मिकेल कोयला खदान परियोजना ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड प्रान्त में स्थित है. इसका मौलिक प्रस्ताव वर्ष 2010 में बनाया गया था, तब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोयले की मांग लगातार बढ़ रही थी. उस समय इस खदान से प्रतिवर्ष 6 करोड़ टन प्रतिवर्ष कोयला निकालने की बात कही जा रही थी. मौलिक प्रस्ताव में खदान से कोयला निकाल कर अदानी के अबोट पोर्ट तक पहुंचाने के लिए 388 किलोमीटर लम्बी स्टैण्डर्ड गेज रेलवे लाइन बनाने का प्रस्ताव था. यहाँ से कोयला समुद्र के रास्ते गुजरात के तट पहुंचेगा जिसका उपयोग अडानी के ताप बिजली घरों में किया जाएगा. इन बिजली घरों में 4260 मेगावाट क्षमता का मुंद्रा स्थित बिजली घर सबसे महत्वपूर्ण है.

ताप बिजली घरों की हालत वर्ष 2010 से 2018 के बीच बहुत बदल चुकी है. अधिकतर देश वर्ष 2030 तक ताप बिजली घरों से पूरी तरह छुटकारा पाने की तैयारी में हैं. केवल भारत और चीन में ही कोयला आधारित बिजली घरों की संख्या आज भी बढ़ रही है. वर्ष 2017 के दौरान ऐसा पहली बार हुआ जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गैर-परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतों में कोयले की तुलना में अधिक निवेश किया गया.

कोयला आधारित बिजली घरों के मामले में अडानी की हालत भी अच्छी नहीं है, तभी उनकी कंपनी नए बिजली घर लगाने के बदले दूसरे कंपनियों के बंद बिजलीघरों को खरीदने पर जोर दे रही है. हमारे देश में आयातित कोयला बिजली घरों में अच्छा काम नहीं करता, मुंद्रा स्थित बिजली घर भी कई बार बंद हो चुका है. नए बिजली घर के नहीं लगने और पुराने बिजलीघरों के अधिग्रहण के कारण देश में कोयले की मांग भी तेजी से नहीं बढ़ रही है.

अडानी ने ऑस्ट्रेलिया के खदान के समय इससे प्रतिवर्ष 6 करोड़ टन कोयला निकालने की योजना बनाई थी, पर अब इसे 2.5 करोड़ टन पर कर दिया गया है. खदान से पोर्ट तक 388 किलोमीटर लम्बी स्टैण्डर्ड गेज की रेल लाइन बिछानी थी, जिसे अब 200 किलोमीटर नैरो गेज में तब्दील कर दिया गया है. एबोट बेसिन में दो पोर्ट बनाने थे, पर अगस्त में घोषणा की गयी कि दूसरे पोर्ट बनाने का काम रोक दिया गया है. शुरू में योजना थी कि एबोट पोर्ट से अडानी के 6 करोड़ टन कोयले के साथ साथ दूसरी कंपनियों का भी 24 करोड़ टन कोयला भेजा जाएगा, पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है.

वर्ष 2010 में बताया गया था कि अडानी की इस परियोजना से लगभग दस हजार लोगों को रोजगार मिलेगा और देश को अरबों रुपये का राजस्व प्राप्त होगा पर तमाम अर्थशास्त्रियों ने इन दावों को उसी समय झुठला दिया था. वर्तमान में हालत यह है कि, अडानी की ऑस्ट्रेलिया की कंपनी से अनेक कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गयी है.

देश में स्थित अडानी पॉवर लिमिटेड के लिए कोयले का इंतजाम ऑस्ट्रेलिया में स्थित कोयला खदानों से किया जाना है और अडानी की कंपनी ने वहां सबसे बड़ी कोयला खान खरीदी हैं. इस परियोजना पर वहां के पर्यावरण को तहस-नहस करने के आरोप लगातार लगते रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया में भी पर्यावरण के नुकसान के सन्दर्भ में उनकी कंपनी पर तमाम मुकदमे दर्ज किये गए और यहाँ तक कि स्थानीय निवासियों ने पर्यावरणविदों और कुछ स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर अडानी की कंपनी के खिलाफ मानव श्रृंखला भी बनायीं थी.

अडानी हमारे देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में शुमार हैं और मोदी जी के सबसे नजदीकी लोगों में हैं. उनकी कंपनी अडानी पॉवर लिमिटेड ने गुजरात के समुद्र तटों पर पर्यावरण नियमों का खूब उल्लंघन किया और इस कारण तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्रालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक कमेटी ने उनपर 200 करोड़ रुपये का जुर्माना थोपा था. इसके बाद मोदी जी सत्ता में आये और अनुमान के अनुसार ही फाइलों में हेराफेरी कर जुर्माना न केवल माफ़ किया गया बल्कि और तरीकों से कंपनी को फायदा पहुँचाया गया. वैसे उनका मामला अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है और इसके आदेश पर फिर एक कमिटी गठित की गयी है जो सागर तटों पर प्राकृतिक रेत के टीलों को नुकसान पहुंचाये जाने का आकलन कर रही है. पर, इस सरकार के शासन कमेटी कैसी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी यह समझ पाना कठिन नहीं है.

इस पूरे मामले से प्रदूषण का अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध भी उजागर होता है. ताप बिजली घर देश में प्रदूषण फैलायेंगे और इसमें झोंके जाने वाले कोयले के खनन से ऑस्ट्रेलिया में प्रदूषण फैल रहा है. हाँ, इतना अवश्य है कि मौलिक प्रस्ताव यदि साकार रूप लेता तब प्रतिवर्ष वायुमंडल में केवल इस परियोजना से ही 30 करोड़ टन कार्बन का उत्सर्जन होता, पर अब परियोजना के छोटा होने से यह उत्सर्जन मात्र 2.5 करोड़ टन रह जाएगा.