NEW DELHI: जी एस टी के आगाज़ का विशाल भगवती जागरण खत्म होने के बाद तय है कि देश 2017 की कुछ अन्य बडी चुनौतियों से बच नहीं पायेगा | उनमें से कुल दो को ही लीजिये : देश भर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलाई जा रही अंधी हिंसा की मुहिम को मुख्यमत्रियों, मंत्रियों तथा पुलिस की मूक या मुखर शह और मीडिया सेंसरशिप | गैर- भक्त मीडिया की मुश्कें कस भी दी गईं तो भी सोशल मीडिया इनको बडी सुर्खियाँ बनाता रहेगा |

रायसीना हिल के नये लुटियन निवासी सूरमा चाहे जो कहें, फिलवक्त भारतीय लोकतंत्र के लिये संपूर्ण गोवध बंदी का मुद्दा पशुपालन और खेतिहर समाज के बीच खून मांस के रिश्ते और पूंजी के प्रवाह से भी जुडा हुआ है | पहले सरदर्द का स्रोत राज काज में हुए भयावह घोटाले होते थे | कहा जा रहा है जी एस टी नामक दवा का छिडकाव उनको खरपतवार की तरह जड से नष्ट कर देगा | लेकिन अब तक तो नये प्रावधान ने महज़ विभागों के निगरानी दस्तों, वकीलों, चार्ट्रड अकाउंटेंटों की ही बाँछें खिला रखी हैं |

दूसरे सरदर्द की घंटी गुजरात के पाटीदार और हरियाणा के जाट बजा चुके हैं | दक्षिण में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ भी इस बासी कढी के कई पतीले खदबदाने लगे हैं | पाकिस्तान का लोकतंत्र जीवन रक्षक उपकरणों पर भले हो, यूरो ज़ोन की अर्थव्यवस्था भले दम तोड रही हो पर मरा हाथी सवा लाख का होता है | और अमरीका के नये राष्ट्रपति आई टी उद्योग की घर वापसी पर जो बयान दे रहे हैं, उनका नडेला क्या कर लेंगे ? इस समय कम से कम कुछ सरदर्दों के निवारण के लिये सबसे बडी चुनौती यह नहीं पशुव्यापार पर लगाया प्रतिबंध हटे बल्कि यह कि 2017 की मध्यावधि में हिमाचल से गुजरात तक मीडियाई अपयश के नर्क से साफ सुथरे तर्कों के साथ विनम्रता से निपटने का कितना माद्दा सरकार में है |

भारत का गणतंत्र अगर पिछले सात दशकों से कायम है तो इस लिये , कि उसके कायम रहने में बहुसंख्यकों ही नहीं अल्पसंख्यकों और हाशिये के अनेक समुदायों को भी अपनी आकांक्षाओं और हित स्वार्थों के पूरे होने की संभावना बढती नज़र आती रही है |

भविष्य में प्रधान सेवक से खुले मीडिया संवाद को प्रधानमंत्री कार्यालय मीडिया को बुलायेगा तो क्या हमारे गैर भक्त मीडिया से कोई सदय विनम्र संवाद बन पायेगा ? संपादकों को लगाई ताज़ा फटकार के बाद हमको बहुत पहले पढी एक रूसी नीति कथा याद आरही है | ठिठुरन भरी शाम को घर लौट रहे एक दयालु किसान ने देखा कि पाले से अकडा एक कबूतर ज़मीन पर तडप रहा है | किसान ने उसे उठा कर कोट में लपेटा, सहला कर उसकी रुकती साँसों को लौटाया | कबूतर ने आँखें खोल दीं| तभी वहाँ से गायों का एक रेवड गुज़रा जिसमें से एक गाय ने तनिक रुक कर किसान के आगे गोबर का बडा ढेर गिरा दिया | किसान ने कबूतर को गर्मागर्म गोबर की ढेरी में रोप कर राहत की साँस ली कि अब सुबह धूप निकलने तक बेचारा पक्षी बचा रहेगा | किसान तो चला गया पर गोबर की गर्मी से त्राण महसूस करते कबूतर ने ज़ोरों से खूब गुटर गूँ करनी शुरू कर दी | उसकी ज़ोरदार चहक सुन कर पास से गुज़रता दूसरा किसान रुका और कबूतर को पका खाने के लिये उठा ले गया |

कहानी तीन नसीहतें देती है | एक : तुमको गोबर में डालने वाला हर जीव तुम्हारा दुश्मन नहीं होता | दो, गोबर से बाहर निकालने वाला हर जीव तुम्हारा दोस्त भी नहीं होता | और तीन : गोबर में आकंठ डूबा बंदा भी ज़्यादा चहकने से बाज़ आये |

(मृणाल पाण्डे is a reputed journalist, and was the first woman editor of Hindustan)