नागालैंड के विभिन्न राजनीतिक दलों, मुख्यधारा की पार्टियों और नगा नेशनल पालीटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजी), के साथ – साथ सिविल सोसाइटी के संगठनों ने चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया है.

इन समूहों ने कहा कि वे नगा शांति प्रक्रिया को तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए और उसके लिए वक़्त देने के पक्ष में हैं. और इसलिए उन्होंने आगामी विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार न खड़ा करने और इसके बरक्स चुनावों को टालने की मांग करने का फैसला किया है.

नगा शांति समझौते के विस्तृत विवरण को लेकर अभी रहस्य बरक़रार है. लेकिन कुछ लोगों की अटकलें थीं कि इसे क्रिसमस के उपहार के तौर पर दिसम्बर में लागू कर दिया जायेगा. हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ और अनाधिकारिक सूत्रों के जरिए लगाई जाने वाली अटकलों की वजह से पड़ोसी राज्यों में असमंजस और तनाव का माहौल पैदा हुआ.

हाल में असम के दिमा हसाओ जिले में आरएसएस कार्यकर्ता जगदम्बा माल के एक कथित बयान, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि समझौते के मसौदे में इस जिले को प्रस्तावित वृहद नागालैंड में शामिल किया गया है, के खिलाफ विरोध के दौरान हिंसा भड़क उठी. विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गयी.

एक तरफ जबकि दिमा हसाओ जिले में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला अब भी जारी है, नागालैंड में दशकों पुरानी एक अलग देश ‘नागालिम’ की मांग का स्थायी हल निकालने के पक्ष में आवाजें तेज़ हो रही हैं. नागालिम में नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और सीमा पार म्यांमार के नगा – बहुल इलाकों को शामिल करने की बात है.

नागालैंड में सत्तारूढ़ नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) समेत तमाम राजनीतिक दल ‘चुनाव से पहले समाधान’ के पक्ष में एकजुट हैं. यहां तक कि आम आदमी पार्टी और जनता दल (यू) जैसे राष्ट्रीय दलों की राज्य इकाई ने भी इसके पक्ष में अपना समर्थन व्यक्त किया है.

एनएससीएन – आईएम और एनएनपीजी में शामिल छह संगठनों ने “ वार्ता की इस ऐतिहासिक प्रक्रिया में बाधा डालने” के खिलाफ चेतावनी जारी है.

नागालैंड की वाणिज्यिक राजधानी – दीमापुर – में रविवार को नागालैंड जनजातीय और सिविल सोसाइटी संगठनों की कोर समिति (सीसीएनटीएचसीओ) एक बैठक हुई थी.

बैठक के बाद एनएससीएन – आईएम और एनएनपीजी की कार्यसमिति ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा, “अब जबकि नगा लोगों ने सामूहिक रूप से चुनावों से दूर रहने का फैसला किया है, हम सभी निहित स्वार्थी तत्वों को आगाह करते हैं कि वे नामांकन दाखिल कर और चुनावी प्रक्रिया में शामिल होकर वार्ता की ऐतिहासिक प्रक्रिया को अस्त – व्यस्त करने की हिमाकत न करें.”

एनएससीएन – आईएम के मुख्यालय – हेब्रोन – में 25 जनवरी को आयोजित एक अन्य बैठक में संगठन के संचालन समिति के संयोजक रेजिंग ने कहा कि विधानसभा चुनाव स्थायी समाधान की राह में एक “प्रतिगामी कदम” जैसा है.

उन्होंने कहा कि हमें स्थायी समाधान और विधानसभा चुनाव में से एक को चुनना होगा. एनएससीएन – आईएम (और एनएनपीजी के घटक संगठन भी) की मांग है कि समझौते को विधानसभा चुनाव से पहले क्रियान्वित किया जाये. हमारी राय है कि विधानसभा चुनाव कराना नगा लोगों की स्वतंत्रता के लिए 70 वर्षों तक संघर्ष करने वाले समूहों द्वारा भारतीय व्यवस्था को एक तरह से स्वीकार कर लिया जाना माना जायेगा.

रेजिंग ने बताया कि स्थायी समाधान का संबंध नगा लोगों के भविष्य से है जबकि चुनावों का संबंध भारतीय संविधान से है. स्थायी समाधान का संबंध नगा लोगों के एक खास इतिहास, संस्कृति और पहचान से है, जबकि चुनावों का संबंध भारत से है. स्थायी समाधान का संबंध नगा लोगों की जमीन से है, जबकि चुनावों का संबंध भारत के भू-भाग से है.